बिना वर्दी के पाकिस्तानी फौज ने समूचे देश पर अप्रत्यक्ष रूप से अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है और व ह आगामी चुनाव का संचालन भी अपने हाथ में रखने मैं सफल हो गया है .यदि पाकिस्तान की आवाम ने 25 जुलाई को फौज विरोधी शक्तियो को वोट नही दिया और ऐसे पाटियों को वोट दिया जिन्हें फौज का समर्थन प्राप्त है तो पाकिस्तान एक बार फिर अप्रत्यक्ष फौजी तानाशाही में चला जायगा.

यद्यपि यह पाकिस्तान का तीसरा चुनाव है जो निर्धारित समय पर हो रहा है और इससे पहले की दोनों संसदो ने अपना कार्यकाल पूर किया था, इसलिए यह माना जा सकता है कि अब चुनाव कराना हर सत्ता के लिये आवश्यक हो गया है और बिना इस प्रक्रिया के उसे जनता से मान्यता नही मिलेगी. इसलिये अब सीधे फौजी शासन का समय गुज़र चुका है अब फौज को भी शासन करने के लिये नागरिक शासन का कवच पहनना आवश्यक हो गया है .फौज ने इसे प्राप्त करने की समुचित तैय्यारी कर रखी है और य्ह मुशररफ के( 2008) हटाये जाने के साथ ही शुरु कर दी गई थी और नवाज़ शरीफ के कार्यकाल में इसने नवाज़ के विरुद्ध राज नेताओं को एकत्रित करना शुरु कर दिया था .

फौज का राजनीतिक मोर्चा

सब से पहले इस के आशीर्वाद से इमरान खान और कनाडॅ स्थित तहीरुल कादरी ने कराची से इस्लामबाद तक एक मोर्चा निकाला जिसे लौंग मार्च का नाम दिया गया था. इस ने कई दिनों तक राजधानी इस्लामाबाद मैं आधिकतम सुरक्षा के क्षेत्र में घुस कर धरना दिया था. फौज ने उन्हें सुरक्षा के अलावा और कई सुविधाएं प्रदान की थी और जब उन्हें वहां से हटाने के आदेश दिये गये तो फौज ने उसे लागू करने से इंकार कर दिया. बाद में उन्हें प्रोत्सहित कर के ही हटाया जा सका .इस प्रकार फौज ने यह दिखा दिया कि बिना उस के पाकिस्तान में राज करना सम्भव नही है. फौज ने एक ओर अपना राजनैतिक मोर्चा बना लिया था और दूसरी ओर यह साफ कर दिया था कि उसने राजनीति से सन्यास नही लिया है बल्कि वह हमेशा की तरह एक सक्रिय हिस्सेदार है.नवाज़ शरीफ को भी साफ कर दिया कि या तो वह फौज के साथ तालमेल बना कर चले अथवा संघर्ष के लिये तैय्यार रहे .

इसी प्रकार जब डॉन अखबार ने य्ह रह्स्योद्घाटन किया कि नागरिक और फौजी अधिकारियों की बैठक में फौजी अधिकारियों को पाकिस्तान की मौजूदा दशा के लिये जिम्मेवार माना जिससे दोनो पक्षों में तेज़ बहस हुई . लेकिन जब यह खबर अखबारो में छप गयी तो फौजियो ने मुहिम छेड़ दी और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय बताया औरं अंत में एक अधिकारी को इस्तीफा देना पडा .

इसी लक्ष्य की पूर्ती के लिये फौज ने धर्मिक संगठनो को प्रश्रय दिया . आज कल बरेलवी मत के एक संगठन आंदोलन की राह पर पर हैं. इसका नाम है तहरीक –ए- लब्बायक या रसूल अल्लाह ( टी एळ वाइ ) है , यह उस समय बनाया गया था जब सल्मान तासीर की हत्या करने वाले इमरान कादरी को मौत की सजा सुनायी गयी थी तब से ही ये संगठन नवाज़ शरीफ की सरकार के विरोध में मोर्चा सम्भाल लिया है. हाल ही मैं इस संगठन ने राज धानी के पास एक राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया था. उनकी मांग यह थी कि सांसदो की शपथ में शपथ शब्द के स्थान पर घोषणा शब्द लाने का विरोध किया गय था . और बात यहॉ तक बढ़ गयी कि केंद्र के कानून मंत्री को त्याग पत्र देना पडा . फौज ने हस्तक्षेप किया और उन के नेता ने य्ह साफ कर दिय था कि हम यहाँ से फौज के कह ने से हट रहे हैं न कि सरकार के किसी मंत्री से बात चीत के बाद .नही . अर्थात वह और फौज एक ही सोच के हैं .दोनो ही चुनी हुई सरकार को कमज़ोर करना चाह्ते हैं.

