दो अलग – अलग संवाददाता सम्मेलन में राजनीतिक पटल पर दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े दो राजनीतिक दलों ने एक ही मुद्दे पर एक - दूसरे से भिन्न प्रतिक्रियाएं दीं.

अब जबकि समूचे पूर्वोत्तर क्षेत्र का ध्यान केंद्र सरकार के उस नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर है जो अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के बौद्ध, ईसाई, हिन्दू, जैन, पारसी, एवं सिख समूहों के धार्मिक अल्पसंख्यक आप्रवासियों (वैध या अन्यथा) को यहां की नागरिकता हासिल करने के लिए भारत में रहने की आवश्यक अवधि को घटाकर छह वर्ष करने का प्रावधान करता है, अरुणाचल प्रदेश कांग्रेस समिति (एपीसीसी) ने एक संवाददाता सम्मेलन बुलाकर इस प्रस्ताव पर अपने विरोध को दोहराया.

ईटानगर में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए एपीसीसी के अध्यक्ष तकम संजोय ने कहा कि यह विधेयक “पूर्वाग्रह, भेदभाव एवं साम्प्रदायिकता से प्रेरित है” और “संविधान के खिलाफ” है.

भूतपूर्व सांसद श्री संजोय ने कहा कि इस विधेयक को संसद के पटल पर रखा ही नहीं जाना चाहिए था.

पूर्वोत्तर क्षेत्र के विभिन्न राजनीतिक दलों, नागरिक एवं छात्र संगठनों के भारी विरोध के बावजूद इस विधेयक को मंगलवार को लोकसभा में पारित कर दिया गया. इन संगठनों का मानना है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र पहले से ही अवैध बांग्लादेशी आप्रवासियों की वजह से दबाव झेल रहा है और इसकी वजह से स्थानीय समुदायों को अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक हो जाना पड़ा है. नये विधेयक से इन स्थानीय समुदायों की स्थिति और भी बदतर हो जायेगी.

यह अलग बात है कि इस विधेयक को अभी राज्यसभा में पेश नहीं किया गया है.

श्री संजोय ने कहा, “भाजपा द्वारा लाया गया और लोकसभा में पारित यह विधेयक पूरी तरह से असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण, सांप्रदायिक और नैतिकता एवं संविधान की भावना के खिलाफ है.”

उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान सरकार अव्यवस्थित है और तंज कसते हुए जोड़ा, “ऐसी सरकार का होना अच्छा है क्योंकि यह गलतियां करती रहती है और यह विधेयक ऐसी ही एक गलती है.”

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य में, जहां स्थानीय समुदायों की संख्या चंद हजार में है, महज 2000 लोगों का आप्रवासन भी राज्य की जनसांख्यिकी को प्रभावित कर देगा.

पूर्वोत्तर क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा संवैधानिक रूप से संरक्षित है. ये हिस्से या तो छठवी अनुसूची या फिर ईस्टर्न बंगाल फ्रंटियर रेगुलेशन के तहत हैं.

जहां अरुणाचल प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष स्वाभाविक रूप से इस विधेयक के विरोध में मुखर थे, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत संयमित थी.

श्री संगमा फिलहाल अरुणाचल प्रदेश की राजधानी में हैं और अपनी पार्टी – नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) – के राज्य इकाई के नेताओं के साथ आगामी चुनावों के मद्देनजर विचार – विमर्श में मशगूल हैं.

अपनी पार्टी के घोषणापत्र और सिक्किम की एक संसदीय सीट को छोड़कर पूर्वोत्तर क्षेत्र की 24 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना के बारे में संवाददाताओं को बताते हुए श्री संगमा ने इस विधेयक के बारे में कोई जिक्र नहीं किया.

एनपीपी के नेतृत्व वाली मेघालय सरकार, जिसमें भाजपा एक सहयोगी दल है, ने हाल में उक्त विधेयक के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया था.

श्री संगमा ने कहा कि वे पहले ही इस विधेयक के बारे में विस्तार से बोल चुके हैं. उन्होंने हाल की गतिविधियों को खास तवज्जो न देते हुए कहा कि इस विधेयक का पूरी तरह से पारित होना अभी बाकी है.

उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी का भाजपा के साथ गठबंधन जारी रहेगा, लेकिन उसके साथ सीट साझा करने का कोई समझौता नहीं होगा. भविष्य में इस विधेयक के पारित होने की स्थिति में उनकी पार्टी अपने अगले कदम पर विचार करेगी.

इस बीच, इस क्षेत्र के विभिन्न छात्रों संगठनों के परिसंघ नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (एनईएसओ) ने 12 जनवरी को प्रस्तावित नागरिकता संशोधन और संगठन द्वारा 8 जनवरी को बुलाये गये 11 घंटे के पूर्वोत्तर बंद के दौरान त्रिपुरा में पांच छात्र कार्यकर्ताओं को पुलिस द्वारा गोली मारे जाने के विरोध में 'काला दिवस' मनाने का एलान किया है.