पिछले साल 16 सितम्बर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग शहर में गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल में बारहवीं कक्षा का छात्र, तोको यामे, जवाहर नवोदय विद्यालय के छात्रों के साथ झड़प के बाद गायब हो गया. एक सप्ताह से भी ज्यादा वक़्त गुजर जाने के बाद अधिकारियों को उसकी लाश मिली, जो इतनी बुरी स्थिति में थी कि उसकी पहचान मुश्किल से हो पायी. तब से यामे के परिजन न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं.

घटना के नौ महीने बीत जाने के बाद, उस 17 – वर्षीय छात्र के परिजन पुलिस पर इस मामले में कोई ठोस प्रगति हासिल करने में असफल रहने और दोषियों को सजा नहीं दिला पाने का आरोप लगा रहे हैं.

उस छात्र के गुमशुदा होने के तुरंत बाद पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया था. आगे चलकर बीगा जलप्रपात के निकट से उसकी लाश मिलने के बाद सात और लोग हिरासत में लिये गये थे. शुरू में, एक 18 – वर्षीय युवक के साथ 15 नाबालिग गिरफ्तार किये गये थे. यह आरोप लगाया गया कि नाबालिग होने के आधार पर हिरासत में लिए सभी लोगों को रिहा कर दिया गया. 18 – वर्षीय युवक को भी छोड़ दिया गया.

स्थानीय मीडिया में इस घटना की ख़बर फैलने पर कई युवा और छात्र सगठनों ने इसकी निंदा शुरू कर दी और हत्या की विस्तृत जांच की मांग की. आल ईस्ट कमेंग डिस्ट्रीक्ट स्टूडेंट्स यूनियन ने इस मामले में ठोस प्रगति हासिल करने में असफल रहने के लिए राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना की.

पूर्वी कमेंग जिले का निवासी तोको यामे अपने गृह शहर से दूर तवांग में पढाई कर रहा था.

इस घटना का सबसे चिंताजनक पहलू यह हुआ कि इसकी वजह से इलाके में सांप्रदायिक तनाव बढ़ने लगा. तोको यामे अका जनजाति का सदस्य था, जबकि तवांग मोन्पा जनजाति – बहुल इलाका है. सामुदायिक संगठनों, सरकारी अधिकारियों और ग्रामीण संगठनों के नेताओं के बीच लगातार संवाद की वजह से यह सुनिश्चित हो पाया कि बदले की कोई कार्रवाई न हो और इलाके में हिंसा न भड़के, पर माहौल फिर भी तनावपूर्ण रहा. लेकिन हत्या की गुत्थी न सुलझ पाने से निराश तोको यामे के परिजनों का धैर्य जवाब देने लगा.

पिछले 15 मई को तोको के पिता कोया यामे ने संवाददाताओं को बताया कि मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) से उनका विश्वास उठ गया है.

उन्होंने यह भी कहा कि उनके बेटे की हत्या इसलिए की गयी क्योंकि वह एक ‘गिडू’, गैर – मोन्पा जनजाति के लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाना वाला नकारात्मक शब्द, था. अपने बेटे की मौत से दुखी पिता ने यह आरोप लगाया कि झड़प में सिर्फ छात्र शामिल नहीं थे बल्कि स्थानीय निवासियों और पुलिस ने भी उनके बेटे पर प्रहार किया.

कोया का दावा है कि मारने से पहले उनके बेटे को अमानवीय यातनाएं दी गयीं. उन्होंने बताया कि उनके बेटे के हाथों को गर्म पानी में डाला गया था और उसका एक कान और एक आंख पुतली गायब थी. उसके एक घुटने और खोपड़ी पर जख्म थे. उसकी कलाई और गर्दन पर खरोंच के निशान थे और गले पर चाकू के निशान थे.

एक हालिया मीडिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि आरोप – पत्र में नाबालिगों एवं वयस्कों समेत कुल 35 लोगों के नाम शामिल किये गये हैं, लेकिन इसे जिला पुलिस के समक्ष अभी तक पेश नहीं किया गया है.

पिछले मई महीने में तोको के परिजनों ने राज्य सरकार से इस मामले को सीबीआई को सौंपने की मांग की थी और इसके लिए सात दिन का अल्टीमेटम दिया था. हालांकि, राज्य सरकार की अनुमति के बिना सीबीआई किसी राज्य में जांच शुरू नहीं कर सकती.

पिछले सोमवार को न्याय की मांग को लेकर राज्य की राजधानी ईटानगर में आल ईस्ट कमेंग डिस्ट्रीक्ट स्टूडेंट्स यूनियन और तोको के परिजनों द्वारा आयोजित एक रैली में सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया. स्टूडेंट्स यूनियन की मांग है कि राज्य सरकार मामले की सीबीआई जांच का आदेश दे और घटना वाले दिन पीसीआर की ड्यूटी में तैनात सभी पुलिसकर्मियों को बर्खास्त करे.

प्रदर्शनकारियों ने अपनी मांगों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार को 15 दिनों की मोहलत दी है. इस दिशा में कार्रवाई नहीं होने पर उन्होंने तवांग जिले की “आर्थिक नाकाबंदी” की चेतावनी दी है. सरकारी रवैये से हताश कोया ने बताया कि न्याय मिलने तक उनका संघर्ष जारी रहेगा.