श्रीलंका में तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच नयी दिल्ली स्थित साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के ढाई सौ छात्रों ने श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना को एक खुला पत्र भेजकर संसद का अधिवेशन बुलाने एवं देश में लोकतंत्र बहाल करने की मांग की है. दक्षिण एशिया के विभिन्न इलाकों से ताल्लुक रखने वाले छात्रों ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं. इस पत्र को नयी दिल्ली स्थित श्रीलंका के उच्चायोग के माध्यम से भेजा गया है. पेश है छात्रों का अनुवादित खुला पत्र:

महामहिम राष्ट्रपति जी, हम साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, नयी दिल्ली के छात्र श्री रनिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से हटाये जाने एवं महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किये जाने के बाद से श्रीलंका में बढ़ते राजनीतिक अनिश्चितता से चिंतित हैं. बेहद गोपनीय तरीके से एवं संसद में बिना किसी मतदान के उठाये गये इस कदम से उत्पन्न स्थिति ने कई लोगों की जानें ले ली है और सार्वजनिक जीवन को पूरी तरह से अस्त – व्यस्त कर दिया है. फिलहाल, हम संवैधानिक सन्दर्भों में इस कदम की वैधानिकता पर बहस नहीं कर रहे हैं. हम अभी सिर्फ इस कदम से जुड़ी नैतिकता एवं देश में राजनीतिक अनिश्चितता के संभावित खतरे को लेकर चिंतित हैं. हम सभी उन अनिश्चितताओं से परिचित हैं जिसने अतीत में श्रीलंकाई राजनीति एवं रोजमर्रा की जिंदगी को संचालित किया है. और अगर इस कदम ने देश को दोबारा उन्हीं परिस्थितियों की ओर धकेला, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा.

वर्ष 2015 के चुनाव के जनादेश, जिसमें महामहिम को राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किया गया था, ने कार्यपालक राष्ट्रपतित्व को समाप्त करने और संसद एवं कार्यपालिका के बीच सत्ता - संतुलन कायम करने का वचन दिया था. हालांकि, राष्ट्र – प्रमुख के तौर पर महामहिम का हतप्रभ कर देने वाला हालिया कदम उक्त जनादेश एवं मतदाताओं को दिये गये बेहतर प्रशासन के एक नये युग के वादे के खिलाफ है. यह कदम न सिर्फ राजनीतिक रूप से प्रतिकूल है बल्कि देश के लोकतांत्रिक परंपराओं के अस्तित्व पर भी सीधा खतरा है. दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों की तुलना में, श्रीलंका पिछले दो वर्षों में उत्तरदायी लोकतंत्र की दिशा में माकूल कदम उठा रहा था. लेकिन आपके हालिया कदम ने इस प्रगति में बाधा डाल दिया है और दक्षिण एशिया के युवा लोगों के रूप में हम न केवल श्रीलंका बल्कि विस्तारित रूप से समूचे दक्षिण एशिया पर आम तौर पर पड़ने वाले इस कदम के असर को लेकर बेहद चिंतित हैं.

इस संदर्भ में, हम आपसे संसद के स्थगन को उठाने और बिना कोई देर किये संसद का अधिवेशन का बुलाकर मतदान के जरिए यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करते हैं कि सदन में अभी किस नेता के पास बहुमत है.

इस किस्म की कार्रवाई से देश में स्थिरता सुनिश्चित होगी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का श्रीलंका के प्रति विश्वास फिर से बहाल होगा, जिसका फ़िलहाल पूरी तरह से संकट है.

भवदीय