अपनी उम्र के पांचवें दशक में कदम रखने वाली जयमती दास अपना और अपने दो बेटों की नागरिकता साबित करते – करते थक चुकी हैं. वो यह साबित करने के लिए कोर्ट के कई चक्कर लगा चुकी हैं कि वो और उनके दो बेटे वास्तव में भारतीय नागरिक हैं.

उनके पति, गोपाल दास, को भी ऐसी ही एक नोटिस मिली थी. बुरी तरह बीमार और लाचार गोपाल दास इस नोटिस का दबाव नहीं झेल पाये और उन्होंने आत्महत्या कर ली.

भारत – भूटान सीमा पर स्थित असम के उदालगुरी जिले के निचिलामारी गांव में अपने घर की सीढ़ियों पर बैठी जयमती दास ने द सिटिज़न को सुबकते हुए बताया, “हमारी किस्मत में यही देखना लिखा था. इतने अपमान के बाद मुझे अपने पति को खोना पड़ा. अब क्या आपको लगता हैं कि मैं यहां जिंदा रहने लायक हूं?”

असम में कथित अवैध निवासियों की जांच के लिए, असम पुलिस का सीमा विभाग, “संदिग्ध” लोगों के नाम संबंधित फोरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी), जिसकी स्थापना अवैध निवासियों की समस्या से निपटने के लिए की गई थी, को भेजता है.

फोरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) उनलोगों को नोटिस भेजता है जिनपर यहां बिना किसी वैध कागजात के रहने या 25 मार्च 1971, जोकि राज्य में अवैध निवासियों को पहचानने के लिए निर्धारित अंतिम तारीख है, के बाद सीमा पार कर यहां आने का संदेह होता है. असम में इस वक़्त कम – से – कम 100 फोरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) काम कर रहे हैं.

अगर कोई व्यक्ति अपनी नागरिकता साबित करने में असफल रहता है, तो उसके प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू होने तक उसे निर्धारित केन्द्रों पर हिरासत में रखा जाता है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, असम में छह हिरासत केन्द्रों में कम – से – कम 899 घोषित विदेशी हैं. उधर, चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में उन मतदाताओं के नाम के आगे “संदिग्ध” या “डी” लिखना शुरू किया है जो 1997 से अपनी नागरिकता साबित करने में असफल रहे हैं. ऐसे “डी” नाम वाले मतदाताओं को न तो मतदान करने और न ही चुनाव लड़ने की इजाज़त होती है.

जयमती ने बताया कि फोरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) से अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने का नोटिस मिलने के बाद उनके पति कई दिनों तक बेहद तनाव में रहे. उन्होंने बताया कि मतदाता सूची में उनके पति का नाम 1966 से दर्ज है. उन्होंने आगे जोड़ा, “वे चुनावों में मतदान भी करते थे.”

हालांकि, उदालगुरी जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अभिजीत गौरव ने बताया कि पुलिस को ठोस रिपोर्ट लेकर आना अभी बाकी है. श्री गौरव ने द सिटिज़न को बताया, “यह बता पाना कठिन है कि उस व्यक्ति ने सिर्फ नोटिस मिलने की वजह से आत्महत्या कर ली. उसने कोई सुसाइड नोट भी नहीं छोड़ा है. हमारी जांच अभी जारी है.”

गोपाल दास के बड़े बेटे गणेश दास, जिनकी उम्र तीस साल के आसपास होगी और जिन्हें फोरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) से अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने का नोटिस मिला है, ने अपने पिता की कहानी बताते हुए यह जानकारी दी कि वे कई सप्ताह से अवसाद से घिरे थे. हालांकि, उन्होंने अपने परिजनों को इस बारे में कुछ खास नहीं बताया था.

चिंता में डूबे गणेश ने बताया, “पिछले डेढ़ महीने में पिताजी ने एफटी के तीन चक्कर लगाये. पिछले छह जून को वे आखिरी बार ट्रिब्यूनल गये थे और सुनवाई की अगली तारीख 26 जून थी. उन्होंने वकील को पंद्रह हजार रूपए भी दिए थे. हमारे लिए पंद्रह हजार रूपए बहुत मायने रखते हैं.”

