दिग्गज फिल्म निर्देशक कल्पना लाजमी के निधन से फिल्म उद्योग को बहुत बड़ी क्षति पहुंची है. असम के साथ उनका एक खास रिश्ता था. यही वजह है कि यहां के लोगों के साथ उनके जुड़ाव को आज शिद्दत से किया जा रहा है.

एक अरसे तक किडनी की बीमारी से जूझने के बाद कल्पना लाजमी ने रविवार की अहले – सुबह अंतिम सांस ली.

उन्हें सशक्त स्त्री – केन्द्रित फिल्मों के लिए लंबे समय तक याद किया जाता रहेगा. अपने कामों के अलावा, वो असमिया संस्कृति की मशहूर हस्ती भूपेन हजारिका की लंबे समय तक साथी रहीं थीं और 2011 में श्री हजारिका की मौत तक उनके साथ थीं.

कल्पना लाजमी के करीबी लोगों को श्री हजारिका के जीवन को बेहतर बनाने में उनके द्वारा किये गये त्याग याद हैं.

असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने अपने शोक संदेश में कहा कि भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को हमेशा याद किया जायेगा.

श्री सोनोवाल ने कहा, “उनके असामयिक निधन से फिल्म उद्योग में पैदा हुए शून्य को भरना मुश्किल होगा. राज्य के सांस्कृतिक जीवन से कल्पना लाजमी का अटूट जुड़ाव था. भूपेन हजारिका के साथ मिलकर उन्होंने कई अविस्मरणीय रचनाएं दीं, जिसने देश के सिने - जगत को समृद्ध किया. भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को हमेशा याद किया जायेगा.”

उनकी कई फिल्मों ने राष्ट्रीय फलक पर असम के सामाजिक – सांस्कृतिक जीवन का प्रतिनिधित्व किया. चर्चित भारतीय फिल्मकार गुरुदत्त की भांजी और प्रसिद्ध चित्रकार ललिता लाजमी की बेटी, कल्पना को उनकी ‘रुदाली’, ‘दमन’, ‘एक पल’, ‘दरमियां’ और ‘चिंगारी’ जैसी फिल्मों के लिए याद रखा जायेगा.

फिल्मों के जानकार एवं शोधार्थी पर्थाजित बरुआ ने कहा कि भारत की बेहतरीन महिला फिल्मकारों में से एक के रूप में कल्पना लाजमी की एक खास पहचान थी. उन्होंने आम तौर पर महिलाओं की अनसुनी रह जाने वाली आवाजों को एक पहचान दी.

प्रसिद्ध फ़िल्मकार अदूर गोपालकृष्णन की जीवनी “फेस टू फेस : द सिनेमाज ऑफ़ अदूर गोपालकृष्णन” के लेखक श्री बरुआ ने द सिटिज़न को बताया, “उनकी फिल्मों की कलात्मकता एवं सामाजिक औचित्य वाले कथानकों ने उन्हें दुर्लभ संवेदना वाले फिल्मकारों की श्रेणी में ला खड़ा किया. एक साझीदार के तौर पर भूपेन हजारिका के साथ उनके जुड़ाव ने असम के जनजीवन एवं संस्कृति को राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित करने वाली एक पारस्परिक रचनात्मकता को जन्म दिया. उनके असामयिक निधन ने भारतीय सिनेमा में एक बहुत बड़ा शून्य पैदा किया है.”

उनको करीब से जाननेवाले लोग उन्हें एक ऐसे दमदार एवं ईमानदार शख्सियत के रूप में चिन्हित करते हैं, जिसने हमेशा साफगोई बरती.

मुंबई में रहने वाले असमिया फ़िल्मकार बिद्युत कोटोकी ने द सिटिज़न को बताया, “जितना मुझे याद आता है, वो एक ईमानदार शख्सियत थीं. वो भूपेन मामा (हजारिका) को वाकई प्यार करती थीं और कठिन समय में भी उनका ख्याल रखा. उनकी ही बदौलत भूपेन मामा इतने समय तक जी पाये वरना हम उन्हें कम से कम 15 साल पहले ही खो देते.”

“पैड – मैन” में अभिनय करने वाली उर्मिला महंत ने कहा कि असम के लोग भूपेन हजारिका का ख्याल रखने के लिए कल्पना लाजमी का सदा आभारी रहेंगे.

द सिटिज़न से बात करते उर्मिला ने कहा, “मैं उन्हें हमेशा एक असाधारण जीवट, संतुलित सोच, मजबूत इरादों एवं अपनी शर्तों पर जीने वाली महिला के तौर पर याद रखूंगी. असमिया होने नाते, हम हमारे अपने भूपेन दा का हर तरह से साथ देने और उनका ख्याल रखने के लिए कल्पना जी का सदा आभारी रहेंगे. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.”

वर्ष 1971 में, 45 वर्षीय हजारिका से कल्पना की मुलाकात उस समय हुई थी जब वो 17 साल की थीं और मुंबई में सेंट ज़ेवियर कालेज में मनोविज्ञान की छात्रा थीं. तब हजारिका कल्पना के अंकल आत्मा राम द्वारा निर्देशित फिल्म “आरोप” के लिए संगीत तैयार कर रहे थे. तब से लेकर हजारिका के जीवन के सबसे कठिन दौर में भी वो उनके साथ खड़ी रहीं.

उनदोनों को जाननेवालों का कहना है कि हजारिका का जीवन बेहतर बनाने के लिए कल्पना ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया.

हाल में प्रकाशित उनका संस्मरण “भूपेन हजारिका : ऐज आई न्यू हीम” उनदोनों के रिश्ते से जुड़े कई अनजान पहलुओं से हमें रूबरू कराता है.

अपने अंतिम दिनों में कल्पना लाजमी को बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. ख़बरों के मुताबिक उनकी मौत जबरदस्त आर्थिक तंगी के बीच हुई. उनके इलाज में प्रत्येक सप्ताह लगने वाला ढाई लाख रूपए का खर्च अभिनेत्री आलिया भट्ट और उनकी मां सोनी राज़दान के अलावा उनके मित्र फिल्म -स्टार सलमान खान और आमिर खान द्वारा उठाया जा रहा था.