पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की मुखिया एवं जम्मू – कश्मीर की भूतपूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती की चिंताएं बढ़ती ही जा रही हैं. उनकी पार्टी में बिखराव का दौर जारी है. पार्टी के एक अन्य महत्वपूर्ण नेता ने पार्टी को अलविदा कह दिया.

जावेद मुस्तफा मीर, जो बडगाम जिले के चदूरा क्षेत्र से 2002 से लगातार जीतते चले आ रहे थे, ने पीडीपी से नाता तोड़ लिया है. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत पीडीपी से ही की थी.

मध्य कश्मीर क्षेत्र में पीडीपी का एक महत्वपूर्ण चेहरा माने जाने वाले श्री मीर ने द सिटिज़न को बताया, “मैं आज ही अपना इस्तीफा पार्टी को भेज दूंगा. अभी कुछ दिनों तक इस मसले पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा.”

पीडीपी – भाजपा गठबंधन सरकार में मुफ़्ती मोहम्मद सईद के मुख्यमंत्रित्व काल में राजस्व मंत्री रहे श्री मीर इस गठबंधन के मुखर विरोधी थे और उन्होंने कई बार विधानसभा के अंदर और बाहर हिन्दू दक्षिणपंथी नेताओं से टकराव मोल लिया था.

हालांकि, 2016 में महबूबा मुफ़्ती के मुख्यमंत्री बनने पर श्री मीर को मंत्रीमंडल में जगह नहीं दी गयी. उस वक़्त उनके पार्टी से निकाले जाने की अफवाहें जोरों पर थीं. श्री मीर ने कथित रूप से जम्मू में गैर राज्य के निवासियों को राज्य के निवासी होने का प्रमाण –पत्र अवैध रूप से दिये जाने पर जांच का आदेश दिया था, जिसका भाजपा ने विरोध किया था.

यह अलग बात है कि भाजपा द्वारा समर्थन वापस लिए जाने से कुछ ही महीने पहले दिसम्बर 2017 में श्री मीर को मंत्रीमंडल में एक बार फिर से शामिल किया गया जब महबूबा ने अपने भाई, तस्सदुक मुफ़्ती, को सरकार में जगह देने के लिए मंत्रीमंडल में फेरबदल किया. उन्हें एक ‘कम महत्वपूर्ण मंत्रालय’ का जिम्मा सौंपा गया.

श्री मीर के एक निकटवर्ती सूत्र ने बताया, “उनके (मीर के) और पार्टी के बीच मतभेद उनके अनपेक्षित निष्कासन के बाद बढ़ता गया. पीडीपी के राजनीतिक मामलों की समिति में मनोनीत किये जाने के बावजूद उन्होंने पार्टी के मसलों से दूरी बनाये रखी और महत्वपूर्ण बैठकों एवं कार्यक्रमों से नदारद रहे.”

पूर्व विधायक मुस्तफा मीर के बेटे जावेद मीर का पार्टी छोड़ना पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती के लिए एक और बड़ा झटका है, जो सत्ता से बेदखल होने के बाद से अपनी पार्टी को एकजुट रखने के लिए जूझ रही हैं. मुस्तफा मीर की हत्या मार्च 1990 में कर दी गयी थी.

भाजपा द्वारा गठबंधन छोड़ने के बाद से श्री मीर पीडीपी को अलविदा कहने वाले सातवें महत्वपूर्ण नेता एवं पूर्व विधायक हैं. पार्टी से इस्तीफा देने वाले अन्य लोगों में बशारत बुखारी, इमरान अंसारी, उनके चाचा आबिद अंसारी, हसीब द्रबू , मुहम्मद अब्बास वानी एवं यासिर रेशी शामिल हैं.

हाल में मारे गये पत्रकार शुजात बुखारी के भाई बशारत बुखारी जहां इस्तीफा देने के बाद नेशनल कांफ्रेंस में शामिल हो गये और संग्राम क्षेत्र से उम्मीदवार बनने की तैयारी में हैं, वहीँ अंसारी बंधु भाजपा के सहयोगी सज्जाद लोन के नेतृत्व वाले पीपुल्स कांफ्रेंस में शामिल हो गये.

अब जबकि विधानसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं, खासकर मुफ़्ती सईद के 2016 में इंतकाल के बाद पीडीपी के सितारे गर्दिश में नजर आ रहे हैं. पिछले साल 19 जून को भाजपा द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद पार्टी को गठबंधन सरकार में खेल मंत्री रहे इमरान अंसारी के नेतृत्व में हुए बगावत से रूबरू होना पड़ा.

पिछले महीने शीर्ष नौकरशाह रहे बशीर अहमद रुनियाल एवं महबूब इकबाल और भूतपूर्व पुलिस अफसर रहे राजा एजाज़ अली ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस बात की अफवाह जोरों पर है कि आने वाले दिनों में पीडीपी के कई और नेता पार्टी को अलविदा कह सकते हैं. इस किस्म की खबरों ने पार्टी नेतृत्व की नींद उड़ा दी है.