हाल के वर्षों में सांप्रदायिक उन्माद की घटनाएं बढ़ी हैं. उत्तर प्रदेश के कासगंज से लेकर असम के दिमा हसाओ तक पसरी सांप्रदायिक हिंसा की ताज़ा घटनाओं ने देश और समाज को जितनी बुरी तरह से मथ दिया है. उन्मादी तत्वों के प्रति सरकार और प्रशासन की शिथिलता और पीड़ितों, खासकर अल्पसंख्यकों के प्रति असंवेदनशीलता से हिले भारतीय प्रशासनिक सेवा के लगभग 70 सेवानिवृत अधिकारियों ने एक खुला पत्र लिखकर अपना रोष जाहिर किया है.

सेवानिवृत अधिकारियों ने लिखा है कि विभिन्न अखिल भारतीय सेवाओं के अलग – अलग बैचों से ताल्लुक रखने वाले हम सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी देश भर में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर लगातार चल रही हिंसा की खौफ़नाक घटनाओं और इन हमलों के प्रति कानून – व्यवस्था बनाये रखने वाली मशीनरी के ढीले रवैये के खिलाफ अपना गहरी चिंता जाहिर करना चाहते हैं.

बाबरी मस्जिद के विध्वंस की 25वीं सालगिरह पर राजस्थान के राजसमन्द में पश्चिम बंगाल के प्रवासी मजदूर मोहम्मद अफराजुल की हत्या ने हम सभी को झकझोर कर रख दिया है. इस बर्बरतापूर्ण कार्य की वीडियो रिकार्डिंग और हत्या की सफाई में दिए गए तर्कों का इंटरनेट पर व्यापक प्रसार बुद्ध, महावीर, अशोक, अकबर, सिख गुरुओं, हिन्दू गुरुओं और गांधी के विचारों से प्रेरणा लेने वाले समन्वित और बहुलतावादी समाज की जड़ों पर सीधा हमला है. उस कथित हत्यारे के समर्थन में उदयपुर में हुई हिंसा की घटनाएं इस बात का सूचक हैं कि देश के जनमानस में विभाजनकारी जहर कितनी गहराई से फैला है.

पिछले नौ महीनों में, हमने देखा है कि किस तरह से 1 अप्रैल को अलवर के बेहरोर में तथाकथित गौ-रक्षकों की भीड़ द्वारा पहलू खान पर हमला किया गया और कैसे इस निर्मम पिटाई के बाद 3 अप्रैल को उसकी मौत हुई. उसके द्वारा नामजद अपराधियों की गिरफ्तारी अभी तक नहीं हुई है. हालांकि सात अन्य लोग गिरफ्तार हुए और बाद में जमानत पर छूट गए.

दूसरी घटना 16 जून को स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर ज़फर खान की हत्या के रूप में हुई. प्रतापगढ़ में नगरपालिका अध्यक्ष और अन्य सफाई कर्मचारियों ने कथित रूप से उन्हें पीट – पीटकर उस वक़्त मार डाला जब वे प्रतापगढ़ को खुले में शौच से मुक्त करने की गरज से नगरपालिका के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा लोगों को शर्मसार और अपमानित करने की कारवाई का विरोध कर रहे थे. इस मामले में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, जबकि पुलिस का दावा है कि उनकी मौत ह्रदयगति रुक जाने से हुई.

जून 2017 में हत्या की तीसरी घटना तब हुई जब दिल्ली से ईद की खरीददारी कर ट्रेन से घर लौट रहे 16 वर्षीय जुनैद खान को सीट के विवाद में चाकू मरकर असावटी स्टेशन के निकट ट्रेन से फेंक दिया गया.

इस घटना के खिलाफ देश - विदेश में मचे शोर के बाद प्रधानमंत्री ने एक बयान में कहा कि “ गौ-भक्ति के नाम पर किसी की हत्या को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता”. उन्होंने इस बात को15 जुलाई 2017 को शुरू होने वाले संसद - सत्र से एक दिन पहले भाजपा के एक अखिल भारतीय सम्मेलन में दोहराया और कहा कि ऐसे मामलों में कार्रवाई की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होनी चाहिए. हालांकि, हत्या की घटनाएं बे-रोकटोक जारी हैं.

चौथी घटना तब हुई जब 27 अगस्त 2017 को पश्चिम बंगाल के धुपगुरी से मवेशी खरीदकर कूच बिहार के तूफानगंज ले जा रहे 19 वर्षीय दो युवकों – अनवर हुसैन और हफीज़ुल शेख – को मार डाला गया. रास्ता भटक गए इन युवकों से एक भीड़ ने 50 हजार रूपए की मांग की और मांग पूरी न होनेपर उन्हें पीट – पीटकर मार डाला. इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार तो किया गया है, लेकिन भीड़ में शामिल अन्य लोगों की पहचान अभी तक नहीं हो पायी है.