अपने घर से 10 किलोमीटर दूर खोइराबारी कस्बे में साईकिल मरम्मत की दुकान चलाने वाले गणेश ने अपने पिता की मौत के बाद से अपनी दुकान तक नहीं खोली है.

बेहद गरीबी की वजह से अपनी हाईस्कूल की शिक्षा पूरी न कर पाने वाले गणेश ने बताया, “हमलोग अभी काम करने की मनःस्थिति में नहीं हैं. हमलोगों ने राह दिखाने वाले अपने गाइड को खोया है.”

इस घटना के बाद पूरा परिवार सदमे में है. अपने जीवन के इस पड़ाव पर उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है कि उनका अपना कोई देश ही नहीं रहा.

अब जबकि नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न (एनआरसी) आगामी 30 जुलाई को प्रकाशित होने जा रही है, इस परिवार के सदस्यों को आशंका है कि अंतिम मसौदे में उनका नाम नहीं शामिल किया जायेगा.

पहली जनगणना के बाद 1951 में ही पहली बार नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न (एनआरसी) प्रकाशित की गयी. इसमें जनगणना के दौरान दर्ज सभी लोगों के विवरण को संकलित किया गया था. असम के संदर्भ में, इस दस्तावेज को भारतीय नागरिकों को पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आये अवैध आप्रवासियों से अलग करने के लिए तैयार किया गया था.

अब एक नई और अद्यतन एनआरसी प्रकाशित की जायेगी जिसमें उनलोगों के वंशजों के नाम जोड़े जायेंगे जिनके नाम 1951 के एनआरसी या 25 मार्च 1971 तक के किसी भी मतदाता सूची या उस अवधि में जारी किसी अन्य मान्य दस्तावेज में शामिल थे जिससे उनके असम का निवासी होना साबित होता हो.

एनआरसी कार्यालय की नयी अधिसूचना के मुताबिक, जिन लोगों के नाम अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए एफटी को भेजे गये हैं या संदिग्ध या डी मतदाता के तौर पर दर्ज किये गये हैं, उनके नाम को अंतिम मसौदे से हटा दिया जायेगा.

असम में नागरिकता साबित करने से जुड़ी आत्महत्या का यह कोई अकेला मामला नहीं है. पिछले कुछ सालों में बांग्ला मूल के कम – से – कम 10 लोगों द्वारा नागरिकता साबित करने के दबाव की वजह से आत्महत्या कर लेने की ख़बर है.

आल असम बंगाली यूथ स्टूडेंट्स फेडरेशन (एएबीवाईएसएफ) ने सीमा पुलिस पर लोगों को मनमाने ढंग से संदिग्ध करार दिये जाने का आरोप लगाया है.

एएबीवाईएसएफ के अध्यक्ष कमल चौधरी ने कहा, “इस किस्म की अनियमितता को रोकने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल की है. मैं मुख्यमंत्री से इस संबंध में तत्काल कार्रवाई करने और इस किस्म के उत्पीड़न से लोगों को निजात दिलाने की अपील करता हूं.”

हालांकि, असम सीमा पुलिस के उपमहानिरीक्षक रौनक अली हजारिका ने इन आरोपों से यह कहते हुए इनकार किया है कि ऐसा कानूनी रूप से संभव नहीं है. हजारिका ने कहा,” देखिए, दस्तावेजों की ठीक प्रकार से जांच के बाद किसी व्यक्ति पर यहां अवैध रूप से रहने का संदेह होने की स्थिति में उसका नाम फोरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) को भेजना हमारा बुनियादी काम है.”

पहचान में गलती होने और गलत आरोपों के संबंध में उन्होंने कहा कि हम कानून के अनुसार आरोपी व्यक्ति को अपनी नागरिकता साबित करने का पर्याप्त मौका देते हैं.

इस साल मार्च में असम सरकार द्वारा विधानसभा में दी गई एक जानकारी के मुताबिक, राज्य में कुल 1, 25, 333 “डी” मतदाता हैं.