गोवा में खनन कंपनियों को सर्वोच्च न्यायालय से बड़ा झटका लगा है। अदालत ने हाल ही में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में इन कंपनियों के खनन पट्टों के नवीनीकरण को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गोवा की भाजपा सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सरकार द्वारा लौह अयस्क और मैंगनीज खनन के लिए कंपनियों के पट्टों का नवीनीकरण न केवल कानून, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश का भी उल्लंघन है। अदालत ने अपने इस विस्तृत आदेश में राज्य सरकार से स्पष्ट तौर पर कहा कि वह सभी खनन कंपनियों को राज्य में 16 मार्च तक खनन रोकने के लिए कहे और खनन लाइसेंस देने के लिए नई नीलामी प्रक्रिया शुरू करे।

सरकार, राज्य में आइंदा नई नीति के तहत खदानों का आवंटन करे और इसके लिए नई खदानों को फिर से पर्यावरणीय मंजूरी लेनी होगी। अदालत यहीं नहीं रुक गई, बल्कि उसने सरकार को आदेश दिया कि वह राज्य में अवैध खनन की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाए और कानून का उल्लंघन कर किए गए खनन के लिए कंपनियों से राजस्व की वसूली करे। पर्यावरण के तौर पर बेहद संवेदनशील इस मामले में अदालत का यह आदेश काबिले तारीफ है। अदालत के इस आदेश से राज्य में जहां लौह और मैंगनीज अयस्क खदानों के आवंटन में और भी ज्यादा पारदर्शिता आएगी, तो वहीं सरकार को संसाधनों का पूरा मूल्य भी मिलेगा।

सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले अपने एक दीगर आदेश में साल 2012 में गोवा के अंदर लौह अयस्क के खनन और परिवहन पर पूर्ण पाबंदी लगा दी थी। इस ऐतिहासिक फैसले में अदालत ने इंटरजेनरेशनल इक्विटी व सतत विकास की बात कहने के साथ-साथ खनन की सीमा तय करने और ‘गोवा आयरन ऑर परमानेंट फंड’ बनाने का भी महत्वपूर्ण निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने यह सारे कदम, जस्टिस एमबी शाह आयोग की रिपोर्ट के आधार पर उठाए थे। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य में दर्जनों खनन कंपनियां लाखों टन लौह अयस्क का अवैध खनन कर रही हैं। रिपोर्ट में कई सनसनीखेज खुलासे करते हुए आयोग ने कहा था कि गोवा में साल 2006 से लेकर 2011 के दरमियान 35,000 करोड़ रुपये के खनिजों का अवैध खनन किया गया। रिपोर्ट में आयोग ने कई तल्ख टिप्पणियां भी की थीं।

मसलन ‘‘इस अवधि के दौरान सरकारी मशीनरी एक तरह से धाराशायी हो गई थी। ऐसा लगता है कि सरकारी मशीनरी खनन माफिया, राजनेताओं, ताकतवर लोगों तथा कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के सामने असहाय हो गई थी।’’ इस पूरे मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश करते हुए आयोग ने उस वक्त कहा था, ‘‘चूंकि इसमें ताकतवर लोग, राज्य एवं बाहर के बड़े व्यापारी, राजनीतिक इकाई, उच्च स्तर के अधिकारी संलिप्त हैं, लिहाजा राज्य पुलिस के लिए तथ्यों और वास्तविकताओं का पता लगाना मुमकिन नहीं होगा।’’ सीबीआई जांच के अलावा आयोग ने सरकार को अपनी ओर से कई अहम सुझाव भी दिए थे। मसलन ‘‘सरकार जांच के दायरे में आए खनन पट्टे निरस्त करे, नुकसान हुए राजस्व की वसूली और खनन कंपनियों के साथ साठगांठ करने वाले अधिकारियों को दंडित करे।’’ बावजूद इसके गोवा की मनोहर पर्रीकर सरकार ने दोषी लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं की और पट्टे के लिए नीलामी को अनिवार्य करने के केंद्रीय कानून के लागू होने से ठीक पहले जल्दबाजी में 88 खदानों के पट्टों का नवीनीकरण उन्हीं कंपनियों के नाम साल 2014-15 में कर दिया गया, जिन पर शाह आयोग ने अवैध खनन का आरोप लगाया था।

शीर्ष अदालत में एनजीओ गोवा फाउंडेशन ने साल 2015 में एक जनहित याचिका दायर की थी। अपनी इस याचिका में एनजीओ ने इल्जाम लगाया था कि राज्य की प्रशासनिक मशीनरी ने माइनिंग लॉबी से सांठगांठ कर ऐसी लीज रिन्यू कीं, जिन्हें एक्सपायर्ड घोषित कर दिया गया था। एनजीओ ने दावा किया कि इन लीज रिन्यूअल्स से राज्य सरकार को स्टांप ड्यूटी के रूप में महज 15 फीसदी रॉयल्टी मिलेगी। जबकि करीब 79,836 करोड़ रुपये का नुकसान सरकारी खजाने को होगा। एनजीओ की ओर से अदालत में अपनी दलील पेश करते हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट की साल 2014 की एक रूलिंग का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ये लीज 50 वर्षों से ऑपरेशनल हैं और इन्हें साल 2007 में खत्म माना जाएगा। अदालत ने अपने आदेश में उस वक्त यह भी कहा था कि इन लीज का रिन्यूअल असाधारण स्थितियों में ही किया जा सकता है और इसकी वजहें लिखित तौर पर बतानी होंगी। लेकिन राज्य सरकार ने रूलिंग को दरकिनार करते हुए लीज फिर से बढ़ा दी और किसी भी मामले पर विचार नहीं किया।

