हाल ही में उत्तर प्रदेश के कासगंज में साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं| कासगंज में हुई सांप्रदायिक घटनाओं की शुरुआती रिपोर्टिंग में तथाकथित तिरंगा यात्रा पर पथराव और जबरन नारेबाजी की बात कही गयी | हालाँकि कासगंज पहुंचे पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओ को कुछ अलग ही कहानी मिली जिसे जानबूझकर प्रशासन और मीडिया के एक हिस्से ने कासगंज की घटनाओं से अलग रखा | सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में संकल्प फाउंडेशन की भूमिका की बात सामने आई है |

कासगंज में बड्डूनगर स्थित अब्दुल हमीद तिराहे पर 26 जनवरी को ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान हिंदूवादी संगठन ‘संकल्प’ द्वारा जबरन भगवा झंडों के साथ हथियारबंद रैली निकालने तथा उकसावे भरे नारों जैसे “हिंदुस्तान में रहना है है तो वंदेमातरम् कहना है “ और “हिंदी हिन्दू हिन्दुस्तान कटुए भागो पाकिस्तान’ लगाने के दौरान झड़प की बात सामने आई है, जिसके बाद पूर्वनियोजित तरीके से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया गया| यहाँ पर यह बता देना जरुरी है कि कासगंज में गोली लगने से जिस अभिषेक गुप्ता उर्फ़ चन्दन की मौत हो गई वह ‘संकल्प फाउंडेशन’ के प्रमुख संस्थापक सदस्यों में था और 26 जनवरी को तथाकथित तिरंगा यात्रा का नेतृत्व भी वही कर रहा था |

कासगंज में 26 जनवरी को तथाकथित तिरंगा यात्रा के दौरान संदिग्ध परिस्थितियों में अभिषेक गुप्ता उर्फ़ चन्दन नामक युवा की मौत हुई जिसके बाद संकल्प फाउंडेशन के अध्यक्ष अनुकल्प विजय चन्द्र चौहान द्वारा सोशल मीडिया और फेसबुक पर एक लम्बा वीडियो पोस्ट किया गया जिसमे चन्दन की मौत के गंभीर परिणाम मुस्लिम समाज को भुगतने की चेतावनी दी गई और उन्हें कासगंज छोड़ देने की खुली धमकी दी गई| इसके बाद अगले दो दिनों तक लगातार मुसलमानों की घरों, दुकानों, मस्जिदों पर हमला और आगजनी की घटनाएँ हुईं|

कासगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटना कोई अचानक से होने वाली हिंसा नहीं थी जैसा की शुरुआत में बताया गया बल्कि यह एक पूर्वनियोजित साज़िश का हिस्सा था | इस पूरे घटनाक्रम में कासगंज के एक स्थानीय हिंदूवादी संगठन की प्रमुख भूमिका की बात सामने आई है | कासगंज में लगभग 8 या 9 महीने पहले ही हिंदुत्व के प्रति गहरा आकर्षण रखने वाले युवाओं ने ‘संकल्प फाउंडेशन’ के नाम से एक संगठन की स्थापना की थी | संकल्प फाउंडेशन में लगभग 100 नौजवान शामिल हैं जिनकी उम्र 18-28 साल के दरम्यान है | इनमे से कुछ तो नौकरी पेशा है लेकिन ज्यादातर बेरोजगार युवा हैं | शुरू -2 में इस संगठन के सदस्यों ने रक्तदान, सफाई और कम्बल बांटने जैसे काम किया और इस तरह से कासगंज के हिन्दू बहुसंख्या वाली बाज़ार में इन्हें एक तरह से नैतिक स्वीकार्यता प्राप्त हो गई |

