अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वानों ने “भारत में असहमति पर शिकंजा कसने” पर जतायी चिंता

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए उठी आवाज़

Update: 2019-02-16 10:14 GMT

नॉंम चोमस्की, जेम्स पेट्रास, एंजेला डेविस, फ्रेडरिक जेम्सन, ब्रूनो लाटूर, ईयान पाप्पे, जूडिथ बटलर समेत कई अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वानों ने एक संयुक्त बयान जारी कर गिरफ्तारी, धमकी और हिंसा के जरिए भय का वातावरण बनाने के लिए नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की कड़ी आलोचना की है. फ्रेश पर्सपेक्टिव्स, यूएसए के बैनर तले अमेरिका एवं ब्रिटेन के इन विद्वानों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत में चल रहे मौजूदा माहौल और “भारत में हर किस्म की असहमति पर खतरनाक शिकंजा कसने” पर गहरी चिंता जाहिर की है.

“सभी छात्रों, मजदूरों, शिक्षाविदों, लेखकों, सामाजिक न्याय के कार्यकर्ताओं एवं अनिवासी भारतीयों से मानवाधिकारों के इन उल्लंघनों के खिलाफ खड़े होने और जेल में बंद सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग करने” की अपील करने वाले इस बयान में कहा गया:

वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद से भारत में हर किस्म की राजनीतिक असहमति के खिलाफ खतरनाक तरीके से शिकंजा कसा जाता रहा है.

हाल के महीनों में, महाराष्ट्र पुलिस ने भीमा – कोरेगांव मामले में वरवर राव, अरुण फरेरा, वेरनन गोंसाल्वेस, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा समेत कई प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है.

इसी तरह, कुछ साल पहले, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साईंबाबा एवं राजनीतिक कार्यकर्ता कोबाड गांधी को झूठे आरोपों में बंद किया गया था. इन सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं का लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक तरीकों से राज्य की हिंसा एवं मानवाधिकार उल्लंघनों को चुनौती देने का लंबा इतिहास रहा है. नागरिक एवं मानव अधिकारों के क्षेत्र में अपनी सक्रियता की बदौलत ये कार्यकर्ता सामाजिक एवं आर्थिक रूप से हाशिये पर पड़े समुदायों, देशी लोगों, धार्मिक अल्पसंख्यकों एवं समाज में सभी किस्म के उत्पीड़न के शिकार लोगों समेत सभी बेजुबानों के जुबान बन गये हैं.

एक बुद्धिजीवी, लेखक और कवि के तौर पर इनलोगों ने आम जनता के बीच राजनीतिक जागरूकता, तार्किक सोच और सामाजिक न्याय का विचार विकसित करने में अहम जिम्मेदारी निभायी है.

मोदी के भारत में दलितों, आदिवासियों, तर्कवादियों, मुसलमानों एवं अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों, और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे मानवाधिकार संगठनों समेत मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर लगातार भीषण हमले हुए हैं.

भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने के अपने दीर्घकालिक राजनीतिक एजेंडे के एक हिस्से के रूप में मोदी सरकार अपने प्रभाव का इस्तेमाल उसके वर्चस्व एवं दमन को चुनौती देने वाले किसी भी आवाज़ को चुप कराने के लिए कर रही है. लोकतांत्रिक, तार्किक एवं धर्मनिरपेक्ष शक्तियों के दमन के लिए सरकार कानूनी और गैरकानूनी तरीकों का उपयोग कर रही है. हाल के वर्षों में, सत्ताधारी दल से जुड़े समूहों ने कई तर्कवादियों, पत्रकारों एवं धर्मनिरपेक्षवादियों को मार डाला है.

इसके अलावा, सत्ताधारी दल ने “कानूनी” तरीकों का उपयोग करके उन लोगों को धमकाया या जेल में ठूंसा है जो जनता के बुनियादी अधिकारों की रक्षा कर रहे हैं. ऐसे लोगों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिए राज्य ने पहले अपने मित्र मीडिया संस्थानों का उपयोग करके यह झूठ फैलाया कि ये मानवाधिकार कार्यकर्ता भारतीय राज्य को उखाड़ फेंकने की साजिश रच रहे थे. साजिश की मनगढ़ंत कहानियों की एक श्रृंखला पेश करके इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को देशद्रोह के कठोर औपनिवेशिक कानून के तहत जेल भेजने के लिए केंद्र एवं महाराष्ट्र सरकार ने मिलकर काम किया.

मानवाधिकार उल्लंघन की ये घटनाएं संकट के समय में अंतरराष्ट्रीय समुदाय और वैश्विक नागरिक समाज की जिम्मेदारियों पर सवाल खड़ी करती हैं. जब सर्वोच्च न्यायालय संवैधानिक शक्ति के दुरुपयोग की जांच करने में असमर्थ रहे और न्यायिक प्रणाली राज्य की हिंसा के शिकार पीड़ितों को न्याय नहीं दे पाये, तो नागरिकों को क्या करना चाहिए?

भारतीय राज्य इन सभी अलोकतांत्रिक और अधिनायकवादी गतिविधियों के साथ अपने उस संविधान को ध्वस्त करता प्रतीत हो रहा है, जो मौलिक लोकतांत्रिक अधिकारों और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बरकरार रखता है.

मोदी सरकार सभी किस्म के दमनकारी तरीकों का उपयोग करते हुए उन लोगों के बीच भय और आशंका पैदा कर रही है, जो इसकी नवउदारवादी आर्थिक नीतियों और अति-राष्ट्रवादी एजेंडे को चुनौती देते हैं. ये ऐसे सवाल हैं जिसे लेकर एक नागरिक / मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर हम बहुत चिंतित हैं.

हम तहेदिल से सभी छात्रों, मजदूरों, शिक्षाविदों, लेखकों, सामाजिक न्याय के कार्यकर्ताओं और अनिवासी भारतीयों से अपील करते हैं कि वे इन मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ खड़े हों और जेल में बंद सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग करें.

एक नागरिक और आप्रवासी के तौर पर, आपकी आवाज़ें गलत तरीके से कैद इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को मुक्त करने के अभियान में जनता की राय को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी. लोकतंत्र, न्याय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए आपका समर्थन भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और लोकतांत्रिक संघर्षों के मनोबल को बढ़ाने में मदद करेगा. हम आप सभी को इस वैश्विक अभियान में सक्रिय रूप से भाग लेने और लोकतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए आमंत्रित करते हैं.

Similar News

Uncle Sam Has Grown Many Ears
When Gandhi Examined a Bill
Why the Opposition Lost
Why Modi Won