न्याय की लड़ाई, दमन और लूट के ख़िलाफ़ लड़ने से रोकने के लिए है यह गिरफ्तारी

दलित मानवाधि‍कार कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग

Update: 2018-06-10 10:09 GMT

जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) महाराष्ट्र पुलिस द्वारा जन आंदोलनों से जुड़े मानवाधि‍कार कार्यकर्ताओं प्रोफेसर शोमा सेन, एडवोकेट सुरेंद्र गडलिंग, सुधीर धावले, रोना विल्सन तथा महेश राउत के उत्पीड़न और गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करता है तथा उनकी बिना शर्त फ़ौरन रिहाई की मांग करता है। 6 जून 2018 की सुबह 6 बजे के आसपास नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी विभाग की अध्यक्ष तथा लम्बे समय से महिला और दलित अधिकारों पर काम करने वाली कार्यकर्ता प्रोफ़ेसर शोमा सेन, लम्बे समय से मानवाधिकारों के हनन की लड़ाई लड़ रहे इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ पीपुल्स लॉयर (ए.आई.पी.एल.) के महासचिव एडवोकेट सुरेंद्र गडलिंग, मराठी पत्रिका विद्रोही के संपादक तथा जाति उन्मूलन से संबंधित आंदोलन रिपब्लिकन पैंथर के संस्थापक सुधीर धवले-, मानवाधिकार कार्यकर्ता तथा राजनैतिक कैदियों की रिहाई संबंधी समिति (सी.आर.पी.पी.) के सचिव रोना विल्सन- तथा गढ़चिरौली के खनन क्षेत्रों में ग्राम सभा के साथ काम कर रहे विस्थापन विरोधी कार्यकर्ता तथा प्राइम मि‍नि‍स्टर्स रूरल डेवलपमेंट फेलो रह चुके महेश राउत- के घरों पर महाराष्ट्र पुलिस द्वारा छापामारी की गई तथा इन्हें नागपुर, पुणे और दिल्ली में अलग-अलग जगहों से गिरफ़्तार किया गया। ऐसा बताया गया कि ये गिरफ़्तारी जनवरी 2018 में भीमा-कोरेगाँव में हुए प्रदर्शन के संदर्भ में की गई है।

महेश राउत राज्य तथा कॉरपोरेट द्वारा ज़मीन हथियाने, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के ख़िलाफ़ स्थानीय समितियों के साथ आदिवासी हक़ों के लिए लड़ रहे हैं। एडवोकेट गडलिंग ऐसी ही लड़ाइयों को कोर्ट में लड़ रहे हैं। वे ऐसे बहुत से दलितों तथा आदिवासियों का कोर्ट में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जिन्हें झूठे आरोपों तथा कठोर कानूनों के अंतर्गत आरोपी बनाया गया और गिऱफ्तार किया गया है। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तथा 90 प्रतिशत तक शारीरिक रूप विकलांग डॉ. जी. एन. साईबाबा के केस में भी वकील हैं। इन पर माओवादियों से संबंध रखने का आरोप है। इनके केस की सुनवाई भी जल्द ही शुरू होने वाली है।

इसी तरह प्रोफेसर शोमा सेन भी राज्य द्वारा किए जा रहे दमन विरोधी मानवाधिकार आंदोलनों से गहन रूप से जुड़ी रही हैं। शिक्षक तथा कार्यकर्ता दोनों ही भूमिकाओं में वे जिंदगी की कड़वी सचाइयों को सामने लाती रही हैं।

सुधीर धवले जाने माने दलित अधिकार कार्यकर्ता तथा लेखक हैं। इन्हें 2011 में यू.ए.पी.ए. के अंतर्गत गिरफ़्तार किया गया था लेकिन सुबूत के अभाव में 2014 में उनको रिहा कर दिया गया।

रोना विल्सन वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे ए.एफ.एस.पी.ए.(आफ़्सपा), पी.ओ.टी.ओ.(पोटा),