अलवर जिले के गोविन्दगढ़ तहसील में 10 नवम्बर 2017 को तथाकथित गौ – रक्षकों ने गाय ले जा रहे उमैर खान और उनके दोस्तों पर गोलियां चलायी. उमैर खान मारा गया और उसकी लाश को सबूत मिटाने की नियत से रेलवे की पटरियों पर ले जाया गया. हत्या के सात आरोपियों में से सिर्फ दो की गिरफ़्तारी हुई है. हालांकि, दो पीड़ितों – ताहिर और जावेद – को भी सलाखों के पीछे भेज दिया गया है.

25 दिसम्बर के इंडियन एक्सप्रेस में राजस्थान के भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा एक बयान छपा है जिसमे उन्होंने कहा है कि “ जो कोई भी गाय की तस्करी या उसके वध में शामिल होगा, वह मारा जायेगा”. इस किस्म की भाषा खुलेआम हिंसा को बढ़ावा देने वाली है और माहौल को धीरे - धीरे जहरीला बनाने वाली है. एक सभ्य समाज में ऐसी भाषा और हरकतों के लिए कोई जगह नहीं है और यह न्यायिक व्यवस्था पर एक तमाचा जैसा है.

हत्या के अलावा, हम उस प्रक्रिया में आई तेजी से भी चिंतित हैं जिसके तहत मुसलमानों को संपत्ति की बिक्री या उन्हें किराये पर मकान देने का संगठित प्रतिरोध कर उन्हें एक क्षेत्र विशेष में सिमटाया जा रहा है. हाल में मीडिया में आयी एक ख़बर के मुताबिक मेरठ के मालिवारा मोहल्ले में एक मुसलमान को उस मकान का कब्ज़ा लेने से रोका गया जिसके लिए उसने बाकायदा कीमत अदा की थी. मुसलमानों द्वारा रोजाना झेले जा रहे इस किस्म के अपमान से असंतोष का वातावरण पैदा होगा जो माहौल को और ज्यादा जहरीला बनायेगा. दक्षिणपंथी हिन्दू समूहों द्वारा “लव –जिहाद” के खिलाफ चलाये जाने वाले अभियान इस बात सूचक हैं कि कैसे नागरिकों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने के बुनियादी संवैधानिक अधिकार में हस्तक्षेप किया जा रहा है.

बीते दिसम्बर महीने हमने देखा कि कैसे ईसाईयों को क्रिसमस मनाने पर निशाना बनाया जा रहा है. विगत 15 दिसम्बर को सतना में पुलिस ने कैरोल गाते हुए समूहों को रोका. जब पादरियों का एक दल जानकारी लेने पहुंचा तो पुलिस ने कथित रूप से उन्हें भी हिरासत में ले लिया. उत्तर प्रदेश में, हिन्दू जागरण मंच ने अलीगढ़ के क्रिस्चियन स्कूलों को क्रिसमस मनाने के खिलाफ चेतावनी दी है. राजस्थान में, विश्व हिन्दू परिषद् के सदस्यों ने ईसाईयों के एक कार्यक्रम पर इस आधार पर धावा बोल दिया कि वहां जबरन धर्म परिवर्तन का प्रयास किया जा रहा था.

अब हम चाहते हैं कि माननीय प्रधानमंत्री और उनकी सरकार अविलंब इन मुद्दों पर अपनी एक स्पष्ट प्रतिक्रिया दें और यह मांग करते हैं कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ देश में इस किस्म की घृणा फैलाने की साजिश करने वाले लोगों पर तत्काल कठोर कार्रवाई करें .

इस किस्म की हाल की घटनाओं ने हमारे संवैधानिक मूल्यों पर आघात किया है और क़ानून के राज को कमजोर किया है. हमारे कानून में ऐसे तमाम प्रावधान हैं जिन्हें अगर पूरी ईमानदारी और इच्छाशक्ति के साथ लागू किया जाये तो पर्याप्त सुरक्षा मुहैया करायी जा सकती है. ऐसे में जबकि सांप्रदायिक वायरस समाज में काफी गहरे फ़ैल गया है, कानूनी सुरक्षा अपने – आप में पर्याप्त हल नहीं होगा. हम सभी को ऐसे माहौल के प्रति सजग और सतर्क रहना होगा जोकि शांति और भाईचारे के लिए खतरा है और विकास के लिए नुकसानदायक है. हम सभी, खासकर बहुसंख्यक समुदाय के लोगों को समाज और देश के संप्रदायीकरण का सार्वजानिक रूप से निंदा और विरोध करना होगा.