विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के खिलाफ पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी राज्यों में जोरदार प्रदर्शन हो रहे हैं. इन राज्यों के निवासियों को आशंका है कि केंद्र द्वारा प्रस्तावित संशोधन से इस क्षेत्र की ‘देशी’ आबादी के स्वरुप में भारी परिवर्तन आयेंगे.

प्रस्तावित संशोधन के पारित होने पर इस विधेयक के जरिए अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश, और पाकिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन एवं पारसी जैसे धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए भारत की नागरिकता प्राप्त करने की शर्तों में बदलाव किया जायेगा. धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के इन आप्रवासियों के लिए भारत में निवास करने की अवधि की शर्तों को बदलकर उसे वर्तमान 11 वर्षों से घटाकर छह वर्ष किया जायेगा. हालांकि यह संशोधन इन देशों से आनेवाले अवैध मुसलमान आप्रवासियों पर लागू नहीं होगा.

संशोधन के प्रस्ताव को लेकर समूचे पूर्वोत्तर राज्यों में बेचैनी बढती जा रही है. यहां तक कि उन राज्यों में भी खलबली मची हुई है जहां भाजपा सीधे सत्ता में है या फिर सत्तारूढ़ गठबंधन का एक हिस्सा है.

भाजपा - शासित असम के मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल ने कहा है कि अगर वो असम के लोगों के हितों की रक्षा करने में असफल रहे तो मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे. मेघालय में, जहां भाजपा अपने दो विधायकों के साथ नेशनल पीपुल्स पार्टी की अगुवाई वाली सत्तारूढ़ मेघालय लोकतांत्रिक गठबंधन में हिस्सेदार है, मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की कैबिनेट ने इस विधेयक का विरोध करने का “सर्वसम्मति से निर्णय” लिया है.

भाजपा – शासित अरुणाचल प्रदेश में और मणिपुर एवं नागालैंड में, जहां भाजपा सत्तारूढ़ गठबंधन में हिस्सेदार है, राज्य सरकारों ने इस मसले पर चुप्पी साध रखी है.

हालांकि, अरुणाचल प्रदेश सरकार के प्रवक्ता पी डी सोना ने द सिटिज़न को बताया कि यो तो अरुणाचल प्रदेश इनर लाइन परमिट की व्यवस्था से संरक्षित है, लेकिन राज्य सरकार अवैध आप्रवासियों को नागरिकता प्रदान किये जाने के खिलाफ है और इस आशय का एक प्रस्ताव पिछले विधानसभा में पारित कराया था.

श्री सोना ने कहा कि देशी आबादी के हितों की सुरक्षा हर हाल में सुनिश्चित होनी चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि चकमा एवं हाजोंग शरणार्थियों का मामला अदालत में विचाराधीन है. उनका कहना था कि शरणार्थियों, जिन्हें खुद भारत सरकार ने बसाया है, की स्थिति के बारे में एक स्पष्ट नजरिए की जरुरत है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में पारित एक आदेश में बौद्ध चकमाओं और हिन्दू हाजोंग शरणार्थियों, जिन्हें भारत सरकार ने चटगांव की पहाड़ियों से विस्थापित होने के बाद 1960 के दशक में अरुणाचल प्रदेश में बसाया था, को नागरिकता प्रदान करने को कहा था. पिछले साल, केंद्र सरकार इस आदेश को लागू करने पर सहमत हुई थी. सरकार के इस कदम को चुनौती दी गयी है.

इन दोनों समुदायों को नागरिकता प्रदान करने के किसी भी प्रस्ताव का व्यापक विरोध होता रहा है. पिछले साल, इस मसले पर एक व्यापक बंद का आयोजन किया गया था जिससे आम जनजीवन ठप्प हो गया था.

नागरिकता (संशोधन) विधेयक के खिलाफ ताजा प्रदर्शन नार्थ ईस्ट स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन (एनईएसओ) द्वारा आयोजित किया गया. इस प्रदर्शन का निर्णय भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल की अध्यक्षता वाली संयुक संसदीय समिति द्वारा विधेयक के बारे में असम और मेघालय में जन – सुनवाई ख़त्म होने के दस दिन बाद लिया गया.

गुवाहाटी में प्रदर्शन के दौरान एनईएसओ के पदाधिकारी राजभवन के सामने धरने पर बैठे और विधेयक एवं सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.

एनईएसओ के सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने कहा, “यह केंद्र सरकार को एक चेतावनी है. हम शांत नहीं बैठने वाले. हम समूचे पूर्वोत्तर क्षेत्र में इस विधेयक का विरोध करने जा रहे हैं. इस विधेयक का विरोध करने के लिए हमारे पास संख्या - बल भी है और तर्क भी. इस विधेयक का विरोध करने के लिए हम किसी भी हद तक जायेंगे. क्षेत्र के देशी लोगों के हितों के खिलाफ जानेवाले किसी भी चीज से हम कोई भी समझौता नहीं करेंगे.”

अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में भी इस मुद्दे पर धरने का आयोजन किया गया. शुरू में प्रशासन द्वारा धरने की अनुमति नहीं दी गयी थी. लेकिन बाद में इसकी इजाज़त दे दी गयी. आल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा राज्यपाल को नागरिकता विधेयक के विरोध में एक ज्ञापन भी सौंपा गया.

तविप्रा स्टूडेंट्स फेडरेशन ने भी त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में इस संबंध में प्रदर्शन किया.