यू.ए.पी.ए. जैसे कठोर कानूनों के मुखर विरोधी रहे हैं।

हमारा मानना है कि भीमा कोरेगाँव केवल एक बहाना है। इन्हें इसलिए गिरफ्तार किया गया है ताकि इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को न्याय की लड़ाई, दमन तथा आदिवासी क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट के ख़िलाफ़ लड़ने से रोका जा सके।

अप्रैल में भी इन कार्यकर्ताओं के घर पर छापामारी की गई थी। महाराष्ट्र पुलिस ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण औरकागजात भी जब्त किए थे। उसी दौरान पुलिस ने कबीर कला मंच के संस्कृतिकर्मियों रूपाली जाधव, ज्योति जगतप, रमेश गायेचोर, सागर गोरखे, धवला ढेंगाले तथा रिपब्लिकन पैंथर कार्यकर्ता हर्शाली पोतदार के घर पर भी छापा मारा था। पुणे के विश्रामबाग पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई शुरूआती एफ़.आई.आर. में सुधीर तथा कबीर कला मंच के दूसरे सदस्यों को नामित किया गया था। दलित कार्यकर्ता तथा गुजरात के विधायक जिगनेश मेवाणी तथा छात्र कार्यकर्ता उमर ख़ालिद पर भी एफ.आई.आर. किया गया। इन्हें भीमा कोरेगाँव उत्सव में वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था। बाद में, अभियोजन पक्ष ने चार्जशीट में सुरेंद्र गडलिंग तथा रोना विल्सन का नाम जोड़ने के लिए अपील की। कोर्ट के कागज़ात में महेश राउत तथा शोमा सेन के नाम का कहीं कोई उल्लेख नहीं था।

भीमा कोरेगाँव उत्सव के संदर्भ में हाल में इन कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी संशय उत्पन्न करता है। जिन्हें गिरफ्तार किया गया है, उनमें से कुछ लोग इस उत्सव या उसके बाद के प्रदर्शन में शामिल नहीं थे। हमारा मानना है कि सरकार सुनियोजित रूप से उन आवाज़ों को दबा देने पर तुली है जो उनको चुनौती दे रही हैं या उनकी आलोचना कर रही हैं। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कश्मीर, पूर्वोत्तर के राज्यों तथा बाकी दूसरी जगहों पर भी यही किया जा रहा है।

इस शासन व्यवस्था में कार्यकर्ताओं पर हमला नई बात नहीं है। तर्कपूर्ण विचारकों नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एम.एम. कलबुर्गी तथा गौरी लंकेश की जघन्य हत्या दक्षिणपंथी हिंदुत्व समूह के सदस्यों द्वारा दिनदहाड़े कर दी गई थी। जुनैद, अख़लाक़ तथा पहलू ख़ान जैसे साधारण लोगों को पीट-पीट कर मार डाला गया। झारखंड में मज़दूर संगठन समिति जैसे ट्रेड यूनियन को प्रतिबंधित कर दिया गया। अधिकारों के लिए लड़ने वाले समूहों तथा व्यक्तियों को काम करने से रोका गया तथा उनके बैंक खातों को सील कर दिया गया या झूठे आरोप में फंसाया गया। उत्तर प्रदेश के चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ तथा झारखंड के बच्चा सिंह जैसे जन नेताओं, तीस्ता सेतलवाड़ जैसी पत्रकार, डॉ जी.एन. साईबाबा जैसे प्रोफ़सर, छात्र कार्यकर्ता, कार्टूनिस्ट, तथा जनता की आवाज़ उठाने वालों को कठोर कानूनों के अंतर्गत गिरफ़्तार किया जा रहा है। मीडिया ट्रायल, झूठी ख़बरों की संस्कृति तथा सोशल मीडिया द्वारा अभियोग चलाकर जनमानस में उन लोगों के ख़िलाफ़ ज़हर घोला जा रहा है जो सत्ता के सामने सच बोलने का साहस कर रहे हैं। ऐसा करके बाकी लोगों के दिलों में भी डर बिठाया जा रहा है। तमिलनाडु के तुतीकोरिन में स्टरलाईट कॉपर फैक्ट्री के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे नागरिकों की पुलिस द्वारा हत्या हो या हाल ही में ‘माओवाद’ के नाम पर गढ़चिरौली में छोटे छोटे बच्चों समेत 40 लोगों का फर्जी एनकाउंटर हो- राज्य अपने ही लोगों का दमन करने पर तुली है। ये इस प्रकार की हिंसा के कुछ उदाहरण हैं जो हमें याद दिलाते हैं कि ये कुछ कथित भूमिगत संगठन नहीं है जिनसे ख़तरा है बल्कि वह हमारी सरकारें हैं, जिसे लोग चुनते हैं, जिनमें उनकी आस्था है, आज वही सरकारें लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बन गई हैं।