याचिकाकर्ता के वकील ने साल 2015 में राज्य सरकार की ओर से जारी माइनिंग ऑर्डिनेंस के तहत बनाए गए ऑक्शन रूल और 2जी केस में प्रेसिडेंशियल रेफरेंस जजमेंट का हवाला देकर दावा किया कि जिन प्राकृतिक संसाधनों की तंगी हो, उन्हें किसी न किसी तरह की कॉम्पिटीटिव बिडिंग के बिना प्राइवेट कंपनियों को नहीं दिया जा सकता है। वहीं इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए गोवा सरकार का कहना था कि लीज आवंटन में सभी निश्चित प्रक्रियाओं का पालन किया गया है। बहरहाल दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने लौह अयस्क की माइनिंग से जुड़ी इन सारी 88 लीजों को रद्द कर दिया। साल 2007 से 20 साल के लिए नवीनीकृत किए गए पट्टों को रद्द करते हुए न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने कहा कि गोवा सरकार कानून के अनुसार नए सिरे से आवेदनों की जांच करेगी।

कहने को देश में खनिजों के खनन को व्यवस्थित, नियंत्रित और अवैध खनन को रोकने के लिए एक ‘नेशनल मिनरल पॉलिसी, 2008’ है। इसके अलावा खदान का पट्टा लेने से पहले कंपनी या किसी व्यक्ति को पर्यावरण मंत्रालय और वन मंत्रालय से खनन की मंजूरी भी लेना होती है। बावजूद इसके पूरे देश में अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है। अवैध खनन के मामले में खास तौर पर बीजेपी शासित सरकारें अव्वल नंबर पर हैं। केंद्रीय खनन मंत्रालय ने लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए हाल ही में खुद यह बात मानी है कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश अवैध खनन के मामले में क्रमशः पहले एवं दूसरे नंबर पर हंै। आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में अवैध उत्खनन के सबसे ज्यादा 31173 मामले महाराष्ट्र से आए, तो वहीं मध्य प्रदेश से 13880 मामले सामने आए।

खनन कारोबारी, नौकरशाही और भ्रष्ट सियासी लीडरों का नापाक गठबंधन सारे कायदे-कानूनों को धता बताकर सरकार की नाक के नीचे अवैध खनन करता रहता है और उन पर कहीं कोई कार्यवाही नहीं होती। यदि कहीं कोई कार्यवाही होती भी है, तो सिर्फ देखने-दिखाने को। बाद में ये अवैध गतिविधियां फिर ज्यों के त्यों चलने लगती हैं। इन्हें कोई नहीं रोकता। गोवा की ही यदि बात करें, तो प्राकृतिक संसाधनों और खनिज से परिपूर्ण इस राज्य में अवैध खनन बरसों से चल रहा है। राज्य में अधिकतर खनन कार्य नियमों, नियमन तथा पर्यावरण नियमों की अनदेखी कर होते रहे हैं। नियमों के उल्लंघन के अलावा यह कंपनियां पट्टे पर दिए गए क्षेत्र से आगे बढ़कर खनन कार्य भी करती हैं। वह तो जब सरकार ने देश में लौह अयस्क और मैगनीज अयस्क के अवैध खनन और निर्यात की जांच के लिए न्यायमूर्ति एमबी शाह आयोग का गठन किया, तब उसकी रिपोर्ट से मालूम चला कि टाटा स्टील, सेल, वेदांता, सालगावकर ग्रुप और एस्सल माइनिंग के अलावा उषा मार्टिन और रूंगटा माइन्स जैसी राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कंपनियां झारखंड, गोवा और ओडिशा जैसे प्राकृतिक और खनिज संसाधनों से परिपूर्ण राज्यों में नियमों का उल्लंघन कर बड़े पैमाने पर अवैध खनन में लगी हुई हैं।

अदालत का हालिया फैसला, निश्चित तौर पर गोवा में अवैध खनन को रोकने के लिए मील का पत्थर साबित होगा। लेकिन अवैध खनन रोकने के लिए सिर्फ यही एक कदम काफी नहीं है। इस मामले में अदालत ने तो अपना काम कर दिखाया है, अब केन्द्र और राज्य सरकार को भी कुछ प्रभावशाली कदम उठाने चाहिए। जस्टिस शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश की थी कि गोवा के अवैध खनन घोटाले की सही तरीके से तहकीकात करने के लिए एक सीबीआई जांच होनी चाहिए। बावजूद इसके भ्रष्टाचार पर जीरो टाॅलरेंस की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली मोदी सरकार ने इस दिशा में अभी तलक कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है। सरकार इस मामले में पूरी तरह से खामोश हैं। दोषी कंपनियों, सरकारी अफसरों और अवैध खनन में शामिल राजनेताओं पर दंडात्मक कारवाई करने से मोदी सरकार को कौन रोक रहा है ?, इसका संतोषजनक जवाब अभी तलक नहीं मिला है। जबकि अपनी जांच में शाह आयोग ने इनकी ओर साफ-साफ इशारा किया है। यदि मोदी सरकार, देश में वाकई अवैध खनन रोकने के लिए संजीदा है, तो उसे गोवा मामले के साथ-साथ दीगर राज्यों के अवैध खनन मामलों की भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच करानी चाहिए। जांच में जो भी दोषी पाया जाए, उस पर सख्त कार्यवाही हो।