छत्तीसगढ़ की एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में आधे से अधिक सत्र बीत जाने के बाद छात्र परिषद का चुनाव संपन्न हुआ है। इस चुनाव का समय नियमानुसार जुलाई है लेकिन तमाम नियमों को ताक पर रखते हुये यहां के प्रशासन ने इस चुनाव को 16 और 17 फरवरी को संपन्न कराया। जहां 20 छात्र प्रतिनिधियों का प्रत्यक्ष व 20 छात्र प्रतिनिधियों का अप्रत्यक्ष तौर पर चयन होता है। 20 अप्रत्यक्ष प्रतिनिधियों में 9 संकायों के सर्वोच्च अंक प्राप्त छात्र, 5 खेलकुद, 5 सांस्कृतिक व 1 पीएचडी कोटे से चुने जाते हैं। वहीं 20 प्रतिनिधियों में संकायों में छात्रों की संख्या के आधार पर सीटों का बंटवारा कर किया जाता है। इन 40 प्रतिनिधियों के द्वारा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, सह सचिव का चुनाव किया जाता है।

विश्वविद्यालय में चुनाव छात्र-परिषद नियमायवली के आधार पर होती है जो कि उच्चतम न्यायालय के आदेश पर गठित लिंगदोह कमेटी की सिफारिश के आधार पर बना है। चुनाव प्रक्रिया अंतिम वोटर लिस्ट निकलने के दस दिन के अंदर होती है। चुनाव के 21 दिन तक शिकायत निवारण के लिए समय अवधि दी जाती है। उसके बाद छात्र परिषद का शपथ ग्रहण समारोह होता है। छात्र चुनावों में सुधार के लिए लिंगदोह कमेटी का गठन किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार छात्र संघ व परिषद के चुनावों में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को मानना अनिवार्य है। परंतु प्रशासन इस बार तब चुनाव कराया है जब सत्र समाप्ति में मुश्किल से 45 दिन बचे हैं। छात्रों का कहना है कि प्रशासन केवल खानापूर्ति के लिए चुनाव करा रही है। हम लोग तो इतने कम समय में पूरे विश्वविद्यालय में यह तक नहीं बता पाएंगे कि हम छात्र नेता हैं। 17 फरवरी 2018 को चुनाव संपन्न हुआ है जिसके तुरंत बाद इंटर्नल परीक्षा, उसके बाद होली की छुट्टी, होली के बाद शपथ ग्रहण समारोह के बाद मुश्किल से 20 दिन भी नहीं गुजरेंगे कि फिर से इंटर्नल टेस्ट शुरू हो जाएगा। उसके बाद सेमेस्टर परीक्षा के लिए एक हप्ते की छुट्टी हो जाएगी। ऐसे में हम परीक्षा देंगे या कोई काम करेंगे। इन्हीं सब बातों को देखते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, आम आदमी पार्टी, एनएसयूआई सहित अन्य संगठनों ने चुनाव की इस प्रक्रिया में भाग नहीं लिया। कुछ छात्र और एक भाजपायुमों समर्थित संगठन ने भाग लिया।


चुनाव प्रक्रिया में विश्वविद्यालय प्रशासन ने लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को दरकीनार करते हुए एक छात्र का चयन तीसरी बार कर ली है। इसको लेकर कुछ छात्रों ने शिकायत भी की है लेकिन मुख्य चुनाव अधिकरी ने पत्रकारों से कहा की नॉमिनेशन में दो बार से ज्यादा चयन किया जा सकता है। लिंगदोह कमेटी में सदस्यों के लिए योग्यता में बताया गया है कि पदाधिकारी के लिए छात्र एकबार व सदस्य के लिए दो बार बन सकता है। विश्वविद्यालय में विधि विभाग के एक छात्र का चयन लगातार तीसरी बार हुआ है।

चुनाव में नवनिर्वाचित पदाधिकारियों के पैनल पर अपने ही लोगों को फार्म वापस लेने, बैठने के लिए दबाव बनाने जैसे मामले हुए। जिसका परिणाम यह हुआ कि सभी विजय प्रत्याशी ब्राहमण समुदाय के ही बने, चाहे वे अध्यक्ष हों, उपाध्यक्ष हों, या फिर सचिव उपसचिव हों।

इस बार के चुनाव में छात्रों का मुख्य मुद्दा छात्रावास में खाना, बस की सुविधा, नियमित शिक्षकों की भर्ती, लाईब्रेरी में पुस्तकों की संख्या बढ़ाने, 9 बजे तक बालिका छात्रावास की लड़कियों की आवागमन, छात्रों की शिकायतों का समय पर निपटारा सहित शौचालय की उपल्बधता व साफ-सफाई के मुद्दे पर रहे।

विद्यार्थियों के अधिकारों की रक्षा को लेकर 1848 में दादा भाई नौरजी ने ’दी स्टूडेंट साइंटिफिक एंड हिस्टोरिक सोसाइटी’ की स्थापना की थी। शैक्षणिक संस्थानों में छात्र अधिकारों के प्रति प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण छात्र संघ जैसी मंच की स्थापना की गई। इसका मुख्य मकसद छात्रों के अधिकारों को हासिल करना था। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सीढ़ी के रूप में छात्र राजनीति को जाना जाता है। इससे छात्र नेताओं में नेतृत्व की क्षमता विकसित होती है। इन तमाम उद्देश्यों की धज्जियां उड़ाते दिखा गुरू घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय का प्रशासन। चाहे शिक्षक संघ के चुनाव की बात हो या छात्र संघ चुनाव की बात, इस मामले में प्रशासन प्रायः उदासीन पाया जाता है, जब तक कि नैक के मूल्यांकन का समय न आ जाये।


यह विश्वविद्यालय किसी और चीज के लिये जाना जाये या न जाना जाये लेकिन एक बात तो पक्की है कि नियमविरूद्ध सुविधाओं को काटने के लिये जरूर जाना जायेगा और सुविधा देने के नाम पर शून्य प्रशासन की वजह से विश्वविद्यालय को तीसरे दर्जे की रैकिंग भी मिली है।

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