‘भागवत के नाम महात्मा गांधी का पत्र’

मंदिर – मस्जिद विवाद की पृष्ठभूमि में देश की चिंता

Update: 2018-12-03 15:20 GMT

बीती रात महात्मा गांधी मेरे सपनों में आये और उन्होंने आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत को संबोधित करते हुए यह पत्र लिखवाया.

प्रिय मोहन भागवत जी,

मैं आपको यह पत्र इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि आज भारत एक ऐसे मुकाम पर खड़ा है, जहां से हमारे राष्ट्र के भविष्य के लिए दो परस्पर धुर विरोधी संभावनाएं सामने खड़ी हैं. इनका संबंध एक बार फिर से उस जगह, जहां 6 दिसम्बर 1992 तक सदियों से बाबरी मस्जिद खड़ा था, पर राम मंदिर के निर्माण के लिए आपके संगठन से जुड़े वृहद परिवार मसलन वीएचपी, भाजपा, बजरंग दल एवं कई अन्य समूहों के लोगों द्वारा मचाये जार रहे शोरगुल से है.

आपके लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि “हिन्दुओं” का धैर्य चुक रहा है और सर्वोच्च न्यायालय को जल्दी से इस विचाराधीन मसले को निपटा देना चाहिए. आपके कुछ नेता यह दावा करने में गर्व महसूस कर रहे हैं कि बाबरी मस्जिद को महज 17 मिनटों में ध्वस्त कर दिया गया था और अगले साल जनवरी महीने से वे उस जगह पर एक “भव्य मंदिर” बनवायेंगे.

हालांकि जिस बात ने मेरा ध्यान खींचा, वो था आपका बयान. अपने बयान में आपने कहा कि देश सिर्फ संविधान से ही नहीं चलता. समाज को भी इस बात का हक़ जरुर होना चाहिए कि वह उन बातों पर जोर दे सके जिसे वह उपयोगी समझता है और जिससे जनभावनाओं का प्रतिनिधित्व होता हो.

मैं आपकी इस बात से सहमत हूं कि अकेले संविधान के बल पर कोई समाज नहीं चल सकता. निश्चित रूप से, मैंने अपने समय में अक्सर इस बात की ताईद की कि गलत कानूनों को खत्म होना चाहिए. मेरा मानना है कि कानून इंसाफ करने का औजार मात्र नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे इंसाफ और मानवता की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए.

अपने सत्याग्रह के माध्यम से मैंने नमक कानून का विरोध किया था और इस तरह के कई और उदहारण हैं. स्वतंत्रता हासिल कर लेने से बुनियादी तौर पर मेरी राय नहीं बदल जाती. गलत कानूनों एवं संवैधानिक प्रावधानों का प्रतिरोध करना एक जीवंत समाज की निशानी है, जो उसे एक अपेक्षाकृत न्यायपूर्ण एवं समानता पर आधारित व्यवस्था की ओर बढ़ने में मददगार होता है ताकि गरीब एवं कमजोर लोग भी सम्मान के साथ जी सकें.

मुझे इस बात में कोई शंका नहीं कि इस देश में ऐसे कई कानून हैं जो न्याय एवं लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है. भले ही हमारा संविधान समानता और सम्मानपूर्ण जिंदगी का वादा करता हो, लेकिन अभी भी बड़ी तादाद में लोग बुनियादी जरूरतों के बिना अपनी जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं.

यह हमारी व्यवस्था की असफलता है, जिसकी वजह से संविधान एवं कानून का शासन खतरे में पड़ता है.

इन सबके खिलाफ लड़ने वाला मैं पहला व्यक्ति होऊंगा. सत्याग्रह, जिसका एकमात्र दूसरा नाम जनता का अहिंसक आंदोलन है, अन्याय के खिलाफ शोषित और कमजोर लोगों का हथियार है. यह देखना दुखद है कि आपके लोग बहुमत की ताकत को कमजोर के खिलाफ इस्तेमाल करने और हमारे संविधान में शामिल धार्मिक स्वतंत्रता एवं कानून के समक्ष समानता के अधिकार को नजरअंदाज व निष्प्रभावी करने के लिए आजमाने की धमकी दे रहे हैं.

लेकिन आपकी चिंता कुछ और ही जान पड़ती है. आप चाहते है कि सरकार कोई ऐसा कानून लाये जिससे अयोध्या में एक राममंदिर का निर्माण हो सके. आप यह भी चाहते हैं कि मंदिर उसी जगह पर बने, जहां बाबरी मस्जिद खड़ा था. आपका दावा है कि यह ‘हिन्दुओं’ की भावना है और इसका सम्मान होना ही चाहिए.

मैं खुद को एक हिन्दू मानता हूं. लेकिन मुझे आपके इस तर्क में कोई दम नहीं नजर आता कि अगर उसी स्थान पर मंदिर नहीं बना, तो हिन्दू खुद को इस बात के लिए अपमानित महसूस करेंगे कि उनके पूज्यनीय भगवान राम को वहां जगह नहीं मिली जहां उनका जन्म हुआ था.

मुझे इस देश की बेहाल आम जनता में राम का चेहरा दिखाई देता है. यहां आज भी करोड़ों लोग बेहद तंगहाली में जी रहे हैं और उन्हें दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं है. मेरे राम दीन – दयाल (गरीब – दयालु ) हैं और उन्हें रहने के लिए किसी “भव्य” स्थान की जरुरत नहीं है.

लेकिन जैसाकि आपका हिन्दुओं के एक बड़े तबके का प्रतिनिधि होने का दावा है और आपके दावों का समर्थन करने के लिए अब आपके पास एक शक्तिशाली संगठन और राजसत्ता की ताकत है, मैं इस बात को स्वीकार करने का इच्छुक हूं कि अयोध्या में राम मंदिर उसी स्थान पर बनना चाहिए जहां बाबरी मस्जिद खड़ा था. अब यह हमारे ऊपर है कि इस अवसर को हम कैसे इस देश के दो सबसे बड़े धार्मिक समुदायों के बीच सदभाव और भाईचारे को मजबूत करने में लगायेंगे.

अगर इस मसले को दरियादिली और इंसाफ की भावना के साथ नहीं संभाला गया, तो यह एक नासूर में बदल जायेगा जोकि इस देश के भविष्य के लिए विनाशकारी साबित होगा. मेरा यह पुरजोर मानना है कि आप भी इस महान राष्ट्र को शांति और सदभाव के माहौल में रहते देखना चाहते हैं ताकि यह उन सभी देशों और समाजों के लिए एक मिसाल बने जो धार्मिक नफरत और सामाजिक विभाजन के शिकार हैं.

इस दिशा में मुझे कुछ कदम सुझाने दें.

पहला, अपने विचारों एवं संगठन से जुड़े लोगों द्वारा अन्य समुदाय के एक पूजा-स्थल को गिराये जाने की घटना पर आप सार्वजानिक रूप से अफसोस जाहिर करें.

कानून के हिसाब से यह एक आपराधिक कृत्य था और इसका कोई नैतिक आधार नहीं था क्योंकि पूजा – स्थल के एक ढांचे और एक संरक्षित ऐतिहासिक धरोहर, चाहे आपकी नजर में उसका अस्तित्व कितना भी विविदास्पद क्यों न हो, को गिराने के लिए ताकत का इस्तेमाल किया गया था. मुसलमानों के मुकाबले काफी बड़ी तादाद वाले बहुसंख्यक समुदाय से होने के नाते आगे बढ़कर इस अल्पसंख्यक समुदाय के जख्मों पर मरहम लगाने की जिम्मेदारी आपकी थी.

इससे शांति और सुलह के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए दोनों समुदायों के लिए एक सही वातावरण बनेगा. माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता. किसी की गलतियों के लिए प्रायश्चित करना सही राह पर बढ़ने का पहला कदम है. आपकी ज़िम्मेदारी इस लिहाज से बड़ी बन जाती है कि आज आपका संगठन शायद देश में सबसे शक्तिशाली संगठन है और केंद्र सरकार भी आपके विचारधारात्मक परिवार का हिस्सा है.

दूसरा, आपको अपने स्वयंसेवकों को आगे आकर अपने हाथों से बाबरी मस्जिद वाली जगह के बगल में मलबों के किसी तरफ एक मस्जिद बनाने के लिए कहना चाहिए. जरुरी नहीं कि वह मस्जिद बड़ी ही हो, उसमें बस प्रार्थना करने भर की जगह होना पर्याप्त होगा. आपके स्वयंसेवक वहां उपलब्ध जगह में पेंड़ भी लगा सकते हैं. फूलों से उस मस्जिद की जगह को खूबसूरत बनाया जा सकता है. अयोध्या – फैजाबाद इलाके से जुड़े आपके संगठन के किसी वरिष्ठ हिन्दू अधिकारी को उस मस्जिद का संरक्षक नियुक्त किया जा सकता है. ऐसा उस इलाके के मुसलमानों के साथ सलाह – मशविरा करके किया जा सकता है.

