इदार – ए – तहकीकात या इस्लामिक रिसर्च इंस्टीच्यूट (आईआरआई) ने काजी यासिर को दक्षिण कश्मीर के मीरवाईज या ‘मुख्य उपदेशक’ पद से हटा दिया. आईआरआई ने यह निर्णय इस सप्ताह के शुरू में इस इस्लामिक उपदेशक से संबंधित एक अश्लील वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद लिया.

पीडीपी – भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री रहे उत्तरी कश्मीर के एक राजनेता के करीबी माने जाने वाले यासिर, हालांकि, दक्षिण कश्मीर के एक सामाजिक – धार्मिक संगठन ‘उम्मत – ए – इस्लामी’ के मुखिया बने रहेंगे. यह संगठन जम्मू – कश्मीर के लोगों के “आत्म – निर्णय के अधिकार” की हिमायत करता रहा है.

सूत्रों ने बताया कि इदार – ए – तहकीकात, जिसकी स्थापना यासिर के पिता काजी निसार ने की थी, अनंतनाग के जामा मस्जिद की गतिविधियों का संचालन करता रहेगा. काजी निसार मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट नाम के एक पुराने संगठन के लोकप्रिय नेता थे और उन्होंने नब्बे के दशक में घाटी में दहशतगर्दी के उभार से पहले कई चुनाव लड़े थे.

इस सप्ताह की शुरुआत में, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से स्नातक रहे यासिर को एक वीडियो में करीब बीस साल की एक युवती, जोकि दक्षिण कश्मीर की निवासी बतायी जा रही है, के साथ अश्लील बातचीत एवं हरकतें करते देखा गया. इस वीडियो ने घाटी में खासा हलचल मचा दिया. काजी यासिर शादीशुदा हैं और उनके दो बच्चे हैं.

आईआरआई से यासिर को हटाये जाने की मांग पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उनके नाना, मोहम्मद अब्दुल्ला शाह ने यासिर के भाई द्वारा संचालित एक वेब – पोर्टल पर कश्मीरियत के बारे में एक वीडियो जारी किया और यह एलान किया कि यासिर अब दक्षिण कश्मीर के मीरवाईज नहीं रहेंगे.

श्री अब्दुल्ला, जो इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में एक रहस्यमय तरीके से आईआरआई के संरक्षक के तौर पर सामने आये हैं, ने कहा, "हम काजी यासीर को दक्षिण कश्मीर के मीरवाईज पद से हटा रहे हैं और जन - भावनाओं को ध्यान में रखते हुए वो आईआरएफ के अध्यक्ष के पद से भी हट जायेंगे."

यासिर के पिता, काजी निसार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से अरबी में पीएचडी करके लौटने के बाद अपने पिता काजी अहमदुल्लाह से दक्षिण कश्मीर के मीरवाईज का पद संभाला था. 19 जून 1994 को दक्षिण कश्मीर के दियलगाम में अज्ञात बंदूकधारियों ने उनकी हत्या कर दी थी.

काजी यासिर ने 2004 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से ही स्नातक किया और 2012 में आईआरआई की बागडोर संभाली. उन्होंने उत्तरी कश्मीर के एक राजनेता की पार्टी के साथ हाथ मिलाया था और यूपीए – 1 के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कश्मीर पर एक गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लिया था.

कई प्रयासों के बाद भी काजी यासिर से उनकी प्रतिक्रिया के लिए संपर्क नहीं हो सका.