वास्तव में तथाकथित तिरंगा यात्रा के कुछ समय पहले से ही सोशल मीडिया पर संकल्प के सदस्यों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे कमेन्ट और अपमानजनक बातें लिखी जा रही थीं और कुछ मुसलमान लड़कों ने इसका विरोध भी किया था लेकिन बात ख़त्म नहीं हुई और फेसबुक पर शुरू हुए नफरत भरी एक ही पोस्ट में तकरीबन 1000 से अधिक बार कमेन्ट किये गए जिसकी शुरुआत मुसलमानों को पाकिस्तान जाने की सलाह देने से की गई थी और जाने के लिये किराये की पेशकश का तंज मारा गया था | इस पूरे घटनाक्रम की बात संकल्प के ही एक संगठन पदाधिकारी ने कही | हालाँकि उसने यह भी बताया कि उसने इनमे से कुछ लड़कों को समझाने का भी प्रयास किया था लेकिन हिंदुत्व के आकर्षण में फंसे लड़कों ने कोई बात नहीं सुनी | इस तकरार के बाद से ही संकल्प फाउंडेशन के सदस्यों की गुप्त बैठकें भी हुई थीं| इन्हीं आशंकाओं के चलते संकल्प फाउंडेशन के उपाध्यक्ष आयुष शर्मा उर्फ़ पंडित जी (आयुष शर्मा स्वयं को युवा नेता कहते हैं और उनके फेसबुक पेज को 8000 से अधिक लोग फॉलो करते हैं ) ने 20 जनवरी को गृहमंत्री, मुख्यमंत्री और यूपी पुलिस को ट्विटर के माध्यम से सचेत करने का प्रयास भी किया था | यह बात खुद आयुष शर्मा उर्फ़ पंडित जी ने स्वयं अपने फेसबुक पोस्ट पर कहीं हैं |



इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि संकल्प फाउंडेशन के सदस्यों को पूरीं जानकारी थी और इनमे से एक आयुष शर्मा ने इसकी सूचना भी दी थी और 25 जनवरी की रात भी आयुष शर्मा ने एसएसपी को फेसबुक पर मेसेज कर इसके बारे में चेतावनी दी थी फिर भी जानबूझकर इसे नजरंदाज किया गया और सांप्रदायिक तत्वों को हथियार इकठ्ठा करने और हिंसा करने की ढील दी गई | कासगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा में राजनीतिक कुचक्र की बात तत्कालीन एसएसपी सुनील सिंह द्वारा भी कही गई थी जिसके तत्काल बाद उन्हें वहां से हटा दिया गया है |

हाल फिलहाल में प्रदेश सरकार द्वारा लाउडस्पीकर पर रोक लगाने सम्बन्धी दिशा निर्देश दिए जाने के बाद मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर को लेकर संगठन के कुछ सदस्य खासे नाराज थे और उनका कहना था कि मुसलमान आदेश का पालन नहीं कर रहे है जबकि मंदिरों पर ज्यादा बंदिश है | इसकी वजह से कुछ लड़के ज्यादा ही उत्तेजित थे और सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर कर रहे थे | इसके साथ ही राजपूत गौरव से लैस युवा हिन्दू संगठनों द्वारा हाल फिलहाल में कासगंज में करनी सेना द्वारा पद्मावत फिल्म का विरोध के समर्थन में मार्च निकाला गया था | संकल्प फाउंडेशन के अनुकल्प विजय चन्द्र चौहान ने इसी राजपूत गौरव के अभिमान से लैस होकर “जय राजपूताना” का उद्घोष किया और फिल्म के बहाने शक्ति प्रदर्शन भी किया गया था |

इसके अलावा हिन्दू अभिमान से लैस संकल्प के सदस्यों ने कासगंज रेलवे स्टेशन के निकट स्थित कम चर्चित लेकिन नाथपंथ से जुड़े बाबा शेरनाथ मन्दिर का जीर्णोधार के उद्देश्य से वहां साप्ताहिक आरती का आयोजन शुरू किया और महंत रतननाथ की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी 21-24 जनवरी के बीच भव्य समारोह में की | संकल्प फाउंडेशन के सदस्य वहां प्रतिदिन घटती आस्था से भी चिंतित थे ऐसा उनके फेसबुक पोस्ट पर कहा गया है |





