एक नई चुनौती : पानी में यूरेनियम

एक शोध के मुताबिक भूजल में बढ़ रही है यूरेनियम की सांद्रता

Update: 2018-09-16 16:48 GMT

भारत में पानी की समस्या दिनों दिन गंभीर होती जा रही है पर सरकारों के लिए यह कभी भी एक समस्या नहीं रहा. देश की सारी नदियाँ प्रदूषण की चपेट में हैं और अधिकतर स्थानों पर नदियों का पानी सीधे नहाने लायक भी नहीं रह गया है. भूजल का स्तर देश में हरेक जगह लगातार नीचे जा रहा है, और अब तो यह भी प्रदूषित हो रहा है. साथ ही भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड का समावेश भी होता है, जिससे पानी के उपयोग के बाद अनेक बीमारियाँ भी होती हैं.

अब, पानी में यूरेनियम की सांद्रता भी बढ़ रही है, इससे किडनी के गंभीर रोगों का खतरा बढ़ जाता है. कुछ वर्ष पहले भाभा एटोमिक रीसर्च सेंटर ने आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों में भूजल का अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष निकाला था कि भूजल में यूरेनियम की सांद्रता और किडनी के रोगों का सीधा सम्बन्ध है.

एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेटर्स नामक जर्नल के जून, 2018 में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार देश में भूजल का गिरता स्तर ही अकेली समस्या नहीं है, बल्कि अधिकतर हिस्सों में यूरेनियम की सांद्रता भी बढ़ रही है. यह एक नया, पर व्यापक प्रभाव है. अध्ययन में कुल 16 राज्यों के भूजल का परीक्षण किया गया था और पहले से ज्ञात क्षत्रों जैसे गुजरात और राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया गया था.

शोधपत्र के प्रमुख लेखक, नार्थ कैरोलिना स्थित डयूक यूनिवर्सिटी में जियोकेमिस्ट्री और वाटर क्वालिटी के प्रोफ़ेसर अवनर वेंगोश हैं. इनके अनुसार जब भूजल की गहराई बढ़ती है तब यूरेनियम अधिक सक्रिय हो जाता है. जिन क्षेत्रों में रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है, वहाँ पाने के साथ नाइट्रेट भी रिसकर भूजल तक पहुंचता है. नाइट्रेट यूरेनियम को पानी में अघुलनशील से घुलनशील बना देता है, इससे भूजल में इसकी सांद्रता बढ़ती जाती है.

विश्व के किसी भी देश की तुलना में भारत में भूजल का अधिक उपयोग किया जाता है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल सिंचित क्षेत्र में से 60 प्रतिशत से अधिक की सिंचाई भूजल से की जाती है और कुल पीने के पानी में से 85 प्रतिशत का स्त्रोत भूजल है.

इसके बाद भी हमारा देश हमेशा से जल संसाधनों की उपेक्षा करता रहा है. हालत यहाँ तक पहुँच गयी है कि हमारी गिनती उन देशों में की जाने लगी है जहाँ पानी की भीषण किल्लत है. दिल्ली में लगातार कहा जाता है कि यहाँ पानी पर्याप्त उपलब्ध है, पर पिछले साल पानी की कमी के कारण स्कूल भी बंद किये गए थे. अभी दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी ने यहाँ नए निर्माण कार्यों के लिए एफएआर 400 से घटाकर 200 करने का प्रस्ताव किया है, इसका कारण भी पानी की कमी बताया गया है.

एक तरफ पानी की लगातार कमी तो दूसरी तरफ जो पानी उपलब्ध है उसमें प्रदूषण की समस्या है. कुल मिलाकर पानी के मामले में हम निश्चित तौर पर भयानक दौर में प्रवेश कर रहे हैं, पर क्या कोई राजनैतिक पार्टी इस समस्या को कभी भी अपना मुख्य मुद्दा बनायेगी?
 

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