गठबंधन में होने के बावजूद हाल के दिनों में शिवसेना के रिश्ते भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ बिगड़े हैं और नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 के खिलाफ उसने भाजपा के एक अन्य सहयोगी दल, असम गण परिषद (अगप), के रुख का समर्थन करने का एलान कर दिया है.

शिव सेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने अगप के नेताओं को आश्वस्त किया है कि उनकी पार्टी इस मुद्दे पर हर संभव मदद करेगी.

शनिवार की शाम मुंबई में अगप नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के दौरान उद्धव ठाकरे ने कहा, “आप असम और वहां के देशी लोगों की एक अहम समस्या लेकर यहां आये हैं. हम हमेशा देशी लोगों के हितों के लिए काम करते रहे हैं. शिवसेना का आपका पूरा साथ देगी और इस दिशा में हर जरुरी कदम उठाएगी. संसद में हमारे सभी सांसद आपके समर्थन में खड़े होंगे. यह सिर्फ आपकी समस्या नहीं बल्कि पूरे देशवासियों की समस्या है. आपको चिंतित होने की कोई जरुरत नहीं है.”

दोनों दल साथ काम करने पर भी सहमत हुए. और इस मुद्दे पर दोनों दलों का यह पहला औपचारिक संवाद था. अगप नेताओं के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व असम के कृषि मंत्री और पार्टी के अध्यक्ष अतुल बोरा ने किया. प्रतिनिधिमंडल में अगप के कार्यकारी अध्यक्ष केशब महंत, असम के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री फणि भूषण चौधरी और पार्टी के तीन महासचिव सर्वश्री रमेन्द्र नारायण कलिता, कमला कलिता और बीरेंद्र प्रसाद बैश्य शामिल थे.

यह एक अहम राजनीतिक घटनाक्रम है जिसमें महाराष्ट्र में मजबूत आधार रखने वाली शिवसेना ने खुलकर भाजपा के प्रति अपनी नाखुशी जाहिर की है. शिव सेना ने 2019 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का भी एलान कर रखा है.

भाजपा और शिव सेना का गठबंधन ढाई दशक पुराना है. हालांकि 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से ठीक पहले दोनों दल अलग हो गए थे. लेकिन विधानसभा चुनावों के बाद दोनों एकबार फिर से साथ आ गये और देवेन्द्र फडनवीस के नेतृत्व में राज्य में सरकार बनायी.

शिव सेना के मुखपत्र “सामना” के एक हालिया सम्पादकीय में विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों में भाजपा को मिली हार पर सवाल उठाये गये थे.

शिव सेना के नेताओं ने पूछा था, “प्रधानमंत्री विश्व भ्रमण कर रहे हैं और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपने ‘संपर्क अभियान’ के तहत देश भर में घूम रहे हैं. श्री शाह एनडीए के घटक दलों से भी मुलाकात करेंगे. आखिर वो करना क्या चाहते हैं? वे इस मुकाम पर लोगों से क्यों मिल रहे हैं जब भाजपा को उपचुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा है?”

दूसरी ओर, असम में भाजपा के साथ गठबंधन में होने के बावजूद अगप नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ मुखर रही है. इस विधेयक में 31 दिसम्बर 2014 तक पड़ोसी मुल्कों से भारत आये गैर – मुसलमान अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है.

अगप के नेताओं ने शिवसेना नेताओं के साथ मुलाकात पर संतोष व्यक्त किया है. श्री बोरा ने कहा, “हम सभी क्षेत्रीय दलों को इस देश और यहां के लोगों के वृहत हितों के लिए मिलकर काम करना चाहिए.”

भाजपा द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक को आगे बढ़ाये जाने की स्थिति में अगप नेताओं ने गठबंधन से अलग हो जाने की चेतावनी दी है. इस विधेयक को 2016 में संसद में पेश किया गया था. संसद ने इस विधेयक को एक संयुक्त संसदीय समिति के पास पुनर्विचार के लिए भेज दिया था.

असम, विशेषकर ब्रह्मपुत्र घाटी, में अगप समेत विभिन्न संगठन इस विधेयक का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. आल असम स्टूडेंट यूनियन और कृषक मुक्ति संग्राम समिति समेत लगभग 300 से अधिक संगठनों ने संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष इस विधेयक के विरोध में अपनी राय व्यक्त की है.

बराक घाटी में, जहां बंगला भाषी लोगों का वर्चस्व है, स्थिति थोड़ी अलग है. वहां लोगों ने इस विधेयक का समर्थन किया है.