“नहीं, निश्चित रूप से मैंने कभी नहीं सोचा था, मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मेरे जीवन में मुझपर देशद्रोह का आरोप लगेगा,” द सिटिज़न को दिये एक साक्षात्कार में हिरेन गोहेन ने बताया.

अपने 80 साल के जीवन में शिद्दत से बौद्धिक गतिविधियों में सक्रिय रहने वाले प्रोफेसर गोहेन के खिलाफ कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई एवं पत्रकार – कार्यकर्ता मंजीत महंत के साथ असम सरकार ने विविदास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक के विरोध में आयोजित एक सभा में मौजूद रहने के लिए देशद्रोह का मुकदमा लाद दिया. फ़िलहाल गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इन तीनों को जमानत दे दी है.

प्रोफेसर गोहेन ने कहा कि वे तो दरअसल उस सभा में जबरदस्त रूप से नाराज युवाओं को शांत करने का प्रयास कर रहे थे. उन्होंने कहा, “अपने भाषण में, मैंने इस विधेयक पर सरकार से नाराज युवाओं पर लगाम कसने की कोशिश की.”

अपने साहित्यिक कार्यों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कैंब्रिज के इस विद्वान ने कहा कि नागरिकता विधेयक एक राष्ट्र के तौर पर भारत के लिए एक खतरा है. उन्होंने कहा, “इस विधेयक का लक्ष्य राज्य एवं नागरिकता के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को ध्वस्त करना है. वे सभी विविधताओं को नष्ट करते हुए और सबों पर एक बेहद ही अश्लील और साधारण विचारों वाली संस्कृति को थोपते हुए, इसे एक हिन्दू समरूपता की ओर वापस मोड़ना चाहते हैं. यह बुनियादी रूप से आत्माविहीन संस्कृति है. हम दरअसल भारत के उस विचार के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसे हम सभी चाहते हैं.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी भारतवासी को “इसे समझना चाहिए और हमारे साथ खड़ा होना चाहिए.”

प्रोफेसर गोहेन ने कहा कि दबाव में खुद न्यायिक व्यवस्था "थोड़ा लड़खड़ा रही है” और यह चिंता का विषय है.

उन्होंने चेताया कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक एक ऐसी आग लगा रही है, जो “समूचे असम को जला देगी”. उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम के “बेहद ही खतरनाक परिणाम होंगे”.

इस विद्वान ने कहा, “मुझे नहीं मालूम कि उन्हें इसका अहसास है या नहीं और उन्होंने यह सब जानबूझ कर किया है या नहीं, लेकिन इसका परिणाम ऐसा होने वाला है जिसे नियंत्रित करना मुश्किल होगा.”

आज़ादी के बाद से लेकर अब तक सभी सरकारों द्वारा देशद्रोह के इस अधिनियम को समाप्त करने की अनिच्छा के बारे में पूछे जाने पर प्रोफेसर गोहेन ने इससे सहमति जतायी. उन्होंने कहा, “बेशक यह सच है. यह बेहद शर्मनाक है कि ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी के लिए लड़ने वाले लोगों ने देशद्रोह के कानून को जारी रखा और अपेक्षाकृत अधिक लोकतांत्रिक रोशनी में इसके प्रावधानों के बारे में हस्तक्षेप और व्याख्या करने का जिम्मा सर्वोच्च न्यायालय पर छोड़ दिया गया.”

उन्होंने आगे जोड़ा, “अगर कांग्रेस और विपक्ष पार्टियां सत्ता में आती हैं और अपने होश नहीं खोती हैं, तो उनका पहला कार्य देशद्रोह कानून को खत्म करना होना चाहिए.”

इस बीच, पूरे असम में नागरिकता विधेयक के खिलाफ विरोध जोर पकड़ता जा रहा है. संगीतकार और कलाकार भी अब इसके विरोध में सड़कों पर उतर पड़े हैं. पड़ोसी देशों में धार्मिक अल्पसंख्यक के तौर पर रहने वाले हिन्दुओं को भारत की नागरिकता प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा लाये गये इस संशोधन विधेयक की वजह से असम गण परिषद ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़ लिया. अब वह राज्य की सरकार में हिस्सेदार नहीं रही और इस विधेयक के खिलाफ बढ़ते आक्रोश के साथ खड़ी है. हिरेन गोहेन एवं अन्य लोगों के खिलाफ देशद्रोह के मुकदमे ने इस नाराजगी और हवा दी है.

कोलकाता के प्रेसीडेंसी कालेज से स्नातक रहे प्रोफेसर गोहेन ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से “स्वर्ग का अंत और सत्रहवीं शताब्दी का संकट (पैराडाइज़ लॉस्ट एंड सेवेंटीन्थ सेंचुरी क्राइसिस)” विषय पर शोध किया, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहा गया. कैंब्रिज से लौटकर उन्होंने एक प्रोफेसर के तौर पर गुवाहाटी विश्वविद्यालय में अपना योगदान दिया और वे असम के एक सम्मानित व चेहते हस्ती हैं. उन्होंने असमिया साहित्य के अध्ययन के लिए आलोचना के नये एंग्लो-अमेरिकन विचारों और तरीकों का समावेश किया और कई किताबें लिखी हैं, जिनमें चार खंडों के संस्मरण शामिल हैं.