असम में भोगली बिहू या माघ बिहू का पर्व इस बार विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बीच मनाया गया.

बिहू के दौरान असम के लोग अन्य गतिविधियों के अलावा सामुदायिक भोज में हिस्सा लेते हैं. लेकिन इस बार, विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पर्व के मौके पर उक्त विधेयक, जिसे लोकसभा द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है, के खिलाफ अनशन किया.

बड़ी संख्या में असम और पूर्वोत्तर राज्यों के लोग इस विधेयक का यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि यह 1985 के असम समझौते को निरस्त और बेअसर कर देगा. असम समझौते में 1971 के बाद राज्य में आये किसी भी विदेशी नागरिक को, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, प्रत्यर्पित करने का प्रावधान है.

ताज़ा विधेयक अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये हुए अल्पसंख्यकों – हिन्दुओं, सिखों, बौद्ध धर्म के अनुयायियों, जैन धर्म के अनुयायियों और ईसाईयों – को भारत में 11 वर्ष के बजाय 6 वर्ष तक ही रहने के बाद, भले ही उनके पास सभी आवश्यक दस्तावेज न हों तब भी, यहां की नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन का प्रावधान करता है. इस विधेयक में 31 दिसम्बर 2014 तक यहां आने वाले लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है.

सूचना अधिकार कार्यकर्ता अखिल गोगोई ने बताया, “त्योहार के मौके पर मुझे अपने परिवार और बच्चे के साथ होना था, लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी हैं कि हमारे पास और कोई विकल्प नहीं बचा. हमारा राज्य बर्बादी की ओर बढ़ रहा है. अगर यह विधेयक पूरी तरह पारित हो गया, तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश नहीं रह जायेगा. इसके अलावा, इस विधेयक की वजह से हमारी भाषा और संस्कृति खतरे में पड़ जायेगी. हम ऐसा नहीं होने देंगे. यह ‘करो या मरो’ का समय है. लिहाज़ा हमने बिहू मनाने का इरादा छोड़ दिया और यह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं “

गुवाहाटी में 14 जनवरी की दोपहर से श्री गोगोई के साथ आठ व्यक्ति अनशन पर बैठे हैं. 15 जनवरी की सुबह विभिन्न राजनीतिक एवं अन्य संगठनों के लोग एवं प्रतिनिधि उनका समर्थन करने आ जुटे.

असम साहित्य सभा के अध्यक्ष परमानंद राजबोंगशी ने कहा, “इस मसले पर हम सभी एकसाथ हैं. हमलोग यहां अखिल गोगोई के साथ खड़े होने के लिए आये हैं. हमारा राज्य एवं यहां के लोग गहरे संकट में हैं. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल से हमारी अपील है कि इससे पहले कि बहुत देर हो जाये वे हमारी मांगों को सुन लें.”

श्री राजबोंगशी ने कहा कि साहित्य सभा ने शुरू से इस विधेयक का विरोध किया है और वे किसी भी कीमत पर इसे कानून नहीं बनने देंगे .

बिहू मनाने वाले लोग बांस और घास – फूस से बनी एक संरचना - ‘मेझी’ को जलाते हैं और बेहतर भविष्य के लिए प्रार्थना करते हैं. लेकिन इस साल राज्य भर में लोगों ने ‘मेझी’ के साथ उक्त विधेयक की प्रतियां जलाकर अपना विरोध दर्ज कराया.

अक्सोम छात्रो युवा संमिलन नाम के छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने भी इस विधेयक के विरोध में ऊपरी असम के शिवसागर और दुलियाजन में अनशन किया.

अक्सोम छात्रो युवा संमिलन के महासचिव एवं अधिवक्ता मधुरिया बरुआ ने कहा, “हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. इस विधेयक को वापस लिये जाने तक हमारा लोकतांत्रिक संघर्ष जारी रहेगा. यह विधेयक असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र का अंत कर देगा. हम अवैध विदेशियों का बोझ स्वीकार नहीं कर सकते. हम इस विधेयक एवं सरकार के खिलाफ हैं.”

श्री बरुआ ने राज्य के लोगों से इस आंदोलन में शामिल होने की अपील भी की.

उधर, लोकप्रिय संगीतकार जुबीन गर्ग ने मुख्यमंत्री श्री सोनोवाल को पत्र लिखकर इस विधेयक का विरोध करने का आह्वान किया है. श्री गर्ग, जो अपने बेबाक रवैये और राजनीतिक बयानों के लिए जाने जाते हैं, ने चुनाव से पहले भाजपा के लिए एक प्रचार गीत गाने के लिए गये फीस को लौटाने का भी ऐलान किया.