तेरे मेरे होठो पे श्रीदेवी

तेरे मेरे होठो पे श्रीदेवी

Update: 2018-02-26 14:13 GMT

सुबह सोकर उठने के बाद जैसे ही मैंने रेडियो चालू किया वैसे ही श्रीदेवी की मौत की खबर हेडलाइन में सुनकर भौचक्का रह गयी। इस खबर ने अंदर से पूरी तरह मुझे झकझोर कर रख दिया। कुछ देर तो ऐसा लगा जैसे पूरा शरीर शून्य की अवस्था में चला गया हो। अभी पिछले सप्ताह ही एक अखबार से बातचीत में अपने जीवन के नयी पारी के लिये श्रीदेवी ने किस तरीके से तैयारी की है, इस पर महत्व पूर्ण चर्चा पढ़ने को मिली थी। लेकिन किसे पता था कि वे हम सब को असमय ही अलविदा कह देंगी।

बचपन से जिन अभिनेत्रियों को देखकर बड़ी हुयी उनमें से एक श्रीदेवी रही हैं। अभिनेताओं और अभिनेत्रियों जैसा दिखना शायद ही किसी को अच्छा नहीं लगता। हर किसी का सपना होता है कि वह भी अपने उन चहेतों जैसे दिखें। जिन्हें देखकर वे बड़े हुये हैं। यह शौक और भी बढ़ जाता है जब हम युवा अवस्था में कदम रखते हैं।

श्रीदेवी भी ऐसी ही चहेती अभिनेत्रियों में से एक थीं जो युवतियों की चहेती होने के साथ साथ उनकी फैशन आइकन भी थी। चांदनी फिल्मों में उनके द्वारा पहना हुआ सफेद लिबास हो या सिफॅान की साडि़यां या फिर चांदनी चूड़ी सभी उस समय महिलाओं और युवतियों के फैशन का हिस्सा बन चुका था।

भारतीय समाज में सफेद लिबास ज्यादातर शुभ कार्यों में नहीं पहना जाता था लेकिन फिल्मी चांदनी के चांदनी का लोगों पर ऐसा जादू चला कि यु‍वतियां सफेद लिबास पहनकर शादियों तक में जाने लगीं। चांदनी चूड़ी के बिना तो जैसे श्रृंगार ही पूरा नहीं होता था। बच्ची से लेकर अधेड़ महिलाओं के हाथों में चांदनी चूड़ी ने अपनी खास जगह बना ली थी।

फिल्म सदमा की सदमा गर्ल हो या चालबाज की चालबाज चुलबुली लड़की या मिस्टर इंडिया की प्रिय और नकचढ़ी दीदी या अस्मिता के संघर्ष से जूझती इंग्लिश विंग्लिश की भारतीय महिला अथवा अपनी बेटी के लिये चिंतित मॉम हर किरदार को श्रीदेवी ने जीवंत कर दिया। श्रीदेवी का हर रूप समाज के सभी वर्गों के बीच में खास लोकप्रियता हासिल करता रहा।

श्री देवी की एक खासियत के रूप में हम अगर देखें तो उसमें परिवार के प्रति प्रतिबद्धता और त्याग भी खासतौर पर शामिल है। औरतों के बारे में अक्सर यह कहा जाता है खासतौर पर पुरूषवादी समाज में कि औरतों को यदि घर बाहर दोनों की जिम्मेादारियां एक साथ दे दी जाये तो वह उसका निर्वहन नहीं कर पाती हैं।

लेकिन श्रीदेवी जैसी तमाम भारतीय महिलाओं ने इस पितृसत्तामक सोच को धाराशायी कर दिया है। ऐसी महिलाओं ने अपने भविष्य का अपने परिवार के लिये तब खात्मा कर लिया जब वे समाज में लोगों के दिलों पर राज कर रही थीं और सफलता के खास मुकाम पर थीं। 2012 में लंबे अंतराल के बाद बड़े परदे पर इंग्लिश विंग्लिश फिल्म के साथ फिर वापसी की। लेकिन अपनी बेटी जानह्वी के सपनों के साथ ही वे दिखती रहीं और जीवन के एक अहम् मकसद के रूप में दिखा अपनी बेटी को सफल अभिनेत्री के रूप में लॉंच करना।

भारतीय नारी की प्रतिमूर्ति के तौर पर पहचानी जाने वाली यह अभिनेत्री किसी मल्लिका से कम नहीं थीं लेकिन अपनी ढलती उम्र के साथए ढलती खूबसूरती को सहन न कर पाना भी उनकी मौत का जिम्मे दार माना जा रहा है। जिसके लिये वह लगातार सर्जरी का सहारा ले रही थीं। अपनी खूबसूरती के लिये किसी भी हद तक जाने वाले लोगों को एक बात अपने जहन में बैठा लेनी चाहिए कि हम हर समय एक जैसे नहीं दिख सकते। उम्र के हर पड़ाव की अपनी एक अलग खूबसूरती होती है। जैसे समय और परिस्थिति के अनुरूप मनुष्य की प्रकृति बदलती रही है वैसे ही ढलती उम्र और खूबसूरती भी मानव जीवन की प्रकृति का हिस्सा है। जिससे हम परे नहीं जा सकते ।हमे इस बात को स्वीकार करनी पड़ेगी कि प्रकृति से मिली अधिकांश चीजें नश्वर और क्षणभंगूर है।

श्रीदेवी का असमय जाना सिर्फ बॉलीवुड के लिये ही सदमा और अपूरणीय क्षति नहीं है बल्कि फिल्म कला और मनोरंजन से जुड़े हर शख्स के लिये एक बड़ा सदमा और अपूर्णीय क्षति है। लेकिन श्रीदेवी कला मनोरंजन की दुनिया से वह कभी विदा नहीं हो पायेंगी। तेरे मेरे सब के होठों पर यह नाम हमेशा याद किया जायेगा।
 

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