हाफीज सईद की मुख्य धारा

इसी प्रकार हाफीज़ सईद क को भी मुख्य धारा में लाया जा रहा है. उसने अल्लह –ओ- अक्बर अक्बर- तहरीक स्थपित की है और और एक राजनैतिक पार्टी भी स्थपित की है.लेकिन आलोचना के बाद पकिस्तन के चुनाव आयोग ने इस पार्टी को पंजीकृत कर ने से इंकार कर दिय है. इन के प्रवक्ता तबिश कय्यूम के अनुसार हम पह ले नवज़ शरीफ की पार्टी को समर्थन देते थे , लेकिन अब नही , क्योंकि अब यह पार्टी पकिस्तान को एक उदार वादी देश बनाना चाह्ती है और लम्बे समय से कश्मीर पर जो हमार मत है उससे पीछे हट गये हैं . य्ह विदेशी शक्तियो के प्रभाव के कारण है.

इसी प्रकार एक पुराना गठबंधन फिर जीवित कर दिया गया है . वह है मुत्ताहिदा –मज्लिस ए- अमल. य ह कई धर्म आधारित संगठनो का गठजोड़ है ये संगठन अपने को फिर से जीवित करना चाहतें हैं. इस बीच जनता मे इन संगठनो का स्थान मुस्लिम लीग ,नवाज़ और तेहरीक –ए- इंसाफ ने ले लिया है .इन के सक्रिय होने पर इन दोनो पार्टियों के वोट पर असर पडेगा.

फौज और नवाज़ शरीफ का संघर्ष

फौज और नवाज़ शरीफ मैं लंबे समय से संघर्ष चल रहा है . य्ह बात सही है कि नवाज़ को राजनीति मैं लाने वाले भी फौज है और वह पी पी पी को हराने और खास तौर पर बेनज़ीर को हराने के लिये शरीफ का प्रयोग कर रही थी . इस खेल में बारी बारी 1990 के दशक में नवाज़ शरीफ और बेनज़ीर दोनों ही खेल चुके हैं और दोनों ने ही मात खायी है . आज की यह स्थिति है कि फौज इन दोनो के विरोध मैं खडी हो गई है और ये दोनों पार्टिया आज फौज के शासन के विरोध मैं खडी हैं.

पकिस्तान में बनी आम राय और जानकारों के विश्लेषण के अनुसार फौज ने एक तीसरा विकल्प तैय्यार किया है वह है ईँमरान खान .

इमरान खान को सत्ता मे लाने के लिये और इन दोनो पर्टियॉ को किनारे करने के लिये फौज ने न्याय पालिका और अन्य शास्कीय संस्थानो के साथ मिल् कर नवाज़ शरीफ और उसके परिवार को लम्बी जेल यात्र पर भेज दिया है . राजनीति में हिस्सा लेने से भी वह बहिष्कृत कर दिये गये हैं . अब बारी भुट्टो ज़रदरी परिवार की है. पूर्व राष्ट्रपति असिफ अली जरदारी और उन की बहन फरयाल तालपुर पर नकली बैंक खाता रखने का आरोप लगाया . इन पर राष्ट्रीय जवाब देही ब्युरों ने नोटिस दिया है. इन्हे देश छोड़ कर जाने की अनुमति नही है. इनका नाम एक्सिट कंट्रोल सूची में शामिल किय गया है. जब इसे चुनौती दी गई तो यह दलील दी गई , अस्थायी सरकार के द्वारा की यह सुप्रीम कोरेट के आदेश पर किया गया है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इससे साफ इंकार कर दिया है.

