बुद्धिजीवी भाजपा का समर्थन क्यों कर रहे हैं?

SANDEEP PANDEY

Update: 2017-12-16 10:27 GMT

केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को साढ़े तीन वर्ष पूरे हो गए हैं। यह मध्यम वर्ग व सवर्णोंं की चहेती सरकार है। लोगों को इससे काफी उम्मीदें थीं। ऐसा माना जा रहा था कि जातिवादी राजनीति के दिन पूरे हुए व भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। राष्ट्रवाद की राजनीति के प्रति युवाओं का आकर्षण था व भारत के अतीत के गौरवशाली दिनों की वापसी का इंतजार था। इस परिवर्तन के नायक होने वाले थे नरेन्द्र मोदी।

इस दौर में क्या बदला? जो अपराध होते थे व जिन कारणों से लोगों की मौतें होती थीं जैसे किसानों की आत्महत्या अथवा कुपोषण सम्बंधी मौतें उनमें तो कोई कमी आई नहीं बल्कि अन्य नई वजहें जुड़ गईं। अब यदि आप पर गाय के मांस खाने का शक है, आप गाय को कहीं वाहन से ले जा रहे हैं, अंतर्जातीय अथवा अंतर्धार्मिक विवाह, खासकर मुस्लिम लड़के व हिन्दू लड़की की शादी, करने वाले हों, हिन्दुत्व की विरोधी विचारधारा को मानने वाले हैं, आप खुले में शौच जाते हैं क्योंकि आपके घर में शौचालय नहीं है, ’भारत माता की जय,’ ’वंदे मात्रम’ या ’जय श्री राम’ के नारे लगाने से मना करते हैं तो कोई भी गुण्डों का समूह अपने आप को किसी हिन्दुत्ववादी संगठन के सदस्य बता कर आपको पीटने आ सकता है या कुछ मोटरसाइकिल सवार आपकी जान लेने के इरादे से भी प्रकट हो सकते हैं। 2014 से पहले भारत जिस किस्म का समावेशी देश हुआ करता था जिसकी पहचान अनेकता में एकता थी अब वैसा नहीं रह गया। यहां के बहुसंख्यकों का धर्म हिन्दू सहिष्णु धर्म माना जाता था। अब वास्तविक या निर्मित विवाद पर आक्रामक प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले हिन्दू धर्म का स्वरूप निकल कर आया है जिसके बात-बात पर हिंसक होने का खतरा बना रहता है। गौरवशाली अतीत का तो पता नहीं किंतु एक ऐसी भीड़ संस्कृति को बढ़ावा मिला है जो मौके पर ही दोषी माने गए को फैसला सुना सजा देने में विश्वास रखती है। इस सबका सबसे बुरा पहलू यह है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मौन साधे रहता है मानों उसी की छत्रछाया में सब कुछ हो रहा है।

भारत के शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्ता पहले से ही कोई बेहतर नहीं थी तो उनमें भाजपा सरकार ने अपात्र लोगों की नियुक्तियां कर और चौपट कर दी है। माना जाता है कि भाजपा शिक्षित वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करती है किंतु इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि भाजपा के कुछ बड़े नेताओं जैसे नरेन्द्र मोदी, स्मृति इरानी व मनोहर लाल खट्टर की डिग्रियां संदिग्ध हैं। मालूम नहीं कि इनकी डिग्रियां सही तरीके से निकली हैं या नहीं? यह हमारी शिक्षा व्यवस्था का खुला माखौल उड़ाने जैसे बात है।

प्रधान मंत्री के ताबड़ तोड़ विदेशी दौरों का एकमात्र मकसद यह रहा कि किसी तरह पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करवा उसे अलग थलग किया जाए। इससे ज्यादा उन्होंने कुछ प्रयास भी नहीं किया। अब दुनिया यह मानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद का स्रोत नहीं उसका शिकार है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, श्री लंका, म्यांमार व मालदीव सभी चीन के नजदीक चले गए हैं और उसके साथ दीर्घ कालिक अनुबंध कर लिए हैं। वे भारत से ज्यादा भरोसेमंद चीन को मानते हैं। इससे बड़ी असफलता भारतीय विदेश नीति की क्या हो सकती है?

नोटबंदी ईमानदारी से नहीं की गई। वह नोटबंदी तो थी ही नहीं। वह तो नोटबदली थी। रु. 500 व 1000 के नोट वापस कर कुछ ही दिनों में रु. 500 व 2000 के नए नोट लाकर नोटबंधी के उद्देश्य पर ही पानी फेर दिया गया। बड़े नोट हटाने की मुख्य वजह यह थी कि बड़ा भ्रष्टाचार करना मुश्किल हो। यानी नकद में कोई बहुत बड़ी राशि इधर से उधर न जा पाए। नए नोट लाने से जो पहले के नोटों से हल्के हैं यह काम तो और आसान हो गया। भारत में भ्रष्टाचार का मुख्य कारण है चुनाव में काले धन कर इस्तेमाल। लेकिन न तो किसी राजनीतिक दल के दफ्तर पर न ही किसी बड़े नेता के यहां छापा पड़ा। इसी तरह किसी उद्योगपति के घर, जो काले धन के दूसरे सबसे बड़े रखने वाले होते हैं, भी छापा नहीं पड़ा। नरेन्द्र मोदी ने तो भ्रष्ट लोगों की उनका सारा काला धन सफेद कर उनकी मदद की। जबकि आम इंसान बेचारी लम्बी कतारों में खड़ी होकर परेशान हुई। उसकी आय भी पहले से कम हो गई। धीरे धीरे सबको यह भी स्पष्ट हो गया कि मोदी आम इंसानों के नहीं बल्कि अडानी व अम्बानी के मित्र हैं।

