जम्मू - कश्मीर के राज्यपाल एस. पी. मलिक द्वारा राज्य सरकार के साढ़े पांच लाख कर्मचारियों एवं पेंशनधारियों के सामूहिक स्वास्थ्य बीमा के लिए रिलायंस जनरल इन्सुरेंस कंपनी के साथ विवादास्पद करार को रद्द किये जाने के बाद इस पूरे प्रकरण की एक उच्चस्तरीय जांच की मांग तेज हो गयी है.

इस विवादास्पद करार, जिसे विगत 1 अक्टूबर को अंतिम रूप दिया गया था, को बढ़ते जन - दबाव और पक्षपात के आरोपों के कारण रद्द किया गया और राज्यपाल को मजबूरन इसे "धोखाधड़ी से भरा" करार देना पड़ा. इस पूरे प्रकरण में राज्य सरकार के कुछ शीर्ष अधिकारियों की कथित मिलीभगत की खबरें हैं. सूत्रों के मुताबिक, राज्यपाल मलिक ने राज्य सरकार के वित्त विभाग के कुछ आला अधिकारियों एवं अपने दो सलाहकारों को राजभवन तलब कर रिलायंस को इस करार का जिम्मा देने में हुई "कुछ गड़बड़ियों" के बारे में स्पष्टीकरण मांगा.

हाल में श्रीनगर में एक समारोह के दौरान संवाददाताओं के सवालों का जवाब देते हुए राज्यपाल मलिक ने बताया, "कर्मचारी इस करार को रद्द देखना चाहते थे. इसमें कुछ गोलमाल की आशंकाएं थीं. मैंने पूरी फाइल पढ़ी और जब मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इसमें कुछ गलत है, तो मुझे इसे रद्द करने में एक मिनट नहीं लगा."

हालांकि, राज्य के कर्मचारियों के विरोध के बावजूद यह मलिक प्रशासन ही था जिसने राज्यपाल की अध्यक्षता एवं उनके तीन सलाहकारों की सदस्यता वाली सबसे शक्तिशाली राज्य प्रशासनिक परिषद की 1 अगस्त की बैठक के दौरान रिलायंस के साथ इस करार को मंजूरी दी थी.

अधिकारियों के मुताबिक, रिलायंस ने कर्मचारियों के लिए 8,776 रुपये और पेंशनभोगियों के लिए 22,228 रुपये की सबसे कम प्रीमियम की पेशकश करके एक साल का यह करार हासिल किया था. शुरू में, इस नीति को इस साल के फरवरी महीने से कार्यान्वित करने की योजना थी. लेकिन तत्कालीन पीडीपी - भाजपा सरकार ने बिना किसी कारण बताए इसे ठन्डे बस्ते में डाल दिया.

सूत्रों ने बताया कि एक दूसरे निजी कंपनी ने राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए 15 हजार रुपये से अधिक की प्रीमियम और पेंशनभोगियों के लिए 35 हजार रुपये से अधिक की प्रीमियम की पेशकश की थी, जोकि रिलायंस द्वारा पेश किए गए प्रीमियम से लगभग दोगुनी थी. जाहिर है कि यह राज्य सरकार और बीमा योजना के लाभार्थियों, दोनों के लिए फायदेमंद स्थिति नहीं थी.

हालांकि, यह बीमा योजना संदेह के घेरे में तब आई जब यह खुलासा हुआ कि राज्य सरकार ने तय मानदंडों का कोई लिहाज न करते हुए मेसर्स ट्रिनिटी रीइन्सुरेंस ब्रोकर्स लिमिटेड के माध्यम से ऑनलाइन एवं कुछ समाचार पत्रों में पॉलिसी निविदा जारी किया, वो भी छुट्टी के दिन.

सूत्रों ने बताया कि सरकार ने मूल निविदा में दो शर्तों का उल्लेख किया था. इसके तहत बोली लगाने वाली प्रक्रिया में प्रवेश करने वाली कंपनी का टर्नओवर वित्त वर्ष 2017-18 में पांच हजार करोड़ रुपये होने के साथ - साथ उसे राज्य में काम करने का अनुभव होना जरुरी था.

जम्मू - कश्मीर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "लेकिन रिलायंस के लिए रास्ता साफ़ करने की नीयत से इन शर्तों को हटा दिया गया. सभी कर्मचारियों को पॉलिसी खरीदने के लिए मजबूर किया गया. उनमें से कुछ ने पहले से ही खुले बाजार से स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का लाभ उठाया था. इससे लोगों की भौहें सरकार के प्रति तन गयीं."

हालांकि रिलायंस ने कहा है कि उन्हें बीमा योजना रद्द किये जाने के बारे में राज्य सरकार की ओर से कोई सूचना नहीं मिली है. फिर भी, इस बारे में विवादित अफवाहें हैं कि कंपनी ने वित्तीय दृष्टिकोण से बीमा योजना के "अव्यावहारिक" होने के कारण अपने हाथ खींच लिए और राज्य सरकार ने " सौदे में गड़बड़ी" का मुद्दा उठाकर उसे एक सुरक्षित निकास दे दिया.

राज्य सरकार के वित्त विभाग के एक अधिकारी ने बताया, " इस बात की काफी संभावना है कि रिलायंस के आदेश पर सौदा रद्द कर दिया गया हो क्योंकि उसकी पॉलिसी ने बहुत ही कम प्रीमियम पर कई आकर्षक प्रस्ताव पेश किए थे, जो किसी अन्य कंपनी के लिए संभव नहीं था. यहां तक ​​कि प्रीमियम की दूसरी सबसे कम बोली रिलायंस द्वारा उद्धृत प्रीमियम से लगभग दोगुनी थी. तस्वीर केवल तभी स्पष्ट हो पायेगी जब लोग नपेंगे. अन्यथा, यह शुद्ध नाटकबाजी है."