नई दिल्ली: ‘युवा हुंकार रैली’ दिल्ली में संसद मार्ग पर शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित किया गया। इस में दिल्ली और दिल्ली के बहार से छात्र, समाजी कार्यकर्त्ता और सामान्य लोग शामिल होने आए थे। इस दौरान गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणि, असम के किसान नेता अखिल गगोई, वरिष्ठ वकील योगेन्द्र यादव, जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैय्या कुमार, उमर खालिद और शहला रशीद ने वहां मौजूद लोगों को संबोधित किया और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पर जम कर निशाना साधा।

यहाँ बड़ी संख्या में लोग अपने हाथों में ‘भीम आर्मी’ के संस्थापक चन्द्र शेखर आजाद की तस्वीर लिए हुए थे। इस रैली में उनको रिहा करने की मांग की गई। इस के अलावा, युवाओं को रोज़गार देने, दलितों और अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को बंद करने और देश को संविधान के अनुरूप चलाने की मांग की गई।

गुजरात के बडगाम से जीतकर विधायक बने जिग्नेश मेवाणि जब मंच पर बोलने के लिए आए तो उनके हाथ में संविधान की एक प्रति थी और उन्होंने ने प्रधान मंत्री पर ज़बानी हमला करते हुए कहा “हम प्रधानमंत्री से पूछना चाहेंगे कि अगर आपके एक हाथ में मनुस्मृति और एक हाथ में संविधान हो तो आप किसको चुनेंगे?” अपने भाषण के दौरान जिग्नेश ने भीमा कोरे-गांव में हुई हिंसा की चर्चा की और इसके दोषियों पर अबतक कार्रवाई नहीं करने के लिए सरकार से जवाब माँगा। उन्होंने अपने बारे में कहा कि उन पर पुणे में जाकर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। लेकिन वह पुणे गए ही नहीं थे और न कोई भड़काऊ भाषण दिया। उन्होंने आगे कहा “हम गुजरात के विधान सभा में पिछड़ों के लिए आवाज उठाएंगे और उनके अधिकारों की मांग के लिए सड़कों पर भी उतरेंगे”।

किसान नेता अखिल गगोई ने असम और उत्तर पूर्व की राजनीति पर बात की। उन्होंने कहा “नागरिक कानून में एक नया संशोधन किया गया है। इस में धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात की गई है। इस से बीजेपी और आरएसएस को असम में सांप्रदायिक राजनीति करके अपना वोट बैंक बढ़ाने का अवसर मिलेगा”। उन्होंने केंद्र की बीजेपी सरकार की जमकर आलोचना की। उन्होंने कहा “भारत में कोई भी खुश नहीं है, न महिला, न किसान और न कोई भी नागरिक। हम से अच्छे दिन का वायदा किया गया था और आज युवाओं को रोज़गार नहीं मिल रहा है”!

इस जमावड़े में प्रशांत भूषण भी थे। उन्होंने भी देश में हो रहे दलित और अल्पसंख्यक विरोधी गतिविधियों के लिए मोदी सरकार की निंदा की। उन्होंने बताया कि सांस्कृतिक विविधता हमारी पूँजी है लेकिन इस सरकार में उसे ख़त्म करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा “आपातकाल के समय लोकतंत्र को खतरा था और इस सरकार में हमारी सभ्यता को खतरा है”।

इनके अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ऋचा सिंह और गुमशुदा छात्र नजीब अहमद की बहन सदफ समेत कई युवओं ने भाषण दिया। इन युवाओं में एक अलग तरह का जोश दिख रहा था। वह रह रह कर ‘जय भीम’ और ‘चन्द्रशेखर को रिहा करो’ के नारे लगा रहे थे और वहां मौजूद पूरी जनता उनके साथ ये नारे लगाती थी।

बता दें कि इस रैली के लिए दिल्ली पुलिस ने अनुमति नहीं दी थी। लेकिन फिर भी जिग्नेश मेवाणि और उनके साथियों मोहित पाण्डेय, कन्हैय्या कुमार, उमर खालिद, नदीम खान और शहला रशीद ने इस रैली के आयोजन का निर्णय लिया था। इस दौरान संसद मार्ग पर बहुत बड़ी संख्या में पुलिस मौजूद थी। जगह-जगह बैरिकेड लगाए गए थे और वाटर कैनन की गाड़ियाँ भी खड़ी की गई थीं। लेकिन यह रैली दोपहर से शाम तक चली और शान्तिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई ।