NEW DELHI: घरेलू श्रमिक सेक्टर स्किल काउंसिल के अध्यक्ष अमोद कंठ ने जम्मू कश्मीर की सरकार को आड़े लेते हुए कहा है की वहां पर बाल अपराधी बच्चों के सुधार के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.

'सेव द चिल्ड्रेन' नामक गैर सरकारी संस्था द्वारा श्रीनगर में बुलाई गयी एक बैठक में श्री कंठ ने, जो गोवा के डायरेक्टर जनरल पुलिस रह चुके हैं , कहा की राज्य में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) जैसी संस्थाओं की सख्त आवश्यकता है.

इस कार्यक्रम में एक जज अब्दुल रशीद मलिक, निर्देशक जुडिशल अकादमी और कश्मीर विश्विद्यालय के प्रोफेसर जावेद रशीद ने भी भाग लिया।

हाल ही में भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा दिए गए बयान का ज़िक्र करते हुए श्री कंठ ने कहा की सिर्फ ये कहना की बच्चों को बाल सुधार गृह में रखा जाये बेमानी हो जाता है अगर राज्य में ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है.

उन्होंने कहा की अगर देश के गृह मंत्री ऐसी बात कर रहे हैं तो उन्हें इसके बारे में पहले राज्य के मुखिया से भी पता करना चाहिए था क्योंकि कश्मीर में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) हैं ही नहीं और इनकी स्थापना करना कानूनी रूप से बाध्यता है.

लेकिन अब लगता है राज्य सरकार इस मांमले को गंभीरता से ले रही है और उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद राज्य सरकार ने जम्मू और कश्मीर में ४ -४ जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की स्थापना करने का फैसला कर लिया है.

अभी तक इन बच्चों को पब्लिक सेफ्टी डेटनेशन एक्ट में बंद किया जाता रहा है.

कश्मीर में बच्चों द्वारा पत्थर फेंके जाने वाली घटनाओं के बारे में उन्होंने कहा की अगर ऐसी कुछ घटनाएं हुई भी हैं तो यह इतनी गंभीर बात नहीं है और इन बच्चों को बच्चों के सुधार गृह में चाहिए जैसा की जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट 2000 में प्रावधान है. २००५ में इस एक्ट को बदलने से सिर्फ जघन्य अपराध करने वाले बच्चों की उम्र १६ से १८ कर दी गयी है लेकिन ऐसे बच्चों की संख्या १ प्रतिशत भी नहीं है.

देश भर में बच्चॉ में कथित रूप से बढ़ते अपराधों के ग्राफ की बात करते हुए श्री कंठ ने कहा की भारत के बच्चे दुनिया में सबसे अधिक सहनशील हैं क्योंकि देश भर के पूरे अपराधों में उनका प्रतिशत केवल १.१ है और जघन्य अपराधों में तो ये संख्या और भी काम हो जाती है जबकि अमरीका में इनकी संख्या १२ के करीब है.

श्री कंठ जो 'प्रयास' नामक एन जी ओ के संस्थापक सचिव भी हैं इस कानून को बदलने के सख्त विरोधी थे और उन्होंने संसद की स्टैंडिंग कमिटी के सामने अपनी बात भी रखी थी जिसे उसने मान भी लिया था लेकिन बाद में कानून बदल दिया गया.

अपनी बात श्रीनगर में रखने के बाद श्री कंठ ने वहां से फ़ोन पर बताया की उनकी बात का वहां की मीडिया और समाज के अन्य वर्गों ने बहुत स्वागत किया और उन्होंने आशा व्यक्त की आने वाले समय में राज्य में बच्चों के बारे में लोगों की सोच बदलेगी।

(Cover Photograph BASIT ZARGAR)