पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही. पार्टी के दो प्रमुख नेता, जिन्हें अभी एक दिन पहले पार्टी से निकाल दिया गया था, नेशनल कांफ्रेंस में शामिल हो गये.

पीडीपी ने मरहूम पत्रकार शुजात बुखारी, जिनकी हाल में हत्या कर दी गई, के भाई और पीडीपी – भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री रहे बशारत बुखारी को दो दिन पहले पार्टी से निकाल दिया था. पार्टी ने पीर मोहम्मद हुसैन को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया था.

उत्तरी कश्मीर के संगरामा क्षेत्र से विधायक रहे बशारत ने कल श्रीनगर में डॉ फारुक अब्दुल्ला एवं उमर अब्दुल्ला की उपस्थिति में नेशनल कांफ्रेंस की सदस्यता ग्रहण कर ली.

एक अन्य भूतपूर्व मंत्री पीर मोहम्मद हुसैन, जो पिछली सरकार में वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष थे और जिन्हें “दल – विरोधी” गतिविधियों के आरोप में पीडीपी से निकल दिया गया था, ने भी नेशनल कांफ्रेंस की सदस्यता स्वीकार कर ली.

संवाददाताओं से बात करते हुए श्री बुखारी ने कहा, “महबूबा जी का कद काफी बढ़ गया है और मेरे लिए उनके स्तर तक पहुंचाना संभव नहीं था. और मुझे क्यों उन्हें बार – बार परेशान करना चाहिए? मैं उनका निरादर नहीं करना चाहता. आदर की निशानी के तौर पर मैंने पार्टी छोड़ दी.”

श्री हुसैन ने पार्टी से निकलने की अपनी “बाध्यता” के लिए भाजपा के साथ जाने के निर्णय को जिम्मेदार ठहराया. नेशनल कांफ्रेंस में शामिल होने के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा, “किसी एक पार्टी को छोड़ना और दूसरी में शामिल होना बेहद मुश्किल होता है. लेकिन कई बार परिस्थितियां इस कदर विकट हो जाती हैं कि मुश्किल फैसले लेने पड़ते हैं.”

पूर्व खेल मंत्री इमरान रेज़ा अंसारी, उनके चाचा आबिद अंसारी, मोहम्मद अब्बास वानी और विधान परिषद के सदस्य यासिर रेशी द्वारा पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बगावत किये जाने के बाद यह पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती के लिए दूसरा बड़ा झटका है.

इमरान और आबिद पिछले महीने सज्जाद लोन के नेतृत्व वाले पीपुल्स कांफ्रेंस में शामिल हो गये. पीपुल्स कांफ्रेंस भाजपा की सहयोगी पार्टी है. इन दोनों नेताओं के इस कदम के बाद “नार्दर्न अलायन्स” की चर्चा एक फिर तेज हुई. उधर, श्री रेशी और श्री वानी अभी किनारे खड़े होकर राजनीतिक माहौल की थाह ले रहे हैं. लेकिन उनके झुकाव के बारे में सब कुछ साफ़ है.

पार्टी में बगावत के बाद पीडीपी की अध्यक्ष ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर अपने एक विधायक, एजाज़ मीर, को गिरफ़्तारी की धमकी देने और पीडीपी से इस्तीफा देकर विपक्ष में शामिल होने के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया. एजाज़ मीर वही विधायक हैं जिनका अंगरक्षक पिछले साल 7 एके – 47 बंदूकें लेकर भाग निकला था और हथियाबंद लोगों के दस्ते में शामिल हो गया था.

इसके बाद, भूतपूर्व वित्त मंत्री और पीडीपी – भाजपा गठबंधन के शिल्पकार डॉ. हसीब द्रबू ने पार्टी से इस्तीफा देकर महबूबा की चिंताओं को बढ़ा दिया. महबूबा साफ़ तौर पर राज्य में विधानसभा चुनावों से पहले अपने कुनबे को एकजुट रखने के लिए जूझ रही हैं.

पार्टी ने कल महबूबा इकबाल को भी महासचिव पद से हटा दिया. पीडीपी के वरिष्ठ नेता ए आर वीरी ने बताया, “ये सभी नेता पार्टी – विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाये गये थे और चेतावनी दिए जाने के बावजूद सुधर नहीं रहे थे.”

पार्टी की आतंरिक रस्साकसी के बारे में पूछे जाने पर एक वरिष्ठ पीडीपी नेता ने कहा, “हम क्या करें? हम सिर्फ देख और इंतजार कर सकते हैं. हम लोगों को अपने साथ जुड़े रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकते. बेहतर भविष्य की चाह में जिन लोगों ने पीडीपी छोड़ा है, उन्हें मजा चखना पड़ेगा.”

सूत्रों के अनुसार, एक अन्य पीडीपी नेता सैफउद्दीन भट भी पार्टी छोड़ने का मन बना रहे हैं. उन्हें कथित रूप से भाजपा के साथ सरकार वाले ज़माने में पार्टी द्वारा हाशिये पर रखा गया था. सूत्रों ने बताया, “नेशनल कांफ्रेंस के शीर्ष नेतृत्व के साथ उनकी मुलाकात हुई है. वे आधिकारिक रूप से पार्टी में शामिल हो सकते हैं.”

भाजपा द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के तुरंत बाद पीडीपी में बगावत की आग भड़क उठी और राज्य में एक राजनीतिक संकट उठ खड़ा हुआ. सरकार गिरने के बाद राज्य में राज्यपाल – शासन लागू कर दिया गया.

पीडीपी के सह – संस्थापक मुज़फ्फर हुसैन बेग ने पिछले महीने कहा था कि वे सज्जाद लोन के नेतृत्व वाले “तीसरे मोर्चे” में शामिल होंगे. लेकिन महबूबा के साथ एक बैठक के बाद उन्होंने कथित रूप से अपना इरादा बदल लिया.

उनकी पत्नी, सफीना बेग, पार्टी की महिला शाखा की मुखिया हैं.