कुछ अलग बोलना अपराध है

इतिहास का सबसे खतरनाक मोड़ है यह

Update: 2018-08-19 13:23 GMT

स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने पहुंचे स्वामी अग्निवेश को लोग मारने के लिए तत्पर हो जाते हैं, वह भी नयी दिल्ली में दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर बने सत्ता के मुख्यालय के पास. जब यह उत्पात चल रहा था तब आलीशान मुख्यालय पर तमाम वीआईपी मौजूद थे, जाहिर है इस मार्ग के चप्पे-चप्पे पर अनेक लेयर वाली सुरक्षा मौजूद रही होगी. क्या किसी को अभी भी शक है कि ऐसे लोग किस पार्टी के समर्थक रहे होंगे?

बिहार के मोतिहारी के सेंट्रल यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर संजय कुमार पर जानलेवा हमला किया जाता है, क्योकि उन्होंने स्वर्गीय अटल जी पर कुछ ट्वीट किया था जो सत्ता विचारधारा के समर्थक थे? संजय कुमार ने अपने स्टेटमेंट में कई नाम भी बताये हैं, क्या ये लोग कभी पकडे जायेंगे?

13 अगस्त को दिल्ली पुलिस के एक विज्ञापन में बताया गया था, दिल्ली में बिना चालक वाले एयरक्राफ्ट सिस्टम, एरियल वेहिकल्स, पारा-ग्लाइडर्स, पारा-मोटर्स, हैंग-ग्लाइडर्स और हॉट-एयर बैलून इत्यादि प्रतिबंधित हैं और इसका पालन नहीं करने वाले व्यक्तियों पर अपराधिक कार्यवाही की जायेगी. हवा में सुरक्षा भले ही दुरुस्त रही हो पर जमीन पर इसी दिन संसद भवन के ठीक पास जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद पर हमला कर हमलावर सबसे सुरक्षित क्षेत्र से भाग जाता है और कोई पकड़ा नहीं जाता है, देर रात तक पुलिस सीसीटीवी फुटेज से एक फोटो तो निकालती है, पर आज तक इसके आगे कुछ नहीं हो पाया. पुलिस शायद इसके आगे कुछ करना ही नहीं चाहती हो, क्यों कि उसे भी पता होगा कि कौन से लोग खालिद को मारना चाहते होंगे. तभी अभी जांच चल रही कि गोली चली या नहीं?

यह पूरा वाकया इतना तो बताता है कि 15 अगस्त के आस-पास पुलिस की चारों तरफ उपस्थिति और बैरिकैडीन्ग का मतलब यह कतई नहीं है कि इन दिनों जनता को अधिक सुरक्षा मिलती होगी. वैसे भी हमारे देश में सुरक्षित तो केवल “तंत्र” है, “जन” तो सुरक्षित कभी रहा ही नहीं.

दूसरी तरफ मीनाक्षी लेखी उमर खालिद के मामले में कुछ इस तरह से बयान देती हैं जैसे उन्होंने पूरा वाकया देखा हो. मीनाक्षी लेखी ने वो नारे भी सुन लिए जो वहाँ लगे ही नहीं. खालिद के साथ नहीं लगे नारों का पुराना रिश्ता है, 2016 में भी जो नारे नहीं लगे उसकी विडियो फुटेज कई टीवी चैनल लगातार दिखाते रहे.

रवीश कुमार ने अपने कार्यक्रम में कहा, उमर खालिद को कौन से मारना चाहते हैं यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है. रवीश कुमार के इस वाक्य का मतलब तब और आसानी से समझ में आता है, जब आज तक भी कोई बड़ा नेता इस मामले में बयान नहीं देता है. राजधानी में चार आतंकवादी घुसे हैं, यह बहुत बड़ी और प्रमुख खबर होती है पर स्वाधीनता दिवस के दो दिन पहले नयी दिल्ली के सबसे सुरक्षित इलाके में कोई पिस्तौल से गोली चला रहा है इसपर कोई वक्तव्य नहीं दिया जाए इससे आश्चर्य तो होता ही है.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान लोकतंत्र बदलकर भीडतंत्र बन गया है. भीड़ कभी गाय के नामपर, कभी बच्चा-चोरी के नाम पर और कभी-कभी तो बिना कोई इल्जाम लगाए भी किसी की भी ह्त्या करने के लिए लगभग आजाद है. इसके बाद बड़े और छोटे नेता तुरंत मीडिया में हिंसक भीड़ का बचाव करने और जिसकी हत्या हो चुकी उसे मुजरिम ठहराने में व्यस्त हो जाते हैं. अब संभवतः भीडतंत्र के बाद हत्यातंत्र का नया युग आने वाला है.

ये स्मार्टफ़ोन का ज़माना है, और सोशल मीडिया पर ही लोग खबरें देख लेते हैं. राजनैतिक पार्टियाँ इसी सोशल मीडिया का जम कर इस्तेमाल कर रही हैं. पार्टियाँ कहती तो यही हैं कि उनका आईटी प्रभाग उनकी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का काम करता है, पर तथ्य तो यह है कि यह प्रभाग विरोध में बोलने वालों के विरुद्ध दुष्प्रचार करने और धमकाने में ही व्यस्त रहता है. खालिद के विरुद्ध भी इतना दुष्प्रचार किया गया है कि एक बड़ा तबका यह सोचने लगा है कि इसे मार कर देशभक्त का सरकारी तमगा जरूर मिल जाएगा. सोशल मीडिया पर गंभीर धमकियाँ भी सामान्य हो गयीं हैं. अपशब्द और धमकियों पर लगाम लगाने को कम से कम यह सरकार तैयार नहीं है. उमर खालिद के हमले का समाचार जब रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पेज पर डाला, तो धमकियों, तानों और अपशब्दों की भरमार हो गयी.

दरअसल हम अपने इतिहास के अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं, जहाँ पूरा सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो चुका है और सारी सामाजिक परिभाषाएं बदल चुकी हैं. अब चोरी, लूट-पाट, भ्रष्टाचार, यौन-उत्पीडन, हत्या, अपशब्द कहना, धमकी देना भी पार्टी-विशेष के दायरे में बांध गया है. कुछ पार्टियों के समर्थकों के लिए इनमे में सब करने की आजादी है और नेताओं और समर्थकों को भी पता है कि पुलिस और सरकार से संरक्षित हैं. सरकार की नज़रों में केवल एक अपराध है, उसकी भाषा से कुछ अलग बोलना. और इस अपराध की सजा तुरंत मिलती है.

आलेख और छायाचित्र: महेंद्र पाण्डेय

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