सोशल मीडिया की ‘बीमारी’

और तापमान बृद्धि के असर से नपुंसक होती दुनिया

Update: 2018-12-12 16:23 GMT

यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनसिलवेनिया के मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर मेल्सा हंट ने एक बहुत विस्तृत अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग लोगों को बीमार बना रहा है, लोगों को एकाकी कर रहा है और तनाव से भर रहा है. यह अध्ययन जर्नल ऑफ़ सोशल एंड क्लिनिकल साइकोलॉजी के नवीनतम अंक में प्रकाशित किया गया है. पिछले चार वर्षों के दौरान इस निष्कर्ष वाले अनेक अध्ययन प्रकाशित किये गए हैं, पर प्रोफेसर मेल्सा ने यह निष्कर्ष बहुत व्यापक अध्ययन के बाद प्रकाशित किया है.

इस दौर की आबादी सोशल मीडिया और जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के प्रभावों से नहीं बच सकती इसलिए इनके प्रभावों को गंभीरता से लेना जरूरी है. कुछ दिनों पहले एक दूसरे अध्ययन से पता चला था कि तापमान बृद्धि के साथ आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ जाती हैं, क्यों कि लोग एकाकी महसूस करते हैं और तनाव से भर जाते है. इन दोनों अध्ययन के नतीजे बढ़ते तनाव की तरफ साफ़ इशारा करते हैं. तनाव के प्रभाव से अनेक रोग होते हैं, यह तो सर्वविदित है पर अब अनेक नए अध्ययन बताते हैं कि तनाव लोगों को नपुंसक भी बना रहा है.

अमेरिकन सोसाइटी फॉर रेप्रोडकटिव मेडिसिन के अधिवेशन में प्रस्तुत एक शोधपत्र के अनुसार अमेरिका में बांझपन के सभी मामलों में से 40 प्रतिशत से अधिक का कारण केवल तनाव है. अमेरिकन एसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट ऑफ़ साइंसेज की वर्ष 2018 की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत शोधपत्र के अनुसार पुरुषों में तनाव के कारण उनके स्पर्म में इस तरह के बदलाव होते हैं जो बच्चे के विकास में बाधा पहुंचाते हैं और मस्तिष्क को भी प्रभावित करते हैं.

इजराइल के चिकित्सा विशेषज्ञों ने वर्ष 1973 से 2011 तक के 7500 बृहत् अध्ययनों के आधार पर बताया कि यूरोप, नार्थ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड के पुरुषों में स्पर्म कंसंट्रेशन में 54.2 प्रतिशत और स्पर्म काउंट में 59.3 प्रतिशत की कमी आ गयी है. दिलचस्प तथ्य यह है कि इस तरह का असर एशिया, साउथ अमेरिका और अफ्रीका में नहीं पाया गया. विशेषज्ञों के अनुसार इसका कारण यह भी हो सकता है कि एशिया, साउथ अमेरिका और अफ्रीका में इस तरह के अपेक्षाकृत नगण्य अध्ययन किये गए हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार इसका कारण तापमान बृद्धि है. इसी अध्ययन में यह भी बताया गया है कि स्पर्म काउंट कम होने की दशा में असामयिक मृत्यु की सम्भावना बढ़ जाती है. यह अध्ययन जर्नल ऑफ़ ह्यूमन रिप्रोडक्शन अपडेट में प्रकाशित किया गया है.

जलवायु परिवर्तन केवल मनुष्यों की प्रजनन क्षमता ही प्रभावित नहीं कर रहा है, बल्कि कीट-पतंगे भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं हैं. जर्नल ऑफ़ नेचर कम्युनिकेशंस के नवीनतम अंक में यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट एंग्लिया के वैज्ञानिकों ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया है. इसके अनुसार जलवायु परिवर्तन से कीटों की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है. अधिक तापमान से कीटों के स्पर्म प्रभावित होते हैं, जिसका सीधा असर उनकी आबादी पर पड़ता है. इसके पहले भी बहुत सारे अध्ययन बताते रहें हैं कि दुनियाभर में कीटों की संख्या और प्रजातियाँ तापमान बृद्धि के कारण कम हो रही हैं पर क्यों कम हो रही हैं यह नहीं मालूम था. इस अध्ययन से तापमान बृद्धि का कीटों की संख्या पर पड़ने वाले प्रभाव का एक मुख्य कारण तो पता चलता ही है. बीटल की कुछ प्रजातियों में अध्ययन के दौरान पता चला कि एक बार अचानक तापमान बढ़ने से उनमें स्पर्म काउंट आधा रह जाता है. और फिर यदि कुछ दिनों के भीतर ही तापमान अचानक फिर से बढ़ता है तब इनका स्पर्म काउंट शून्य हो जाता है, यानि ये नपुंसक हो जाते हैं.

इसके पहले व्हेलों की कुछ कालोनियों के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ था कि अनेक कालोनियों में पिछले कुछ वर्षों से किसी नवजात व्हेल का आगमन ही नहीं हुआ है. यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि तापमान बृद्धि के असर से महासागरों का पानी भी धीरे-धीरे गर्म हो रहा है.

इतना तो स्पष्ट है कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग और तापमान बृद्धि का असर इतना व्यापक है कि उसके अनेक प्रभाव समझने में बहुत वर्ष बीत जायेंगे. पर, तनाव के बारे में तो सबको पता है. तापमान बृद्धि रोकना हमारे हाथ में शायद न हो पर सोशल मीडिया का उपयोग तो कम किया ही जा सकता है.
 

Similar News

Punjab - Season Of Turncoats
Gujarat - BJP At The Helm?
Second Phase Of Voting Begins
What Do The Stars Foretell