यहाँ यह बताना आवश्यक है कि मृतक चन्दन का इस मंदिर से लगाव संगठन की स्थापना के साथ ही शुरू हुआ है हालाँकि की मृतक चन्दन के घर से निकट ही एक शिवालय है और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार काफी प्राचीन है | ऐसे में महाआरती के लिए घर से दूर नाथपंथ के मंदिर का जीर्णोधार और प्राणप्रतिष्ठा राजनीतिक आकांक्षा से प्रेरित लगता है | यह बात आयुष के एक मित्र ने भी मानी हैं जो स्वयं भी संकल्प का सदस्य है | उसने बताया कि आजकल अधिकांश युवा योगी और मोदी जी को अपना राजनीतिक आदर्श मानते हैं और उनके जैसा नेता बनाना चाहते हैं|

इसके अलावा बिलराम गेट में ठंडी सड़क स्थित प्रसिद्ध चामुण्डा मंदिर विवाद एक अन्य पहलू है जिसके कारण एबीवीपी और अन्य हिंदूवादी संगठन मुसलमानों से नाराज थे | मंदिर परिसर के पास कुछ समय पहले ही गेट लगाने को लेकर दोनों सम्प्रदायों में विवाद हुआ था और गेट लगाने के विरोध में आसपास के मुस्लिम लोगों ने धरना भी दिया था क्योंकि उनका कहना था कि यह आम रास्ता है और इसके बंद हो जाने से बस्ती के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा | इस विवाद के कारण पहले भी स्थिति तनावपूर्ण थी जिसे जानबूझकर एबीवीपी, संकल्प फाउंडेशन और अन्य हिंदूवादी संगठनो ने लोगों को भड़काने में प्रयोग किया और 26 जनवरी को साजिशन सांप्रदायिक हिंसा की गई |

वास्तव में संकल्प फाउंडेशन की एक एनजीओ के रूप में शुरुआत और अपनी स्थापना के एक साल से भी कम समय में उग्र और हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिक हिंसा करने वाले संगठन में बदल जाना एक गंभीर चिंता का विषय और इसका विश्लेषण किये जाने की तत्काल आवश्यकता है कि आखिरकार युवाओं का एक संगठन इतने कम समय में ही इतनी बड़ी सांप्रदायिक घटना का सूत्रधार कैसे बन गया | मूलतः इस प्रश्न के दो ही जवाब हो सकते हैं – एक तो यह कि RSS और RSS समर्थित हिंदूवादी संगठनों ने विकास की राजनीति के आडम्बरों के कारण अपने संगठनों को एनजीओ की शक्ल में तब्दील किया है ताकि ऐसे संगठनो को आसानी से समाजसेवा के नाम पर नैतिक स्वीकार्यता मिल जाये और ये संगठन आसानी से अपने कार्य परदे के पीछे से अंजाम दे सकें | दूसरा यह हो सकता है कि युवाओं के नवीन संगठन का इस्तेमाल अप्रत्यक्ष रूप से RSS द्वारा किया गया और समाजसेवा करने वाले युवाओं के संगठन को राजनीतिक आकांक्षा के चलते कठपुतली बनाया गया और उन्हें मुसलमानों के विरुद्ध भड़काया गया | इनमे से वजह कोई भी हो दोनों ही परिस्थितियां गंभीर विश्लेषण की मांग करती हैं कि इसे कैसे रोका जाय और इसके प्रतिवाद कैसे किया जाये| युवाओं में इस तरह की अतिवादिता भारतीय लोकतंत्र के लिए घातक है और ऐसे में बेरोजगारी, राजनीतिक आकांक्षा, झूठे इतिहासज्ञान, गौरव और अभिमान से लैस युवाओं को किसी भी शत्रु के खिलाफ हिंसा करने के लिए उकसाना कोई मुश्किल काम नहीं है | कासगंज में संकल्प फाउंडेशन इस सांप्रदायिक सियासत का एक उदाहरण भर है कि कैसे एक एनजीओ से शुरुआत करने वाला संगठन जो गरीबों की मदद, सफाई अभियान और रक्तदान के शिविर लगाता था कैसे शेरनाथ मंदिर में घटती आस्था को लेकर चिंतित होने से आगे बढ़कर सांप्रदायिक हिंसा में रक्तपान करनेवाली सियासत का मोहरा बन गया और इसका पहला शिकार संगठन का ही सदस्य अभिषेक गुप्ता उर्फ़ चन्दन हुआ | इसलिए हमें चिंतित होने की आवश्यकता है कि इसका प्रतिवाद क्या होगा |