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पकिस्तान मुस्लिम लीग ( नवाज़) दोनों ने ही इस खतरे को पह्चाना है और साथ साथ आये हैं इन दोनो ने राष्ट्रीय जांच ब्युरो,चुनाव आयोग, न्याय् पालिका , और काम चलाउ राष्ट्रीय सरकार की आलोचना की है. चुनाव आयोग ने फौजी अधिकारियो को चुनाव मे कार्य करने के व्यापक अधिकार दिये हैं .फौज के अधिकारी चुनाव प्रक्रिया में दखल देने की स्थिति में हैं .

कानून की स्थिति बहुत खराब हो गई है . प्रत्याशियों के लिये प्रचार करना मुश्किल हो गया है. तीन बडे हमलों में नेता और प्रत्याशी दोनो ही मारे गये हैं. कुल मौतो की संख्या 150 है . इस आधार पर कि उस के जीवन को खतरा है .बिलावल भुट्टो को मीटिंग करने की अनुमति नही दी जा रही है.इससे पीपीपी का चुनाव अभियान खतरे मे पड़ गया है.

पाकिस्तान के अख्बार , स्तम्भ्कार इत्यादि सीधा फौज क नाम नही लेते है बल्कि कई तरह के नामो से संकेत करते हैं . जैसे डीप सटेट , प्रतिष्ठान ,छुपी शक्तिया इत्यादि ( deep state, establishment , unknown forces, etc.)

इसलिए इस चुनाव का रूप फौज बनाम राजनैतिक दल होता जा रहा है . पखतूनवा मिल्लि अवामी पार्टी के उस्मान कक्कड का कहना है कि यह चुनाव राजनीतिक पार्टियॉ और प्रतिष्ठान (establishment) के मध्य है . चुनाव आयोग और संस्थायें फौजी मुख्यालय से निर्देश ले रहे हैं , मीडिया पूरे नियंत्रण में है . पाकिस्तान एक कब्ज़ाया (occupied ) राज्य मैं परिवर्तित हो चुका है .

बहुत से प्रत्याशियों पर खेमा बदलने के लिये दबाव बनाया जा रहा है. कई ऐसे प्रत्याशी खड़े कर दिये गये हैं जो तंत्र के ही हैं .

डौन के स्तम्भ्कार आइ ऐ रह्मान के अनुसार , “ पाकिस्तान का मानव अधिकार आयोग स्पष्ट है कि इन चुनावों में बडे पैमाने पर धोखाधड़ीं की गई है. पाकिस्तान के एक अन्य सम्बंधित संस्थान पाकिस्तान ईंस्टीट्यूट ओफ लेजीसळॅटिव डेवेलॉपमेंट एण्ड ट्रांस्पैरेंन्सी कुछ समय पूर्व इस बारे में निश्चित कर चुका था कि यह चुनाव पहले से ही बडे स्तर पर छल कपट का शिकार हो चुका है. गैलप के अनुसार केवल एक अल्पमत ही ऐसा सोचता है कि यह चुनाव निष्पक्ष और उचित होंगे. चार विशिष्ट आचार्यों और लेखकों ऐ. समद , परवेज हूड्भोय , रसुल बक्श रईस और लेखक अब्दुल राशिद ( A.Samad.,Pervez Houdbhoy,rasul baksh rais and abdul Rashid) ने इस धोखा धडी का विरोध किया है. और पंजाब के काम चलाउ मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने को कहा है, यदि वह स्थिति को सम्भाल नही सकता है.पाक्सितान के समाचार पत्रो के संगठन के अध्यक्ष ने कहा है कि चुनावों में बड़े स्तर पर चालकी , धोखा धडी की ग़ई है. मीडिया पर हमले काफी खुल कर हो रहे हैं और सरकार इस बारे में कुछ नही कर रही है.

पाकिस्तान में व्याप्त सोच को आइ ए रहमान ने इस प्रकार रखा है कि पाकिस्तान के रे में एक बात साफ है कि वर्ष 2018 के चुनाव बेईमानी,धोखाधडी के शिकार हो चुके है. यह काम ऐसी संस्थाओं ने किया है जो चुनाव आयोग से अधिक शक्तिशाली हैं ."