यह खबर पूरी दुनिया में फ़ैल गयी है कि सरकार की अतिमहत्वाकांक्षी उज्ज्वला योजना की ब्रांड एम्बेसडर गुड्डी देवी लकड़ी और उपले पर खाना पकाती हैं. गुड्डी देवी ने मोदी जी के साथ मंच भी साझा किया है और वह उज्ज्वल योजना के अनेक पोस्टरों पर विराजमान हैं. गैस सिलिंडर के दामों की वजह से गुड्डी देवी ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में उज्ज्वला योजना की लाभार्थी महिलायें वापस अपने पुराने तरीके पर आ चुकी हैं. मोदी जी इस योजना के लाभार्थियों की संख्या तो बताते हैं पर वास्तविक तौर पर कितने परिवारों ने अपने खाना पकाने का अंदाज बदला है, यह देश को नहीं पता. शुरू में लकड़ी और उपले के जलने पर प्रदूषण और इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव की भी खूब चर्चा की गयी थी, पर यह आज तक पता नहीं चल पाया है कि उज्ज्वला योजना के बाद से देश में कितना प्रदूषण कम हुआ है, या फिर महिलाओं के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ा है.

प्रतिष्ठित जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज के पिछले अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्त्रोत जैव ईंधन का उपयोग है. यह अनुसन्धान आईआईटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने किया है. जैव ईंधन में लकड़ी, उपले, कोयला और केरोसिन प्रमुख हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिक किर्क आर स्मिथ के अनुसार, भारत में घरों के अन्दर और घरों के बाहर भी वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण घरों की रसोई में इस्तेमाल किया जाने वाला जैविक ईंधन है. अनुमान है कि वर्ष 2016 में देश के आधे से अधिक घरों में ऐसा ही ईंधन इस्तेमाल किया जाता था. स्मिथ के अनुसार, पूरे देश में पीएम2.5 की औसत सांद्रता 55 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है, जबकि देश में इसका तय मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है. यदि देश में हरेक जगह जैविक ईंधन का इस्तेमाल बंद हो जाए, तब पीएम2.5 की औसत सांद्रता 38 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रह जायेगी, यानि तब प्रदूषण निर्धारित मानक के भीतर ही रहेगा.

यहाँ ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि हमारे देश में वायु प्रदूषण के मानक ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से चार गुना अधिक रखे गए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार पीएम2.5 की औसत सांद्रता 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए. दूसरी तरफ, लकड़ी और उपले जलाने पर हवा में 3000 से अधिक रसायन मिलते हैं, जिसे कोई नहीं मापता है, पर वे हमारे स्वास्थ्य को लगातार प्रभावित करते हैं. इतना तो स्पष्ट है कि हमारे देश की वायु प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था सबसे लचर है. देश का कोई भी संतान यह जानता ही नहीं है कि रसोई से उत्पन्न धुआं वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है. यहाँ तो वायु प्रदूषण नियंत्रण मोटर वाहनों पर शुरू होकर उसी पर ख़तम हो जाता है.

दरअसल वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1981 में जरूर बनाया गया था पर संबद्ध संस्थान आजतक इतना भी नहीं बता पाते कि हमारे देश में कितना प्रदूषण है, प्रदूषण कहाँ से आता है और इसका प्रभाव क्या हो रहा है. प्रदूषण के बारे में सभी जानकारी दिल्ली समेत कुछ बड़े शहरों तक सीमित है और इसी अधूरी जानकारी पर पूरे देश में वायु प्रदूषण नियंत्रित करने का दावा किया जाता है.