मांओं ने किया संसद तक मार्च

नजीब मामले में न्याय के लिए संघर्ष

Update: 2018-10-17 14:50 GMT

दो साल पहले, दिल्ली में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ झड़प के बाद जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में स्नातकोतर (विज्ञान) के प्रथम वर्ष का छात्र नजीब अहमद लापता हो गया.

तब से, उसकी गुमशुदगी के बारे में अभी तक कोई सूचना नहीं है. उसकी गुमशुदगी के ठीक दो साल बाद, इसी 15 अक्टूबर को नजीब की मां फातिमा नफीस के साथ दो और मांओं – राधिका वेमुला और सायरा खान – ने न्याय के लिए संसद तक एक विरोध मार्च में एकसाथ हिस्सा लिया.

राधिका वेमुला के बेटे, रोहित वेमुला ने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में आत्महत्या कर ली थी, जबकि सायरा खान के किशोर उम्र के बेटे जुनैद को दिल्ली से चलने वाली एक ट्रेन में भीड़ के हाथों अपनी जान गंवानी पड़ी थी.

इस विरोध मार्च में आम आदमी पार्टी की आतिशी, कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन, एलजेडी के शरद यादव और विधायक जिग्नेश मेवाणी समेत कई राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं अलीगढ़ विश्वविद्यालय के छात्र – संघ के प्रतिनिधियों के साथ – साथ बड़ी संख्या में छात्रों ने भाग लिया.

संवाददाताओं से बातचीत करते हुए फातिमा नफीस ने कहा कि वो जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कुलपति के रवैये से पूरी तरह निराश हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन एवं कुलपति जगदीश कुमार का रवैया बेहद असंवेदनशील रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि न्याय के लिए उनका संघर्ष जारी रहेगा. उन्होंने कहा, “देश के संविधान एवं न्यायपालिका पर मुझे पूरा भरोसा है.”

इसी 8 अक्टूबर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने नजीब की गुमशुदगी मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को इस मामले को बंद करने संबंधी रिपोर्ट दाखिल करने की इजाजत दे दी.

नजीब की मां के वकील कोलिन गोंसाल्वेज ने सीबीआई की अर्जी का विरोध किया है. उन्होंने सीबीआई पर आरोपियों से पूछताछ न करके उन्हें बचाने का आरोप आरोप लगाया. पीटीआई को दिये गये एक साक्षात्कार में श्री गोंसाल्वेज ने कहा, “सीबीआई अपने आकाओं के दबाव में झुक गयी है. वह निष्पक्ष एवं सही तरीके से जांच करने में असफल रही है. सीबीआई ने आरोपियों को हिरासत में लेकर पूछताछ क्यों नहीं की?”

द सिटिज़न ने इस विरोध मार्च में शामिल होने वाले विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं छात्र – नेताओं से बात की. सभी वक्तव्यों का लब्बोलुआब यही था कि “सरकार तत्परता से कार्रवाई करने एवं न्याय दिलाने में नाकाम रही है और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) भय की संस्कृति फैलाने में कामयाब है.” चूंकि पूरे देश के माहौल में बदलाव आया है, लिहाजा विश्वविद्यालय परिसरों में भी माहौल बदल गया है.

मार्च में शामिल छात्रों ने द सिटिज़न से बात करते हुए सरकार एवं जांच एजेंसी की घोर आलोचना की. उन्होंने कहा, “एबीवीपी को केंद्र सरकार का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, लिहाजा इसके सदस्य गलत हरकतों के बावजूद बच जाते हैं.”

गौरतलब है कि पिछले साल रामजस कॉलेज में हुई हिंसक झड़प में आरएसएस से जुड़े छात्र संगठन, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों ने एक सेमिनार के दौरान दर्शकों पर पत्थरों से हमला किया था.

छात्र नेताओं ने कहा, “जांच तो होती है, लेकिन उनका शायद ही कोई नतीजा निकलता है.” नजीब की गुमशुदगी के मामले में भी ऐसा ही हुआ है. सीबीआई की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली और न नजीब के बारे में पिछले दो सालों में कोई सुराग ही मिला. और अब तो सीबीआई इस मामले को बंद करने के प्रयास में है.

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