“गोरखपुर मेरा घर है, भारत का मैं नागरिक हूं”

डॉ कफ़ील के साथ एक बातचीत

Update: 2018-05-11 16:42 GMT

मैं गोरखपुर छोड़कर नहीं जाऊंगा. मैं यह देश छोड़कर नहीं जाऊंगा. यह मेरा घर है, यहां मेरी आत्मा बसती है,” ये शब्द थे डॉ. कफ़ील खान के, जो गोरखपुर जेल से छूटने के बाद पहली बार पत्रकारों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों से रूबरू थे.

नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में अपने अनुभवों को साझा करते हुए इस नौजवान डॉक्टर ने कहा, “ यह एक अजीबोग़रीब अनुभव है क्योंकि यही वो जगह है और वही वो लोग हैं जिनके सामने आकर मेरे परिजनों ने आकर सारी दुनिया को बताया था कि उस रात क्या हुआ था और मेरी भूमिका क्या थी. मैं बहुत ही खुशकिस्मत हूं कि मैं जेल से बाहर आ सका, जबकि कई लोग वहां अभी भी बंद हैं.”

द सिटिज़न की संपादक सीमा मुस्तफा के साथ बात करते हुए, अपनी शुरुआती टिप्पणी में डॉ. खान ने द सिटिज़न की टीम को जेल में होने के बावजूद उन्हें याद रखने, उनके बारे में लिखने और बिना जमानत के आठ महीनों तक जेल में बंद रहने के बाद उन्हें वापस चर्चा के केंद्र में लाने के लिए तहेदिल से शुक्रिया अदा किया. अदालत से जमानत मिलने के बाद डॉ खान गोरखपुर जेल से छूटे हैं.

अपने अनुभवों को साझा करते हुए डॉ. खान ने पूरी संवेदना और ईमानदारी के साथ अपनी बात रखी. जिस किस्म की वेदना से उनका परिवार गुजरा, उसके बारे में बताते हुए उनका गला कई बार रुंधा और उनकी आंखें भर आयीं. लेकिन उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि अब उन्हें कोई डर नहीं है और वे न्याय के लिए लड़ेंगे. उन्होंने कहा, “इस पूरे घटनाक्रम में मैंने यह सीखा कि बोलना जरुरी है. अगर आप निर्दोष हैं, अगर आपने कुछ भी गलत नहीं किया है, तो डरने और चुप रहने के बजाय आपको बोलना चाहिए.”

गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) अस्पताल में कई बच्चों की मौत के बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा डॉ. खान को गिरफ़्तार किया गया था. वे उस अस्पताल में एक रेजिडेंट डॉक्टर के तौर पर कार्यरत थे और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनके खिलाफ धारा 308 (गैर इरादतन हत्या) और धारा 409 (विश्वास का आपराधिक उल्लंघन) के तहत मामला दर्ज किया गया था. उस अस्पताल में ऑक्सीजन के सिलिंडर के अभाव में चार दिनों के भीतर 63 बच्चों की मौत हो गयी थी.

डॉ. खान ने बताया कि यातना की उस लंबी घड़ी में कोई भी उनके पास नहीं आया. दोस्त और रिश्तेदार उन्हें फ़ोन तक करने से डरते थे. उनके अपने परिवार के अलावा बाकी सब उनका साथ छोड़ गये. लेकिन जब वे रिहा होकर आखिरकार बाहर आये, तो बच्चों के माता – पिता समेत सैकड़ों लोगों को हाथ में माला लिये उनके स्वागत में खड़े देखकर वे भाव विह्वल हो गये.

उन्होंने कहा, “ मैं गोरखपुर के एक मध्यम वर्गीय परिवार से आता हूं. हम छह भाई – बहन हैं और मेरे वालिद की इच्छा थी कि उनके बेटे डॉक्टर बनें. मैंने मनिपाल से एमबीबीएस किया. वहां 12 सालों तक रहा और शिशु रोग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर कार्य किया. मैंने 8 अगस्त 2016 को बीआरडी अस्पताल के शिशु रोग विभाग में लेक्चरर के तौर पर योगदान दिया.”

