राष्ट्रपति कोविंद बातों में गले लगा रहे गाँधी, नेहरू, टीपू सुल्तान, कृष्ण अय्यर, पिनाराई विजयन को ....

NATASHA SINGH

Update: 2017-11-11 11:17 GMT

NEW DELHI: भारत के राष्ट्रपति कोविन्द अपने विचारों और भाषणों के ज़रिये एक अलग रास्ता इख्तियार करते नज़र आ रहे हैं। हाल ही में टीपू सुल्तान और केरल पर उनकी सराहनीय बयान पर भारतीय जनता पार्टी ने चुप्पी साध रखी है, जिनका बीते कई सालों से इन मुद्दों पे आलोचनात्मक दृष्टिकोण ज़ाहिर होता रहा है।

हालाँकि राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने से पहले रामनाथ कोविंद, भाजपा द्वारा ही नामांकित और पार्टी के सदस्य रहे हैं, पर उनकी हालिया टिप्पणियों को ऐसे संकेत के रूप में लिया जा सकता है कि वह पार्टी की विचारधारा को साझा करने का माध्यम नहीं बन रहे।

बिगड़ते माहौल में शुक्रवार को केरल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा एक विशेष यात्रा के तुरंत बाद, राष्ट्रपति का बयान राज्य में नाराज वाम मोर्चा सरकार के लिए मरहम का कम कर रहा है ।

उन्होंने पल्लिपुरम में केरल की टेक्नोसिटी परियोजना का उद्घाटन के दौरान कहा, "मैं समझता हूं कि सरकार डिजिटल ऑप्टिमाइजेशन करने के लिए प्रयास कर रही है और एक नए ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का इस्तेमाल करके 20 लाख गरीब परिवारों को मुफ्त इंटरनेट कनेक्शन मुहैया करा रही है।"

और उन्होंने केरल को "भारत का वैश्विक चेहरा" कहा ।

राष्ट्रपति के लिए केरल आईटी क्षेत्र में सिर्फ एक अग्रणी नहीं था, बल्कि एक परंपरा और दृष्टिकोण है जिसे उन्होंने "मानवतावादी, लोक-उन्मुख और लोकतांत्रिक" के रूप में वर्णित किया है। शाह और आदित्यनाथ के नेतृत्व में भड़काऊ व गुस्से से भरा अभियान जिसमें उन्होंने केरल सरकार के खिलाफ आरएसएस कार्यकर्ताओं पर हमला करने और लोकतंत्र विरोधी होने का आरोप लगाया और कहा वे 'जेहादियों' की रक्षा कर रही है और दूसरी तरफ राष्ट्रपति कोविंद का यह कहना कि राज्य सरकार भारत के लोकतंत्र को मज़बूत कर रही है।

उन्होंने कहा "स्वच्छता में, आपकी उपलब्धियां प्रशंसनीय हैं। स्थानीय और पंचायती राज में केरल ने हमारे लोकतंत्र को मज़बूत किया है," ।

राष्ट्रपति कोविंद द्वारा टीपू सुल्तान की प्रशंसा करना भाजपा के लिए तत्तैया के छत्ते में हाथ डालने जैसा है, टीपू सुल्तान को हमेशा पार्टी द्वारा "हिंदुत्व विरोधी" के रूप में पेश किया जाता है।

यहाँ तक कि भाजपा के केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने टीपू सुल्तान को "क्रूर हत्यारा, कट्टरपंथी और सामूहिक बलात्कारी" के रूप में वर्णित किया था।

"ब्रिटिशों के खिलाफ एक ऐतिहासिक लड़ाई में टीपू सुल्तान की मौत हो गई।“ कोविंद कर्नाटक विधानसभा को संबोधित कर रहे थे और उनके भाषण का स्वागत कांग्रेस के विधायकों ने प्रशंसनीय करतल ध्वनि से किया ।

उन्होंने कहा "मैसूर, युद्ध में रॉकेट के विकास और उपयोग में अग्रणी था। यह तकनीक बाद में यूरोपीय लोगों द्वारा अपनाई गई।“

बहुत ही शर्मिंदगी के साथ भाजपा के पास कोई स्पष्टीकरण नहीं था सिवाय इसके कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने राष्ट्रपति के भाषण को मसौदा तैयार किया था।

पर कांग्रेस विधायकों ने बेंगलुरु में जो सवाल उठाया था, भारत के राष्ट्रपति क्या शब्दों को समझे बगैर ही पढ़ते हैं ? इसके अलावा राष्ट्रपति के भाषण उनके सचिव और उनके स्टाफ के दूसरे सदस्यों द्वारा तैयार किये और जांचे जाते है । ऐसे भाषणों को केंद्र सरकार भी मंजूरी देती है।

राष्ट्रपति को जिन प्रोग्राम में शामिल होना होता है राज्य सरकार उसमें दखल रखते हुए अपने सुझाव देती है, पर उसे राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है, हालांकि हाल के वर्षों में केंद्र सरकार का दखल रहा है। इस तथ्य को देखते हुए कि राष्ट्रपति कोविंद पहले भाजपा के साथ थे, राजनीतिक दलों का यह मानना था कि राष्ट्रपति केंद्र की भाजपा सरकार से सुझावों को (उनसे ज्यादा नहीं कहा जा सकता है) ले कर लचीले होंगे, विशेषकर जब वह केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों का दौरा कर रहे थे, जो विपक्ष में भाजपा के चरम प्रतिद्वंद्वियों द्वारा शासित थे।