उत्पाद एवं सेवा शुल्क अथवा जी.एस.टी. तो ऐसे लागू किया गया मानो देश के आजादी जैसी कोई बड़ी घटना हो रही हो। आधी रात संसद का सत्र हुआ। जिस तरह से नोटबदली व जी.एस.टी. लागू करने के बाद कई निर्णय बदलने पड़े उससे साफ है कि बिना ठीक से सोचे विचारे ये बड़े कदम उठा लिए गए जिनसे अर्थव्यवस्था की कमर ही टूट गई। तमाम व्यवसाय व व्यापार बंद हो गए। आम तौर पर माना जाता है कि सरकार लोगो ंके लिए रोजगार पैदा करेगी किंतु मोदी सरकार तो लोगों ंसे राजगार छीनने का काम कर रही है। यह दिखाता है कि मोदी सरकार लोगों से कितना दूर है।

मोदी ने आते ही सांसदों से अपने चुनाव क्षेत्र में विकास का मॉडल दिखाने के लिए एक-एक गांव गोद लेने को कहा। फिर कुछ विशेष शहरों को स्मॉर्ट सिटी के रूप में चुना गया। ऐसे में जो गांव या शहर छूट गए उनका क्या दोष है? इस तरह की बातों से सिर्फ लोगों को भ्रमित किया गया। जो गांव या शहर अलग से चुने गए वहां भी कुछ नहीं हुआ, जो छूट गए उन्हें तो उम्मीद ही नहीं थी। जिन गांवों में लोग अभी भी खुले में शौच जा रहे हैं उन्हें खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया है। विक्लांगों का नाम बदल कर दिव्यांग रख दिया गया। लेकिन उनकी स्थिति में कोई सुधार हुआ क्या? यह विकास का श्रेय लेने की हड़बड़ी कुछ समझ में नहीं आती।

मोदी सरकार एयर इंडिया को बेचने की बात कर रही है। ग्राहक विदेशी कम्पनियां भी हो सकती है। कल रेलवे को बेचने की बात भी कर सकते हैं। इस सरकार ने कोई निर्माण का काम तो किया नहीं पिछली सरकारों, जिनकी वह कटु आलोचक है, द्वारा बनाई गई चीजों को बेचने की तैयारी में है। सरकार की काबिलियत तो इसमें है कि घाटे में चल रहे उद्यम को फायदे में पहुंचाए न कि आसान रास्ता निकाल चीजों को बेच दे।

नरेन्द्र मोदी ने पिछली सरकारों द्वारा निर्मित सरदार सरोवर बांध को अपने जन्मदिन पर राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया बिना इस बात की परवाह किए कि बांध निर्माण से विस्थावित लोगों का पुनर्वास क्यों नहीं हुआ? मेधा पाटकर ने उससे पहले व उस दिन भी प्रदर्शन किया, अनशन पर बैठीं व जेल गईं किंतु सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। इसी तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धूमधाम से नर्मदा परिक्रमा यात्रा निकाली लेकिन विस्थापितों की सुध तक न ली।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्राथमिकता अयोध्या में राम मंदिर निर्माण लगती है बजाए उन बच्चों की चिंता करना जो उनके गोरखनाथ मठ के समीप मेडिकल कालेज के चिकित्सालय में जपानी दिमागी बुखार की चपेट में आ जाते हैं। योगी ने खुले आम घोषणा की है कि संविधान में धर्मनिर्पेक्षता सबसे बड़ा झूठ है।

भाजपा ने जातिवादी राजनीति का विकल्प देने के बजाए जाति व धर्म की भावना को उभारने का काम किया है। धर्म के नाम पर नफरत व हिंसा और जाति के नाम पर पद्मावती फिल्म का विरोध प्रदर्शन होने देने से भाजपा ने धर्म व जाति के आधार पर समाज में जो बंटवारा है उसे और चौड़ा बना दिया है। यदि दलित अथवा पिछड़े जाति के नाम पर संगठित होते हैं तो समझा जा सकता है कि जाति के आधार पर उनके साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए संगठित हो रहे हैं। किंतु भाजपा शासन में सवर्णों के समूह आक्रामक तेवर के साथ बिना सोचे समझे विवाद खड़े कर देते हैं जिसमें से कई हिंसक भी हो जाते हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि तथाकथित शांतिप्रिय हिन्दू धर्म के लोग उपर्युक्त किस्म की आक्रामकता व हिंसा पर खुश होते हैं। दुनिया चकित होकर एक दोगले चरित्र वाले राष्ट्र के रूप में हमारा परिवर्तन देख रही है।

भाजपा के प्रेरणास्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अच्छी तरह समझने वाले लोगों ने शुरू में ही चेतावनी दी थी। जिन पढ़े लिखे बुद्धिजीवी तबके ने पिछले आम चुनाव व अन्य राज्यों के चुनावों में भाजपा का समर्थन किया उन्हें अपने से पूछना चाहिए कि किस किस्म का राष्ट्र उन्हें चाहिए? महात्मा गांधी की हत्या करने वाली तथा बाबरी मस्जिद को ध्वंस कर आतंकवाद की समस्या को भारत में न्यौता देने वाली विचारधारा धीरे धीरे भारत ने जो संवैधानिक मूल्यों न्याय, स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व के आधार पर प्रगतिशाल समाज व आधुनिक राष्ट्र बनाया था उसकी उल्टी दिशा में ले जा रही है।

(संदीप पाण्डेय is a writer and activist based in Lucknow. He is the recipient of the Magsaysay Award)
 

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