मेधा पाटकर के मुकदमे में खादी आयोग के मुखिया सक्सेना पर जुर्माना

निदेशक पद पर उनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री के विशेषाधिकार के तहत हुई थी

Update: 2019-03-15 16:33 GMT

दिल्ली की एक अदालत में मैट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट निशांत गर्ग ने केन्द्रीय खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष वी के सक्सेना को दो हजार रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया है। सक्सेना के खिलाफ जुर्माना लगने की यह तीसरी घटना है। वे लगातार अदालत आने से बच रहे हैं।इससे पहले मेधा पाटेकर के मानहानि के मुकदमें में जुर्माना भरने का आदेश दिया है।

गुजरात के धोलेरा में अडानी और जेके कंपनी की संयुक्त परियोजना के भूतपूर्व सीईओ वी. के. सक्सेना को दिल्ली के साकेत कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे और खुद उनके द्वारा दायर जवाबी मुकदमे की अलग – अलग सुनवाई के दौरान गैरहाजिर रहने पर क्रमशः 3000 और 5000 रूपए जुर्माना भरने का निर्देश दिया. श्री सक्सेना इन दिनों खादी ग्रामोद्योग आयोग के निदेशक हैं. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष दिये गये उनके अपने बयान के मुताबिक निदेशक पद पर उनकी नियुक्ति खुद प्रधानमंत्री के विशेषाधिकार के तहत हुई थी.

मेधा पाटकर द्वारा मानहानि और श्री सक्सेना द्वारा दायर जवाबी मुकदमे की सुनवाई क्रमशः 11 व 12 मार्च को नियत थी. लेकिन श्री सक्सेना के वकील महिपाल अहलूवालिया द्वारा अपना जिरह आगे जारी रखने से इंकार किये जाने के बाद 15 साल पुराने इन मुकदमों की नियत सुनवाई का आगे बढ़ना संभव नहीं हुआ. जबकि दोनों मुक़दमे अपने अंतिम चरण में पहुंच चुके हैं और जिनकी सुनवाई की अगली तारीख 11 व 12 मार्च को साकेत कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट निशांत गर्ग द्वारा सभी पक्षों की सुविधा को देखते हुए रखी गयी थी.

श्री वी. के. सक्सेना ने अहमदाबाद स्थित अपनी स्वयंसेवी संस्था, नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज, के माध्यम से वर्ष 2000 में एक विविदास्पद विज्ञापन प्रकशित कर मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ बचाओ को मिलने वाले धन को लेकर कुछ गंभीर आरोप लगाये थे और इसी आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की थी. इस संबंध में जुलाई 2007 में दिये गये एक फैसले में न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर ने यह कहा था कि यह एक निजी हित याचिका है और श्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय द्वारा कराई गयी जांच में नर्मदा बचाओ आंदोलन के संबंध में किसी तरह की अनियमितता और अवैधता नहीं पायी गयी थी. इस जांच के संदर्भ में एक याचिका के दौरान एक शपथ – पत्र माध्यम से केंद्र सरकार ने अपना यह जवाब दाखिल किया था.

श्री सक्सेना ने मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि के दो मुकदमे – एक प्रेस वक्तव्य के संबंध में और दूसरा इंडिया टीवी पर एक साक्षात्कार संबंध में – भी दायर किये थे.

मेधा पाटकर की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता श्रीदेवी पणिक्कर ने श्री सक्सेना और उनके द्वारा पेश किये जाने वाले गवाह की अनुपस्थिति को चुनौती दी. साथ ही, श्री सक्सेना के वकील द्वारा सुश्री मेधा पाटकर से जिरह करने से इंकार किये जाने को भी उन्होंने चुनौती दी.

वी के सक्सेना गुजरात दंगों के बाद वर्ष 2002 में साबरमती आश्रम में आयोजित एक शांति सभा के दौरान किये गये शारीरिक हमले के संदर्भ में सुश्री पाटकर द्वारा दायर एक आपराधिक मामले में भी एक आरोपी हैं.

अपने अंतिम चरण में पहुंच चुके मानहानि के इन मुकदमों की अगली सुनवाई मई 2019 मे होनी है.
 

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