राष्ट्रपति कोवीन्द अपने भाषणों के साथ अधिक सशक्त रेखा खींच रहे हैं, जो निश्चित रूप से एक ही राजनीतिक लाइन को आगे नहीं बढाती हैं। दरअसल, वह ऐतिहासिक आंकड़े और अन्य बातों अपने भाषणों में काफी शामिल कर रहे हैं, शपथ ग्रहण करने के बाद से उनके विभिन्न भाषणों में उन ऐतिहासिक आकड़ों और व्यक्तियों को शामिल किया गया है जिन्हें भाजपा विशेष रूप से पसंद नहीं

करती है। राष्ट्रपति के भाषण में एक आवर्ती विषय है: उनलोगों का नाम लेना जिनका उस क्षेत्र में योगदान है जिसके बारे में राष्ट्रपति बात कर रहे हैं। यहां वह भेदभावपूर्ण या पक्षपातपूर्ण नहीं है और वह उन सभी राजनीतिक नेताओं या न्यायाधीशों को अपने भाषण में शामिल करते हैं जिनको लेकर बीजेपी अतीत में विरोध के स्वर दे चुकी है।

इसलिए गांधी और जवाहरलाल नेहरू भी राष्ट्रपति कोविंद के संदर्भों से अछूते नहीं रहे । वास्तव में उनकी स्वतंत्रता सेनानियों की सूची व्यापक और गैर-पक्षपातपूर्ण है जैसे कि यह देखिये:

"स्वतंत्रता सेनानियों सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक़उल्ला खां खान, बिरसा मुंडा और अन्य हजारों ने हमारे लिए अपनी जान दे दी थी। हम उन्हें कभी नहीं भूल सकते ।“

हमारे स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआती दिनों से, हमें क्रांतिकारी नेताओं की एक आकाशगंगा के साथ आशीर्वाद मिल रहा है, जिन्होंने हमारे देश को निर्देशित किया।

उन्होंने न सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता की बात की महात्मा गांधी ने भारत और भारतीय समाज के नैतिक चरित्र पर जोर दिया। गांधीजी ने जो सिद्धांत बताए गए हैं वे आज भी प्रासंगिक हैं।

गांधीजी स्वतंत्रता और सुधार के लिए इस देशव्यापी संघर्ष में अकेले नहीं थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हमारे लोगों से कहा, "मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।" उनके शब्द पर, लाखों भारतीय उनके नेतृत्व में आजादी के आंदोलन में शामिल हुए और अपना सब कुछ कुर्बान कर दिए।

नेहरूजी ने जोर देकर कहा कि भारत की पुरानी विरासत और परंपराएं प्रौद्योगिकी के साथ सह-अस्तित्व में है और हमारे समाज के आधुनिकीकरण को बढ़ावा दे रही हैं।

सरदार पटेल ने हमें राष्ट्रीय एकता और अखंडता के महत्व को समझाया और एक अनुशासित राष्ट्रीय चरित्र दिया।

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने कानून व शासन की संवैधानिक व्यवस्था के गुणों और शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया।

राष्ट्रपति ने केरल उच्च न्यायालय और उसके न्यायाधीशों की खुले दिल से प्रशंसा की। जिनमें से उन्होंने कुछ नामों को ख़ास उजागर किया जैसे कि

जस्टिस वी.आर.कृष्ण अय्यर जो कि बीजेपी व दक्षिण पंथ के एक प्रसिद्ध आलोचक हैं। राष्ट्रपति ने केरल के कानूनी समुदाय के सदस्यों को संबोधित करते हुए जस्टिस अय्यर को "हमारे देश के उल्लेखनीय मानवतावादी न्यायाधीश के रूप में वर्णित किया।" उन्होंने केरल उच्च न्यायालय में "लोगों के अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं के प्रति संवेदनशीलता" के लिए प्रशंसा की।

कर्नाटक में भी अपने भाषण के के दौरान राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों के योगदान की प्रशंसा करी जिनमें मुख्य रूप से तीन नाम के.सी. रेड्डी, केंगल हनुमन्तैया और कडियडल मंजप्पा शामिल थे और इसके साथ ही "कई अन्य नामों को याद करते हुए ख़ुशी महसूस करनी चाहिए एस निजलिंगप्पा, देवराज उर्स, बी.डि.जट्टी, जो बाद में भारत के उपराष्ट्रपति बने, रामकृष्ण हेगड़े, एसआर,बोम्माई, वीरेन्द्र पाटिल, एसएम कृष्णा और निश्चित रूप से हमारे पूर्व प्रधान मंत्री और मेरे दोस्त, श्री एच डी डी देवगौड़ा”

यह कहने की ज़रुरत नहीं है कि इस सूची में ज्याद तर नाम भाजपा विरोधी रहे हैं।

25 जुलाई, 2017 को राष्ट्रपति ने अपना पद ग्रहण किया है इस बात को अभी 3 माह ही हुए हैं यह अभी शरुआत है आगे के अध्यायों में क्या होगा इसपे हमारे साथ नज़र रखिये।

(नताशा सिंह)

Similar News

Uncle Sam Has Grown Many Ears
When Gandhi Examined a Bill
Why the Opposition Lost
Why Modi Won