घटना वाले दिन के बारे में उन्होंने बताया, “ मैं 10 अप्रैल को छुट्टी पर था. उसके एक दिन पहले योगी जी अपने पहले आधिकारिक दौरे पर अस्पताल आये थे. उन्हें हाई डिपेंडेंसी यूनिट का उद्घाटन करना था और हमलोगों ने उसके लिए कड़ी मेहनत की थी. रात को दास बजे मुझे एक संदेश मिला कि अस्पताल में तरल ऑक्सीजन की कमी हो गयी है और जितने भी बचे सिलिंडर थे वे सब ख़त्म होने के कगार पर हैं. उसके बाद मैंने सबको फोन करना शुरू किया. मैंने विभागाध्यक्ष और प्राचार्य को फोन किया. प्राचार्य उपलब्ध नहीं थे. मैंने साथियों और कार्यकारी प्राचार्य से संपर्क किया और खुद अस्पताल पहुंच गया. मैंने आसपास के अस्पतालों और स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं से संपर्क कर जंबो सिलिंडर की व्यवस्था करने की कोशिश की. लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली. तब हमलोगों ने सीमा सुरक्षा बल से संपर्क किया और उनकी मदद से सिलिंडर हासिल किया. 10 अप्रैल को 7:30 बजे तक तरल ऑक्सीजन समाप्त हो चुका था और हमलोगों को जंबो सिलिंडर चालू करना पड़ा, जोकि 11: 30 बजते – बजते ख़त्म हो गया. दरअसल 11:30 बजे से लेकर 1:30 बजे तक कुछ भी नहीं बचा था. हमलोगों ने एन्जियोवैक के सहारे बच्चों की जिंदगी बचाने की कोशिश की.”

उन्होंने आगे कहा, “ जूनियर डॉक्टर, नर्स एवं अस्पताल के अन्य कर्मचारी मिलाकर हम कुल 16 लोग थे. सीनियर डॉक्टर अगले दिन आये. दस तारीख की रात से अगले 48 घंटे अस्पताल में बीते और उस अवधि में लगभग 500 सिलिंडरों की व्यवस्था की गयी. 12 अप्रैल की रात 11 : 30 बजे तरल ऑक्सीजन अस्पताल पहुंचा. हमलोगों ने तरल ऑक्सीजन को अस्पताल के मुख्य पाइपलाइन से जोड़ा.”

डॉ. खान ने कहा कि यह “पूरी तरह से एक प्रशासनिक विफलता” थी. उन्होंने अफ़सोस के लहजे में कहा कि अफवाह उड़ाने वाले और तथ्यों को तोड़ – मरोड़कर पेश करने वाले लोगों द्वारा मीडिया के मंचों का इस्तेमाल उनकी छवि धूमिल करने के लिए किया गया.

उन्होंने कहा, “13 तारीख की सुबह योगी जी के आने से पहले ही मेरे खिलाफ अभियान शुरू हो चुका था. और जब वे आये, तो उन्होंने मुझसे पूछा ‘तुम डॉ. कफ़ील हो? तुम कहां से सिलिंडर लाये?’ सारे डॉक्टर वहां मौजूद थे. उन्होंने आगे कहा, ‘तुम सोचते हो कि सिलिंडर लाके हीरो बन जाओगे? मैं देखता हूं.’ इसके बाद मेरे लिए सब कुछ ख़त्म हो चुका था. सबलोग मुझे वहां से जाने और दो दिन बाद वापस आने के लिए कहने लगे. वे मुझे कुछ न कहने और वहां से चले जाने को कहने लगे. जब मैं घर पहुंचा, तो मुझे लगातार फोन आने लगे जिसमें मुझे एक मुठभेड़ का शिकार बनाने से लेकर लखनऊ भाग जाने तक की बातें कही गयी.”

डॉ. खान ने बताया, “ इसके बाद मैं लखनऊ और फिर दिल्ली पहुंचा. इस बीच उन्होंने मेरे परिवार को तंग करना शुरू कर दिया. मुझे पता चला कि मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुका है और मेरी गिरफ़्तारी का वारंट जारी हो चुका है. उन्होंने मेरे भाई को गिरफ्तार कर लिया और मेरी बहन को गिरफ्तार करने वाले थे. तब मैं समझ गया कि मेरे पास आत्मसमर्पण करने के अलावा और कोई उपाय नहीं है.”
 

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