अरुणाचल प्रदेश के छात्र संगठनों ने राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर स्थानीय लोगों के हित में काम नहीं करने और चकमा एवं हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता का अधिकार देने के लिए कानून की अनदेखी करने का आरोप लगाया है.

वर्ष 1964 -1969 के दौरान, कापताई बांध के निर्माण एवं धार्मिक आधार पर उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश के चटगांव की पहाड़ियों में स्थित अपने घरों से भाग कर आये बड़ी तादाद में चकमा एवं हाजोंग समुदाय के लोगों को केंद्र सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में बसाया गया.

अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न छात्र संगठनों एवं स्वयंसेवी संगठनों का तर्क है कि चकमा एवं हाजोंग समुदाय के लोगों को राज्य में बसाये जाने से पहले यहां के लोगों को विश्वास में नहीं लिया गया. इन संगठनों का दावा है कि 20 से अधिक देशी जनजातीय समूहों वाले इस राज्य में चकमा एवं हाजोंग समुदाय के लोगों की जनसंख्या एक लाख को पार कर गयी है, जबकि कई देशी जनजातीय समूहों की तादाद महज चंद हजार में सिमट कर रह गयी है. हालांकि, चकमा एवं हाजोंग समुदाय के लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूहों का दावा है उनकी जनसंख्या 50 हजार के आसपास है.

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2015 में दिये गये एक आदेश के अनुरूप पिछले साल सितम्बर में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को चकमा एवं हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता का अधिकार प्रदान करने का निर्देश दिया. सरकार के इस फैसले के बाद एक राज्यव्यापी बंद के दौरान हिंसा एवं आगजनी की कई घटनाएं हुईं.

अब जबकि राज्य एवं केंद्र सरकार को अगले साल चुनावों का सामना करना है, इस मुद्दे को एक बार फिर से उभारा जा रहा है.

यो तो फिलहाल इस मामले की समीक्षा की जा रही है, राज्य सरकार ने जानकारी दी है कि चकमा एवं हाजोंग समुदाय के लोगों के नागरिकता – संबंधी कुल 4,637 आवेदन खारिज कर दिये गये हैं. आल पापुम पारे डिस्ट्रिक्ट स्टूडेंट्स यूनियन ने राज्य सरकार के इस दावे को आखों में धूल झोंकने वाला करार दिया है.

यूनियन ने अपने एक बयान में कहा, “वर्तमान राज्य सरकार ने चकमा – हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता दिये जाने के खिलाफ विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करके और नागरिकता संबंधी 4,637 आवेदनों को खारिज करने का दावा करके राज्य के नागरिकों के आंखों में धूल झोंकने का प्रयास किया है.”

छात्र संगठनों का कहना है कि राज्य के चार विधानसभा क्षेत्रों - दोइमुख, चाउखम, बोंदुम्सा – दियूं और मीओं – के मतदाता सूची में चकमा एवं हाजोंग मतदाताओं के नाम शामिल करने के चुनाव आयोग के निर्णय पर “भाजपा सरकार ने एतराज नहीं जताया है.” इन संगठनों का आरोप है कि राज्य सरकार ने उन वोटरों के पंजीकरण के खिलाफ कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया और मतदाता पंजीकरण अधिकारियों ने चकमा और हाजोंग मतदाताओं को “बड़ी तादाद में हर साल पंजीकृत किया”.

छात्र संगठनों का दावा है कि राज्य में 4,800 शरणार्थियों के नाम मतदाता सूची में शामिल करके उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से नागरिकता प्रदान कर दी गयी. इन संगठनों का मानना है कि इस कदम से राज्य में बसे चकमा और हाजोंग समुदाय के लोगों को शरणार्थी एवं वास्तविक भारतीय नागरिक के तौर पर दोहरा लाभ उठाने का मौका मिलेगा.