"प्रधानमंत्री की सहमति के बिना पत्रकारों को डराने वाला फैसला लेना स्मृति ईरानी के लिए संभव नहीं"

यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने सरकार के आदेश की आलोचना की

Update: 2018-04-06 13:25 GMT

पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा हाल में जारी एक विवादस्पद आदेश के बहाने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक फिर निशाना साधा है. एक बयान में श्री सिन्हा ने कहा, "प्रधानमंत्री की सहमति के बगैर स्मृति ईरानी की मजाल नहीं थी कि वो फेक न्यूज़ से संबंधित आदेश जारी कर देतीं. खासकर उस सरकार में, जहां प्रधानमंत्री की सहमति के बगैर एक सुई तक न गिरती हो, यह संभव ही नहीं है कि एक मंत्री इस किस्म की छूट ले ले."

द सिटिज़न से बात करते हुए श्री सिन्हा ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस बात की कतई गुंजाइश नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जानकारी के बगैर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने गलत खबर देने की सजा के तौर पर पत्रकारों की सरकारी मान्यता रद्द कर देने वाला आदेश जारी कर दिया हो. लम्बा प्रशासनिक अनुभव रखने वाले इस पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब यह स्पष्ट हो गया कि यह आदेश लोगों को रास नहीं आ रहा तो प्रधानमंत्री ने झट से मौके का लाभ उठाकर श्रीमती ईरानी को "धता" बताते हुए उक्त आदेश को निरस्त कर दिया. जबकि श्रीमती ईरानी महज आदेशों का पालन भर कर रही थीं.

यही नहीं, इस आदेश के निरस्त होने की घोषणा के बाद कई टेलीविज़न समाचार चैनलों ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा एक "नायक" के तौर पर की.

पत्रकार एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण शौरी की तर्ज पर श्री सिन्हा ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि प्रधानमंत्री की पूर्ण सहमति के बिना श्रीमती ईरानी इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकती. उन्होंने कहा, "मेरे मन में इसको लेकर कोई दुविधा नहीं है कि यह पूरा घटनाक्रम प्रधानमंत्री द्वारा रचा गया और उनकी पहल पर ही इसे अंजाम दिया गया." उन्होंने आगे जोड़ा कि जब इस आदेश पर अपेक्षा से कहीं अधिक तीखी प्रतिक्रिया मिलने लगी तो प्रधानमंत्री ने स्मृति ईरानी को बीच मझधार में छोड़ देने का फैसला कर लिया और अपने ही निर्णय से खुद को अलग कर लिया.

श्री सिन्हा इस बात से मुतमईन थे कि मीडिया को काबू में रखने की इस किस्म की कोशिश आगे भी जारी रखी जायेगी. उन्होंने कहा, "वे खतरनाक विकल्पों की खोज में लगे रहेंगे." हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनके हिसाब से समूची मीडिया पर उनका पहले से ही नियंत्रण है. उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया और इक्का - दुक्का टेलीविज़न समाचार चैनलों और समाचारपत्रों को छोड़कर बाकी सब वही कर रहे हैं जैसा उन्हें करने को कहा जा रहा है. बाकी सबों ने आत्मसमर्पण कर दिया है क्योंकि उन्हें डर है कि "नापसंद लोगों को सबक सिखाने के लिए वे किसी हद तक जा सकते हैं".

इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक अरुण शौरी ने एनडीटीवी के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि उन्हें विश्वास नहीं है कि इस किस्म का आदेश प्रधानमंत्री मोदी की जानकारी के बगैर पारित किया गया होगा. उन्होंने कहा, " ऐसा कैसे संभव है? जब उनकी मर्जी के बगैर एक पत्ता तक नहीं खड़कता हो ,,, आपको लगता है कि इस किस्म के दूरगामी असर वाला आदेश प्रधानमंत्री कार्यालय को विश्वास में लिए बगैर तैयार किया जाएगा?"

श्री शौरी के हिसाब से उक्त आदेश का गलत खबर या फेक न्यूज़ से कोई लेना - देना नहीं था. उन्होंने कहा, " इस बात को अच्छी तरह समझ लेने की जरुरत है कि जिस मकसद के बारे में हमें आश्वस्त करने की कोशिश की जा रही थी उससे सरकार के इस किस्म के कदम का से कोई लेना - देना नहीं है क्योंकि फेक न्यूज़ को प्रोत्साहित करने में सबसे आगे वही लोग हैं."

उन्होंने कहा कि इस पूरे घटनाक्रम का सबक यही है कि जब कभी भी सरकार इस किस्म की हरकत करने की कोशिश करे तो जवाबी प्रतिक्रिया इतनी तीव्र होनी चाहिए कि उन्हें अपने कदम वापस खीचने पड़ें.

उन्होंने आगे कहा कि इस किस्म की कवायद के जरिये सरकार प्रेस को काबू में रखने की जुगत में है. इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हमेशा सच का दामन थामे रखा जाए.

एडिटर्स गिल्ड एवं अन्य पत्रकार संगठनों ने सरकार के इस कदम की घोर आलोचना की और सरकार को भविष्य में इस किस्म के कदम से बाज आने की चेतावनी दी.

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