जम्मू – कश्मीर में राजभवन के विवादास्पद फैसलों से घाटी की क्षेत्रीय पार्टियां बुरी तरह नाराज हैं. इन क्षेत्रीय पार्टियों ने राज्यपाल सतपाल मालिक पर राज्य को प्राप्त “विशेष दर्जा” की स्थिति को कमजोर करने का आरोप लगया है.

जे एंड के बैंक, जिसमें राज्य सरकार सबसे बड़ी हिस्सेदार है, के दर्जे को “कम” करके उसे सार्वजानिक क्षेत्र के एक उपक्रम के बराबर करने और रोशनी एक्ट के तहत जमीन के निबंधन पर रोक लगाने के बाद, राज्यपाल प्रशासन कथित रूप से राज्य विषयों से जुड़े प्रमाण - पत्र की प्रक्रिया में बदलाव करने की तैयारी में है.

राज्यपाल को लिखे एक पत्र में राज्य के भूतपूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने आरोप लगाया कि राज्य के विभिन्न संस्थाओं के कामकाज में “एकतरफा बदलाव” लाकर यहां के “जनसांख्यिकीय स्वरुप को विकृत करने का प्रयास" किया जा रहा है. उन्होंने कहा, " यह जम्मू- कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जा के लिए हानिकारक" साबित होगा.

जम्मू – कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि ये कदम “लोकतंत्र और प्रशासनिक भागीदारी के सिद्धांत और भावना के खिलाफ” हैं. उनके मुताबिक इस किस्म का दुस्साहस इस संवेदनशील सीमावर्ती राज्य की शांति में खलल पैदा कर सकता है.

उन्होंने कहा, “खबरों के मुताबिक संबंधित अधिकारियों को इन प्रमाण – पत्रों को जारी करने की प्रक्रिया में बदलाव लाने के निर्देश दिये जा चुके हैं. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बारे में राज्य के किसी भी राजनीतिक दल एवं अन्य संबंधित पक्षकारों से कोई व्यापक राय - मशविरा नहीं किया गया.”

पूर्व मुख्यमंत्री को भेजे गये अपने पत्र में राज्यपाल ने कहा कि एक “वरिष्ठ राजनेता” होने के नाते श्री अब्दुल्ला को इस किस्म के “तथ्यहीन एवं बेबुनियाद खबरों पर विश्वास नहीं करना चाहिए. दरअसल, उनपर लोगों के बीच अनावश्यक अविश्वास को बढ़ावा देने के बजाय उन्हें दूर करने की जिम्मेदारी है.” उन्होंने कहा कि श्री उमर अब्दुल्लाह का राजभवन में स्वागत है. वे उनसे मिलने किसी वक़्त भी आ सकते हैं, “जैसाकि गाहे – बगाहे वो करते रहे हैं”.

पूर्व मुख्यमंत्री को भेजे गये पत्र के अंत में राज्यपाल ने लिखा, “वैसे जब आप इस आशय का ट्वीट कर रहे थे कि मेरा फैक्स मशीन ख़राब है, वह चालू था और मेरे अधिकारी ने आपका फैक्स संदेश प्राप्त किया और इसकी तस्दीक भी की.”

भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सहयोगी और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने जे एंड के बैंक और स्थायी निवासी प्रमाण – पत्र से जुड़े नियमों के बारे में राज्यपाल द्वारा अनावश्यक विवादास्पद आदेश देने की प्रवृति जारी रहने की स्थिति में राज्य में “2008 जैसा आंदोलन” छेड़ने की चेतावनी दी.

उन्होंने कहा, “वर्ष 2008 में भी अमरनाथ धार्मिक न्यास (अमरनाथ श्राइन बोर्ड) को जमीन हस्तांतरित करने का एक अनावश्यक आदेश जारी किया गया था और इसके बाद पूरे राज्य में फैले व्यापक जनविरोध ने सरकार को फौरन उस आदेश को वापस लेने पर मजबूर किया था. इस बार भी राज्यपाल ने स्थायी निवासी प्रमाण – पत्र के नियमों और जे एंड के बैंक के बारे में कुछ ऐसे ही आदेश जारी किये हैं. मैं राज्यपाल प्रशासन को यह चेतावनी देती हूं कि अगर उन्होंने इन आदेशों को तत्काल वापस नहीं लिया, तो राज्य में 2008 जैसा जनांदोलन छेड़ा जायेगा.”

यहां तक कि भाजपा के सहयोगी और पीडीपी – भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री रहे सज्जाद लोन भी राजभवन की कार्यशैली से नाखुश हैं. उन्होंने ट्वीटर पर लिखा, “राज्यपाल प्रशासन को खुद को बुनियादी प्रशासन तक ही सीमित रखना चाहिए. पीआरसी और जे एंड के बैंक से जुड़े कोई भी संरचनात्मक बदलाव स्वीकार्य नहीं होंगे. आप अपनी उर्जा वहीँ तक सीमित रखें जिसके लिए आपको अधिकृत किया गया है. जोकि आप नहीं कर रहे हैं. कृपया नयी समस्याएं मत खड़ी कीजिए.”

इस मसले पर तनाव को ठंडा करने की गरज से उमर अब्दुल्लाह के पत्र के जवाब में राजभवन ने लिखा कि सरकार राज्य में स्थायी निवासी प्रमाण – पत्र को प्रशासित करने वाली अधिनियम में कोई बदलाव नहीं कर रही है “और न ही ऐसा करने के बारे में सोच रही है”. अपने जवाब में राज्यपाल ने श्री अब्दुल्लाह को लिखा, “यह जम्मू – कश्मीर राज्य की वैधानिक संरचना का एक अभिन्न हिस्सा है और इस कानून से छेड़छाड़ का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है.”

राज्यपाल ने कहा, “जहां तक आपके पत्र में उठाये गये बाकी मुद्दों का सवाल है, मैं यह साफ़ कर देना चाहूंगा कि सभी पक्षों से व्यापक विचार – विमर्श किये बगैर पीआर सर्टिफिकेट को प्रशासित करने वाली प्रक्रियात्मक नियमों में कभी भी कोई बदलाव नहीं किया जायेगा.”