भारत में पितृसत्ता और बलात्कार की संस्कृति पर हाल में एक टिप्पणी करने पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा शाह फैसल से स्पष्टीकरण मांगे जाने के बाद से एक जोरदार बहस छिड़ गयी है. इस बहस में जम्मू –कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला 2010 की आईएएस की परीक्षा में अव्वल रहे कश्मीर के इस नौजवान के समर्थन में खुलकर आ गये हैं.

ट्विटर पर उमर अब्दुल्ला ने लिखा, “ऐसा मालूम होता है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग @shahfaesal को सिविल सेवा से बाहर खदेड़ने पर अडिग है. इस पृष्ठ की आखिरी पंक्ति, जिसमें फैसल की ‘निष्ठा और ईमानदारी’ पर सवाल उठाया गया है, पूरी तरह से हतप्रभ कर देने वाली और अस्वीकार्य है. कोई व्यंग्यात्मक ट्वीट गैर-ईमानदार कैसे हो सकती है? वह उसे भ्रष्ट कैसे बनाती है?”

एक अन्य ट्वीट में उमर ने लिखा, “जब राजस्थान और अन्य जगहों के अधिकारी ‘शासन एवं व्यवहार के स्थापित नियमों’ का उल्लंघन करते हैं तो आपको कोई समस्या नहीं होती. लेकिन बलात्कार के बारे में फैसल की ट्वीट आपके लिए तकलीफ का कारण बन जाती है. फिर भी, यह सब मुझे जरा भी आश्चर्यजनक नहीं लगता.”

फेसबुक और ट्वीटर पर एक व्यंग्यात्मक पोस्ट में फैसल ने लिखा था, “पितृसत्ता + जनसंख्या + अशिक्षा + शराब + पोर्न + तकनीक + अराजकता = रेपिस्तान!” उनकी इस टिप्पणी की आलोचना करते हुए कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने अपने एक आदेश, जिसे फैसल ने अपने सोशल मीडिया में अपलोड किया है, में राज्य सरकार को 15 दिनों के भीतर उनसे जवाब मांगने का निर्देश दिया है.

उक्त आदेश में फैसल, जो फुलब्राइट द्वारा प्रायोजित अध्ययन अवकाश पर हैं, पर “अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान पूरी ईमानदारी और निष्ठा बरतने” में असफल रहने का आरोप लगाया गया है.

उस आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए फैसल ने कहा, “यह और कुछ नहीं बल्कि नौकरशाही के अति – उत्साह का मामला है. मुझे नहीं लगता कि इस बारे में कुछ किये जाने की जरुरत है. बलात्कार कोई सरकारी नीति का हिस्सा नहीं है कि उसकी आलोचना का मतलब सरकारी नीति की आलोचना बन जाये और कार्रवाई की जाये. अगर ऐसा है तो, मैं दोषी हूं.”

फैसल ने फेसबुक पर कहा, “यहां विडम्बना यह है कि अंतरात्मा की स्वतंत्रता को दबाने के लिए औपनिवेशिक भावना से लैस सेवा नियमों को लोकतांत्रिक भारत में लागू कर दिया गया. और हां, यह कोई करतब नहीं है. मैं इस बात को रेखांकित करने के लिए इसे साझा कर रहा हूं कि बदलते समय के साथ नियमों में बदलाव की जरुरत है.”

इस बीच, फैसल के खिलाफ की गयी इस कार्रवाई ने कश्मीर घाटी में एक नयी बहस को जन्म दे दिया है. कई लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पा हमला बता रहे हैं, तो कईयों ने इस आईएएस अफसर को देश में व्याप्त गर्म राजनीतिक और साम्प्रदायिक माहौल में काम करने के खतरों के बारे में ध्यान दिलाया.

राजनीतिक टिप्पणीकार गौहर गिलानी ने कहा, “अपने पिता को खोने के बाद भावनात्मक झटकों के आगे घुटने टेकने के बजाय उसने एक निष्क्रिय और औपनिवेशिक व्यवस्था में, पहले एक चिकित्सक और फिर एक नौकरशाह के रूप में, अपने कश्मीरी भाईयों की सेवा करने का कठिन रास्ता चुना. भारत सरकार ने उसे एक आदर्श के रूप में पेश कर अपने पक्ष में भुनाया और अब उस पर सेवा नियमों के उल्लंघन का आरोप लगा रही है.”

एक साक्षात्कार में, फैसल ने बताया कि वह एक 'बेहतर लक्ष्य’ के लिए अपनी मूल्यवान नौकरी खोने को तैयार है. उसने कहा, "जिस स्तर की बहस खड़ी करने की कोशिश मैं कर रहा हूं, उसके मुकाबले मेरा नौकरी खोना एक छोटा सा जोखिम है. हाँ, मेरी नौकरी जाने का खतरा है. लेकिन फिर दुनिया संभावनाओं से भरी है."