हम माँग करते हैं :

1. प्रोफेसर शोमा सेन, एडवोकेट सुरेंद्र गडलिंग, सुधीर धवले, रोना विल्सन, महेश राउत तथा अन्य राजनैतिक क़ैदियों की तुरंत बिना शर्त रिहाई की।

2. भीमा-कोरेगाँव महोत्सव के बाद दलित समुदाय के विरुद्ध व्यापक हिंसा की उच्चस्तरीय जांच।

3. यू.ए.पी.ए. तथा आफ़्सपा और पोटा जैसे कठोर कानूनों को तुरंत पूरी तरह निरस्त करने की जिसके जरिए देश भर में लोगों को आतंकित किया जाता है। यह कानून पुलिस तथा सेना को ऐसी शक्ति देता है जिस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।

4. भीमा कोरेगाँव के दो सौ साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित समारोह के आयोजकों या इसमें हिस्सा लेने वालों पर हो रहे राजकीय दमन तथा बदले की कार्रवाई को तुरंत बंद किया जाए।

5. संभाजी भिड़े पर एस.सी./एस.टी. अत्याचार निरोधक कानून के अंतर्गत दंगा फैलाने, हत्या का प्रयास करने के आरोप में तुरंत गिरफ़्तार किया जाए तथा मिलिंद एकबोटे की बेल निरस्त की जाए।

मांग करने वालों में शामिल है: मेधा पाटकर, अरुणा रॉय, निखिल डे व शंकर सिंह, पी. चेन्निया, रामकृष्णम राजू, प्रफुल्ला सामंतरा, लिंगराज आज़ाद, बिनायक सेन व कविता श्रीवास्तव, संदीप पाण्डेय, रिटायर्ड मेजर जनरल एस. जी. वोम्बत्केरे, गेब्रियल दिएत्रिच, गीथा रामकृष्णन, डॉ. सुनीलम व आराधना भार्गव, राजकुमार सिन्हा अरुल डोस, अरुंधती धुरु व मनेश गुप्ता, ऋचा सिंह, विलायोदी वेणुगोपाल, सी. आर. नीलाकंदन व प्रो. कुसुमम जोसफ, सरथ चेलूर ,मीरा संघमित्रा, राजेश शेरुपल्ली ,गुरुवंत सिंह, विमल भाई, जबर सिंह, ; सिस्टर सीलिया, आनंद मज्गओंकर, कृष्णकांत, स्वाति देसाई , कामायनी स्वामी व आशीष रंजन, महेंद्र यादव, सिस्टर डोरोथी, उज्जवल चौबे , दयामनी बारला, बसंत हेतमसरिया, अशोक वर्मा ,भूपेंद्र सिंह रावत, राजेन्द्र रवि, मधुरेश कुमार, अमित कुमार, हिमशी सिंह, उमा, नान्हू प्रसाद, फैज़ल खान, जे. एस. वालिया, कैलाश मीना, समर बागची व अमिताव मित्रा, सुनीति एस. आर., सुहास कोल्हेकर, व प्रसाद बागवे, गौतम बंदोपाध्याय, अंजलि भारद्वाज, कलादास डहरिया एवं बिलाल खान।
 

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