मलबे के दूसरी तरफ, हिन्दुओं की पूजा के वास्ते राम की मूर्ति रखने के लिए मुसलमानों द्वारा एक जगह का निर्माण किया जा सकता है. इस ढांचे को भी बहुत भव्य होने की जरुरत नहीं है. पौधों, फूलों एवं एक तालाब से लैस एक खुली जगह को राम की मंदिर के लिए उपयुक्त माना जाना चाहिए. राम की मूर्ति एवं पूजा के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को छाया प्रदान करने के लिए वहां एक बरगद या पीपल का पेड़ लगाया जा सकता है. मुझे यकीन है कि भगवान राम ऐसे साधारण और नैसर्गिक जगह में रहकर प्रसन्न होंगे.

लेकिन सबसे जरुरी बात यह है कि किसी मुसलमान को इस मंदिर का संरक्षक बनाया जाये. उसे भी अयोध्या – फैजाबाद इलाके से जुड़ा होना चाहिए. अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को ढूढ़ सकें जिसका परिवार बीफ खाने, गौ – तस्करी या इसी तरह की किसी हरकत के नाम पर मॉब – लिंचिंग का शिकार हुआ हो, तो अच्छा होगा. उसे संरक्षक का दायित्व सौंपा जा सकता है.

मलबा, जोकि 6 दिसम्बर 1992 से पहले बाबरी मस्जिद था, को जस का तस छोड़ देना चाहिए. उस ढेर में पत्थरों के ऐसे टुकड़ों को शामिल किया जा सकता है जिसपर सभी धर्मों से जुड़ी मानवता, गरीब और कमजोरों से प्यार, समावेशी और सहिष्णुता एवं एकता की बातें खुदी हों. ऐसी कई सूक्तियां रामायण, महाभारत, कुरान, बाइबिल और गुरुग्रंथ साहिब में मौजूद हैं.

एक मंदिर और एक मस्जिद से घिरा बाबरी मस्जिद का मलबा हमें अतीत में अपनी बर्बर अभिव्यक्ति के बावजूद संकीर्ण सांप्रदायिक घृणा से ऊपर उठने की हमारी क्षमता की याद दिलाता रहेगा.

आपको मुसलमानों को इस बात का भी भरोसा दिलाना चाहिए कि भविष्य में देश के किसी भी हिस्से में, चाहे मामला मथुरा का हो या कशी का या फिर किसी अन्य मंदिर का, इस किस्म की मांग नहीं दोहरायी जायेगी. इसमें कोई दो राय नहीं कि विभिन्न समुदायों के ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं जिन्हें अतीत में ध्वस्त या क्षतिग्रस्त किया गया था. मुझे भरोसा है कि आप भी इस बात से सहमत होंगे कि हम अतीत को हमारे वर्तमान और भविष्य को नुकसान पहुचाने नहीं दे सकते और न ही हमें इसकी अनुमति देनी चाहिए. धार्मिक उन्माद और विभाजन के जहर की जगह भाईचारे और समन्वय की भावना को तरजीह देना जरुरी है.

इस देश की धरती किसी एक समुदाय विशेष की नहीं है. यह हमारी साझी विरासत है और देश में समानता एवं एकता को मजबूत करना हमारा कर्तव्य है.

मोहन, मैं अपने पत्र को इस उम्मीद के साथ समाप्त करना चाहूंगा कि आप इस मौके का इस्तेमाल भारत को एक ऐसे राष्ट्र में तब्दील करने में करेंगे जिसे उदार, न्यायपूर्ण एवं समानता पर आधारित होने का गर्व हो और जिसके नागरिक अपने धर्म का पालन करते हुए बाकी अन्य धर्मों का समान रूप से आदर करें. भारत ने बाहर से यहां आये सभी समुदाय को सम्मान दिया है. आज अगर हम अपने दिल और दिमाग में नफ़रत और पूर्वाग्रहों को जगह देंगे, तो आनेवाली पीढियां हमें माफ़ नहीं करेंगी.

आपका अपना
एम . के . गांधी
 

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