सरकार का नया पैंतरा : जम्मू – कश्मीर में पंचायत चुनाव का ऐलान

विपक्ष दलों ने उठाया सुरक्षा का सवाल

Update: 2018-08-18 13:27 GMT

जम्मू – कश्मीर में गंभीर राजनैतिक संकटों के बीच राज्यपाल एन एन वोहरा ने एक महत्वपूर्ण ऐलान किया. उन्होंने राज्य में शहरी स्थानीय निकायों एवं पंचायत चुनावों को सितम्बर महीने से कराने की घोषणा की. ये चुनाव पिछले कई वर्षों से टल रहे थे.

यह घोषणा ऐसे समय की गई है जब घाटी में तनाव लगातार बढ़ रहा है और भाजपा द्वारा अपने पूर्व सहयोगी पीडीपी के ‘बागी’ विधायकों एवं सज्जाद लोन के नेतृत्व वाले पीपुल्स कांफ्रेंस के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाने के कयास जोरों पर हैं.

श्रीनगर के शेरे – ए – कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम में स्वतंत्रता दिवस समारोह को संबोधित करते हुए श्री वोहरा ने कहा, “शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव सितम्बर और अक्टूबर में होंगे, जबकि पंचायतों के चुनाव अक्टूबर से लेकर दिसम्बर तक कई चरणों में कराये जायेंगे.”

श्री वोहरा ने कहा कि शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई स्व – शासित स्थानीय निकायों के गठन में हुई देरी की वजह से राज्य को बड़े पैमाने पर अनुदान और सहयोग राशि से वंचित रह जाना पड़ा. अगर स्थानीय निकायों के चुनाव हुए रहते, तो यह सारा धन हमें उपलब्ध होता.

जम्मू – कश्मीर में पिछली बार पंचायत चुनाव 2011 में हुए थे. पीडीपी – भाजपा गठबंधन की सरकार ने स्थानीय निकायों के चुनाव को जल्द कराने की घोषणा तो की थी, लेकिन राज्य में सुरक्षा के दिनोंदिन बिगड़ते हालातों ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया. शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव लगभग आठ सालों से नहीं हुए हैं.

अधिकारियों ने बताया कि लगभग 74 लाख लोग स्थानीय चुनावों में वोट डालने योग्य हैं. इनमें शहरी मतदाताओं की संख्या जहां लगभग 16 लाख है, वहीँ करीब 58 लाख ग्रामीण मतदाता हैं. पंचायत क्षेत्रों से कुल 35, 096 पंचों और 4, 490 सरपंचों के पद भरे जायेंगे. इसके अतिरिक्त 80 शहरी निकायों के सदस्य निर्वाचित किये जायेंगे.

जम्मू – कश्मीर में राज्यपाल शासन के लिए स्थानीय निकायों के ये चुनाव पहली बड़ी चुनौती साबित होंगे. सुरक्षा बलों के लिए भी यह एक कठिन चुनौती होगा क्योंकि पिछले तीन सालों में उन्हें आम नागरिकों की बढ़ती नाराजगी का सामना करना पड़ा है और इस दरम्यान होने वाली हिंसा में कई नागरिकों की जानें गयीं हैं.

कश्मीर के केंद्रीय विश्वविद्यालय में सामजिक विज्ञान के डीन प्रो. नूर ए. बाबा का कहना है, “आपरेशन आल – आउट और आम नागरिकों, खासकर दक्षिण कश्मीर के लोगों, पर पड़ने वाले इसके असर की वजह से राज्यपाल प्रशासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी. दहशतगर्दी में आया ताजा उभार निश्चित रूप से इस पूरी प्रक्रिया में असर डालेगा.”

श्री वोहरा, जिनके उत्तराधिकारी की खोज नई दिल्ली में जोर – शोर जारी है, भी जमीनी स्तर पर मौजूद इस नाराजगी से अच्छी तरह वाकिफ हैं. स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में उन्होंने राज्य के सभी राजनीतिक दलों से स्थानीय निकायों के चुनावों के लिए उपयुक्त माहौल बनाने में प्रशासन का सहयोग करने की अपील की.

उन्होंने कहा, “इन चुनावों से अमन – चैन बहाल करने का रास्ता खुलेगा और राज्य को बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार होने में मदद मिलेगी.”

हालांकि, मुख्यधारा की पार्टियों ने कश्मीर में सुरक्षा के हालातों और आने वाले चुनावों पर इसके असर के बारे में गहरी चिंता जाहिर की है. नेशनल कांफ्रेंस के नेता नासिर असलम ने कहा, “प्रशासन को चुनाव कराने से पहले इसके लिए उपयुक्त माहौल बनाने की जरुरत है. वर्तमान परिस्थिति में यह बहुत मुश्किल जान पड़ता है.”

इन चुनावों को लेकार कांग्रेस पार्टी भी संशय में है. जम्मू – कश्मीर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष जी. एन. मोंगा ने कहा, “सरकार को सबसे पहले उम्मीदवारों की पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी. कश्मीर में हालात बद से बदतर हुए हैं और ऐसे माहौल में चुनाव कराने का मतलब उम्मीदवारों की जान को गंभीर खतरे में डालना है.”
 

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