उत्तर प्रदेश में किसान गुस्से में, चुनाव बहिष्कार का नारा

उत्तर प्रदेश में किसान गुस्से में, चुनाव बहिष्कार का नारा

Update: 2019-04-10 13:02 GMT

उतर प्रदेश के देहातों में किसानों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है . उनके संकटों के निवारण का कोई रास्ता नहीं नज़र आ रहा है. इसकी अभिव्यक्ति चुनाव का बहिष्कार करने के नारे के रूप में सामने आ रही है.

आवारा मवेशी

किसान की एक परेशानी समाप्त नहीं होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है. इस समय सर्वाधिक परेशानी आवारा मवेशियों की है. गाँव के तमाम किसानों ने अपने गैर उत्पादक पशुओं को खुला छोड़ दिया है.पशु मेलों में ले जाकर वे उन्हें वहां छोड़ आते हैं. इन पशुओं की संख्या बढ़ती जा रही है और यह पशु आपको सभी स्थानों पर मिल जायंगे. शहरों में भी इनकी संख्या बढ़ती जारही है. शहर में यह किसी भी समय किसी पर भी हमला बोल सकते हैं. इनमें से अधिकाँश भूखी हालत में घुमते हुए मिल जायंगे.

देहातो में इनका हमला तैयार हो रही फसल पर है . उन्नाव की बीघापुर तहसील के बगहा गाँव में किसानों का कहना है की किसान क्या करे . उसे रात भर अपने खेत पर पहरा देना पड़ रहा है.दिन में वह खेती और दूध का काम करने की कोशिश करता है . उसकी हालत यह है की उसे कोई आराम नहीं है.कांटे दार तार लगाकर भी उनका खेत सुरक्षित नहीं है . इन सब सावधानियों के बावजूद उनके खेतों में अक्सर मवेशी घुस जाते हैं और फसल चार जाते हैं .

नील गाय का प्रकोप

इस क्षेत्र में पहले से ही नील गाय का प्रकोप रहा है. नील गाय का प्रकोप इस हद तक है की इन क्षेत्रों में पहले से ही दाल की खेती बंद हो चुकी है क्योंकी नील गाय प्रोटीन युक्त आहार की ओर अधिक आकर्षित होते है . सरकार ने यह घोषित कर दिया था की नील गाय असल में गाय नहीं है और किसानों से यह कह दिया था की आप इसे मार लिया कीजिये . इन सब के बावजूद कोई किसान नील गाय को गाय मानकर इसे मारता नहीं था. जब भी उनका प्रकोप बढ़ जाता था तो मुसलामानों को बुलाया जाता था और वे लोग आकर ही नील गायों को मारते थे. हिन्दू किसानों के संस्कार इतने गहरे है की सभी सरकारी आश्वासनों के बावजूद ,वे नील गाय तक को मारने तैयार नहीं हैं , तो असली गाय को मारने की बात तो कोई सोच भी नहीं सकता है.सरकार के आश्वासनों और कुछ हल्की पुलकी कोशिशों की इन सब मवेशियों को पशु शाल में रखा जाय, अधिकांश पशु आज भी आवारा घूम्राते हैं और खेती को भारी हानि पहुंचा रहे हैं. यहाँ किसानों का विचार चुनाव बहिष्कार की ओर जा रहा है.

ट्रांस्गंगा में किसान आन्दोलन

लेकिन ट्रांस गंगा के आन्दोलनरत किसानों में यह भावना प्रबल हो चुकी है.इनके आन्दोलन तेज़ करने के बावजूद सरकार ने उनसे बातचीत करके उनकी भूमि की समस्या को हल करने की कोई कोशिश नहीं की है .इस् कड़ी में गत २० डिसेम्बर को किसानों ने उ.पर. राज्य औद्योगिक विकास निगम के ट्रांस गंगा के साईट ऑफिस पर कब्जाकर लिया और उनके अधिकारियों को आने जाने से मन कर दिया था. इसी सिलसिले में जब एक प्रमुख कार्यकर्ता सनोज यादव को थाणे बुलाकर बिठा लिया गया था और उसे तमाम धमकियां भी दी थी. यादव ने उनकी धमकियों का साहसिक मुकाबला किया और उनके जेल जाने की धमकी के समक्ष उसने कहां की हमारे पूर्वज( श्री कृष्ण) तो जेल में पैदा हुए थे. यदि आप मुझे जेल भेजते है तो मेरे लिए यह तीर्थ यात्रा के समान है.

लेकिन आप यह समझ लीजिये की मेरी अनुपस्थिति में किसान क्या करेगा इसकी जिम्मेवारी आपकी ही होगी .

इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद उनाव प्रशासन पर जब सरकार का अधिक दबाव पड़ा कि ऑफिस को खुलवा दे क्योंकि मुक़दमें के संबन्धित कागज़ात वही पर बंद हैं तो एक अन्य कार्यकर्ता हरीन्द्र निगम को एक दिन थाने में रखने के बाद . एक समझौते के तहत साईट ऑफिस से किसानों ने कब्ज़ा हटा लिया.

चुनाव् बहिष्कार

अब हाल ही में किसानों ने ट्रांस्गंगा में यह घोषणा की है किसान की समस्या का हल नहीं, तो कोई चुनाव नहीं . चुनाव बहिष्कार का नारा दिया है.इसके साथ ही जिला प्रशासन में हडकंप मच गया है. इस नारे को रोकने के लिये नगर मैजिस्ट्रेट को भेजा गया.किसानों से वार्तालाप में कोई रास्ता नहीं निकला . बाद यह निर्णय हुआ की सरकार किसानों की समस्या पर बात करेंगी और सुलझाने का रास्ता निकालेगी और यदि ऐसा होता है तो किसान अपने बहिष्कार का नारा वापस ले लेगा . किसानों ने लिखित में यह आश्वासन माँगा. पहली बार ऐसा हुआ है कि सरकार की और से यह लिख कर दिया गया है की एक सप्ताह में वार्ता शुरू की जायगी .

इस घटना को एक सप्ताह बीत चुका है सरकार ने बात चीत के लिए कोई पहलकदमी नहीं ली है.

इसलिए ट्रांस गंगा के किसानों ने चुनाव बहिष्कार का नारा जोरदार तरीके से उठा लिया है और इसका प्रचार भी करना शुरू कर दिया है. आने वाले दिन उन्नाव में काफी संघर्षपूर्ण होने वाले हैं.
 

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