जस्टिस लोया की मौत से जुड़ी ख़बर आठ महीने तक नहीं छपी

नामी गिरामी पत्रकारों की मदद के बाद कारवां में खबर छपी

Update: 2018-01-18 11:21 GMT

जस्टिस वृजगोपाल लोया की मौत से जुड़ी खोजपूर्ण ख़बर लिखने वाले वाले पत्रकार निरंजन टाकले बताते है कि उन्होने इस खबर की जांच फरवरी 2017 में पूरी कर ली थी। लेकिन जांच में जितना वक्त लगा उससे ज्यादा वक्त उस खबर को छपने में लगा।

निरंजन जिस सभा में अपनी इस खबर का सफरनामा बयां कर रहे थे उस समय दिल्ली के आईएसआई के सभागार में दर्जनों पत्रकार मौजूद थे और जस्टिस लोया की मौत के बाद राजनीति और न्यायापालिका में आई गर्मी को लेकर चल रही बहस को कवर कर रहे थे।

पत्रकार निरंजन के बताया कि उनकी यह ख़बर लगभग आठ महीने तक दबी रही। कारवां में नवंबर 2017 में इस खबर के छपने से पहले उन्होने अपनी इस खोजपूर्ण खबर को दूसरे मीडिया संस्थान में दिया था। लेकिन वहां उस खबर को न तो छापा जा रहा था और ना ही छापने से वे मना कर रहे थे।

जस्टिस लोया की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर आल इंडिया पीपुल्स फोरम ने भारतीय सामाजिक संसथान (आईएसआई) में एक जनसभा बुलाई थी। उसी सभा में निरंजन टाकले ने पहली बार जस्टिस लोया की खबर की जांच और उसके छपने का सफरनामा पेश किया। उन्होंने बताया कि जस्टिस लोया वाली ख़बर जब फरवरी 2017 में पूरी कर ली तो “कायदे से इस स्टोरी को मार्च या अप्रैल 2017 के अंक में छपना था। लेकिन वे इंतजार ही करते रहे। आखिरकार आठ महीने के लंबे इंतजार के बाद अक्टूबर 2017 में संपादक का अंतिम जवाब मिला। उस संपादक ने जस्टिस लोया की मौत से जुड़ी खबर को छापने से मना कर दिया।“

निरंजन ने बताया कि “संपादक के इंकार करने के मेरे लिए उस संस्थान में आगे काम करना संभव नहीं था। यह एक बेहद अहम ख़बर थी और इसका छपना कई लिहाज से जरुरी था। मैं लगातार इस कोशिश में लगा रहा कि किसी भी तरह से यह ख़बर अवाम के सामने आये। आख़िरकार कारवां में यह ख़बर छपी।“

इस ख़बर से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे जस्टिस लोया की भांजी नुपूर ने उसने संपर्क किया था और उसके बाद जस्टिस लोया की बहन और पिता के साथ उनकी बातचीत हुई। जस्टिस लोया के बेटे अनुज के साथ अपनी मुलाक़ात के बारे में उन्होने अपना अनुभव साझा किया और कहा, ”एक पत्रकार की यह जिम्मेदारी है कि वह बिना डरे सच लिखने का हौसला दिखाये।“

पत्रकारिता में साहस की जरुरत होती है। इस बात पर जोर देते हुए उन्होने कहा कि पत्रकारों के भीतर डर पैदा किया जाता है ताकि वे सच्चाई को सामने लाने के अपने इरादों से मुंह फेर लें। लेकिन उन्होने तय कर लिया था कि वे जस्टिस लोया की मौत से जुडी अपनी खोजपूर्ण रिपोर्ट को छपवाने की हर संभव कोशिश करेंगे। उन्होने बताया कि दो तीन नामी गिरामी पत्रकारों ने उनकी मदद की और तब कारवां में यह खबर नवंबर 2017 में लोगों के सामने आई।

उन्होने बताया कि खबर छपने के बाद उन्हें कई दिनों तक अपना मोबाईल बंद करना पड़ा था। निरंजन के मुताबिक जब उनका मोबाईल स्वीच ऑफ था तब कई लोगों ने ये कहना शुरु कर दिया कि निरंजन डर गया है । उन्होने स्पष्ट किया कि खबर छपने के बाद वे किसी तरह से भयभीत नहीं हुए और ना ही अब भी हैं। उन्होने डर के खिलाफ एक लंबी कविता भी सुनाई। निरंजन इससे पहले सावरकर पर भी एक खोजपूर्ण सामग्री पाठकों के सामने लाकर लोकप्रियहुए थे।

Similar News

Uncle Sam Has Grown Many Ears
When Gandhi Examined a Bill
Why the Opposition Lost
Why Modi Won