झारखंड में आदवासी ईसाईयों पर गौ – रक्षकों का हमला

एक की मौत, हमले के शिकार लोगों के खिलाफ ही गो – हत्या का मामला दर्ज

Update: 2019-04-18 16:41 GMT

झारखंड के गुमला जिले के डुमरी में चार आदवासी ईसाईयों पर हुए जानलेवा हमले के कई दिनों के बाद भी इस हमले में किसी तरह जीवित बचे और अस्पताल के बिस्तरों पर पड़े तीन व्यक्ति यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर उनके गांव के लोगों को हुआ क्या है, जो उन्होंने इस किस्म की खौफनाक हिंसा को अंजाम दिया. उन्हें यह भी समझ में नहीं आ रहा कि पुलिस ने उनके खिलाफ गो – हत्या के आरोप में मामला क्यों दर्ज किया है?

द सिटिज़न से बात करते हुए, इस हमले में घायल तीन लोगों में से एक, जनुइश मिंज ने कहा, “क्या आप पुलिस से पूछकर यह पता लगा सकते हैं कि हमारे खिलाफ मामला क्यों दर्ज किया गया है, जबकि पिटाई खाने और घायल होकर अस्पताल पहुंचने वाले हम ही लोग हैं और पिटाई की वजह से हमलोगों में से एक की मौत हो चुकी है? वो हम पर जिस बैल को काटने का आरोप लगा रहे हैं, वह पहले से ही मरा हुआ था. मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि आखिर पुलिस को हमारे खिलाफ मामला दर्ज करने की क्यों सूझी? क्या यही हमारा धर्म है?”

पूरी तरह से शांत रहने वाले झारखंड के इस इलाके के बारे में टिप्पणी करते हुए मिंज ने कहा, “पहले हमने इस किस्म की घटनाओं के बारे में सिर्फ सुना था और यह कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसी घटना हमारे साथ ही हो जायेगी. हमारे गांव में न तो इंटरनेट है और न ही व्हाट्सएप्प. हम यह नहीं समझ पा रहे कि गौरक्षक हमारे गांव तक कैसे पहुंचे और कैसे उन्होंने लोगों को वास्तव में हम सभी को मारने का प्रयास करने के लिए जुटाया.”

मिंज के साथ रांची के देबुका नर्सिंग होम में भर्ती होने वाले दो अन्य लोग हैं – पीटर फुल्जंस और बेलसस तिर्की. इनके चौथे साथी, प्रकाश लाकड़ा, की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो गयी.

उस खौफनाक घटना को याद करते हुए इन लोगों ने बताया कि 10 अप्रैल की आधी रात को लोगों का एक समूह “जय श्री राम” का नारा लगाते हुए उनकी ओर दौड़ा. वे अन्य लोगों को उन्हें मारने के लिए यह कहते हुए उकसा रहे थे कि “मारो गाय खाने वालों को”.

मिंज बताते हैं, “शुरू में, हमलोगों ने भागने और उनके हमलों का मुकाबला करने का प्रयास किया. लेकिन जब देखा कि हम तलवारों व अन्य परंपरागत हथियारों से लैस काफी लोगों से घिरे हैं, तो हमारे पास आत्मसमर्पण करने और उनसे रहम की भीख मांगने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था.”

जनुइश के एक नजदीकी रिश्तेदार अल्बेंज़ मिंज ने बताया, “लगभग दो घंटे तक इन लोगों की पिटाई होती रही. इनके साथ कोई दया नहीं दिखायी गयी. घायलावस्था में ही इन्हें धकेल कर घटनास्थल से लगभग एक किलोमीटर दूर जैराग गांव तक ले जाया गया. वहां हमलावरों ने इनके चेहरे पर थोड़ा पानी छिड़का और दोबारा पीटना चालू किया. वे इन्हें इनके बेहोश होकर गिर जाने तक मारते रहे. बाद में, भीड़ ने एक वाहन मंगवाया और उसमें इन्हें लादकर रवाना कर दिया.” अस्पताल में घायलों की तीमारदारी अल्बेंज़ ही कर रहे हैं.

घायलों में से किसी को यह याद नहीं है कि पुलिस द्वारा इलाज के लिए एक स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र भेजे जाने से पहले उन्हें पुलिस थाने के बाहर कितनी देर इंतजार करना पड़ा था. हालांकि, अल्बेंज़ का कहना है कि कम से कम उन्हें दो घंटे तक इंतजार करना पड़ा.

पुलिस ने इस मामले में अभी तक संजय साहू और जीवन साहू नाम के दो लोगों को गिरफ्तार किया है. गुमला जिले के पुलिस अधीक्षक अंजनी कुमार झा ने बताया, “इस घटना से जुड़े सात लोगों की पहचान कर ली गयी है और बाकी बचे पांच अन्य आरोपियों को पकड़ने का प्रयास किया जा रहा है.”

इस बीच, दिल्ली में मानवाधिकार संगठनों ने आदिवासी ईसाईयों पर हुए हमले की कड़ी निंदा की और दोषियों की तत्काल गिरफ़्तारी और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग को लेकर झारखंड भवन के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया.

प्रदर्शन के दौरान बोलते हुए अल्पसंख्यक अधिकार कार्यकर्ता ए. सी. माइकल ने जोर देकर कहा कि “मोदी राज” में इस किस्म की लिंचिंग की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.

उन्होंने कहा, “यह घटना मोदी राज में कानून – व्यवस्था की स्थिति को दर्शाती है. ये पीड़ित लोग किसी गाय के वध में शामिल नहीं थे. लेकिन फिर भी इन्हें इतनी बुरी तरह पीटा गया कि इनमें से एक की मौत हो गयी और तीन गंभीर रूप से घायल हैं.”

इस प्रदर्शन का आयोजन करने वाले “यूनाइटेड अगेंस्ट हेट” के नदीम खान ने द सिटिज़न को बताया कि यह प्रदर्शन इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि देश में इस समय चुनाव चल रहे हैं. इसके बावजूद इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया गया.

द सिटिज़न से उन्होंने कहा, “चुनाव के दौरान लिंचिंग की घटना यह साबित करती है कि अपराधियों को किसी भी परिणाम की कोई चिंता नहीं हैं, और उन्हें एक किस्म का संरक्षण मिला हुआ है. इस विरोध के माध्यम से हम सभी पक्षों को एक संदेश देना चाहते हैं कि यदि वे लिंचिंग की इस घटना को गंभीरता से नहीं लेते हैं, तो हम चुप नहीं रहेंगे और लोकतांत्रिक मंचों के माध्यम से अपना विरोध प्रदर्शन तबतक जारी रखेंगे जबतक कि ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लग जाती.”
 

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