डॉ जी डी अग्रवाल के अनशन के 90 दिन और उदासीन सरकार

गंगा के लिए डॉ अग्रवाल ने 10 अक्टूबर से पानी भी त्यागने की घोषणा की

Update: 2018-09-20 12:12 GMT

विगत 17 सितम्बर को गंगा के लिए अनशन करते स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद को 88 दिन हो गये. पर जिनका दावा था कि उन्हें गंगा ने वाराणसी में बुलाया था, उन्हें इतनी भी फुर्सत नहीं मिली की वे स्वामी जी के किसी पत्र का जवाब भेज सकें या उनसे बात कर सकें. वर्ष 2011 में संन्यास लेने के पहले स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद का नाम डॉ जी डी अग्रवाल था और वर्त्तमान में नदियों की समस्याओं और उनके समाधान का उनसे बड़ा विशेषज्ञ देश में शायद ही कोई दूसरा हो. डॉ अग्रवाल ने 9 सितम्बर प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में घोषणा की है कि यदि उनकी मांगे नहीं मानी गयीं तो वे 10 अक्टूबर से पानी भी त्याग देंगें.

डॉ अग्रवाल आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर थे, फिर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के शुरुआती दिनों में लम्बे समय तक उसके सदस्य सचिव रहे. इसके बाद ग्रामोदय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे. इस सरकार के पहले तक डॉ अग्रवाल नदियों से और पर्यावरण से सम्बंधित लगभग हरेक उच्च-स्तरीय कमिटी का हिस्सा रहे. पिछले कुछ वर्षों से, विशेष तौर पर संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन गंगा के लिए समर्पित कर दिया.

गंगा के बारे में जुमले को छोड़कर कुछ भी नहीं किया गया है, यह डॉ अग्रवाल के पत्रों से स्पष्ट होता है. 6 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी को लिखे गए पत्र में उन्होंने कहा है, “इन चार सालों में आपकी सरकार द्वारा जो कुछ भी हुआ उससे गंगा जी को कोई लाभ नहीं हुआ. उसकी जगह कॉर्पोरेट सेक्टर और व्यापारिक घरानों को ही लाभ दिखाई दे रहे हैं. अभी तक आपने गंगा से मुनाफा कमाने की ही बात सोची है”.

इस पत्र के पहले हिस्से में उन्होंने लिखा है, “मुझे यह विशवास था कि आप प्रधानमंत्री बनाने के बाद गंगा जी की चिंता करेंगे, क्योंकि आपने स्वयं बनारस में 2014 के चुनाव में यह कहा था कि मुझे माँ गंगा ने बनारस बुलाया है. उस समय मुझे विशवास हो गया था कि आप शायद गंगा जी के लिए कुछ करेंगे”.

डॉ अग्रवाल ने अपने पत्र में गंगा के विषय पर मनमोहन सिंह सरकार की प्रशंसा भी की है. उन्होंने पत्र में लिखा है, “मेरे आग्रह को स्वीकार करते हुए मनमोहन सिंह जी ने लोहारी- नागपाल जैसे बड़े प्रोजेक्ट रद्द कर किये थे, जो कि 90 प्रतिशत बन चुके थे तथा जिसमें सरकार को हजारों करोड़ की क्षति उठानी पड़ी थी. लेकिन गंगा जी के लिए मनमोहन सिंह जी की सरकार ने यह कदम उठाया था. इसके साथ ही उन्होंने भागीरथी जी के गंगोत्री से उत्तरकाशी तक का क्षेत्र ईको-सेन्सिटिव जोन घोषित करा दिया था ताकि गंगा जी को हानि पहुंचाने वाले कार्य नहीं हों”.

पिछले 4 जुलाई को नितिन गडकरी को भेजे पत्र में डॉ अग्रवाल ने कहा है, “आप लोगों की गलत नीतियों और आर्थिक विकास लोलुपता से ही यह स्थिति आयी है”. इसी पत्र में उन्होंने गंगा के स्वतन्त्रता पूर्व और बाद की स्थिति का भी आकलन किया है. “गंगा जी विशेष हैं, मात्र शास्त्रों में वर्णित होने और हमारी परंपरा में पूजित होने या आधुनिक चिंतन में माँ की भाँती अपनी घाटी का सृजन, पालन करने और इसका मल धोने के कारण नहीं अपितु इस कारण कि गंगा जल गुणवत्ता में विशेष है, अति विशेष, अनुपम. स्वतंत्रता पूर्व तक की हमारी पीढियां इस अनुपमता, विशेषतया गंगा जल के न सड़ने और इसकी रोगनाशक क्षमता को केवल परंपरा से मानती ही नहीं थीं, अपितु अपने अनुभव से जानती थीं. स्वतंत्रता बाद हमने इसपर वैज्ञानिक शोध कर समझाने और तब निर्णय लेने के बजाय, इसे मात्र अंधविश्वास कह कर नकार दिया और अन्य जल, नदियों की तरह योजना बनाने, निर्माण करने और दोहन में लग गए”.

स्पष्ट है कि नमामि गंगे और गंगा ने मुझे बुलाया है – महज चुनावी जुमले थे. इस सरकार को न तो गंगा की चिंता है और न ही इसे साफ़ करने वाले विशेषज्ञों की.

Similar News

From Kamandal To Mandal
Chandni Chowk - Mixed Voices
Haryana - Farmers Hold The Key
Mumbai - Fight To The Finish