अपने नेता चन्द्रशेखर ‘आजाद’ की जेल से रिहाई की मांग को लेकर भीम आर्मी के हजारों कार्यकर्ताओं ने सहारनपुर में एक जोरदार रैली की. कार्यकर्ताओं की इस मांग ने चन्द्रशेखर द्वारा हाल में उनसे मिलने गये युवा साथियों को दिए गए उस बयान के बाद जोर पकड़ा है जिसमें उन्होंने कहा था कि “भाजपा सरकार मुझे मार देना चाहती है”.

8 जून 2017 से जेल में बंद, चन्द्रशेखर को पीटा और घायल किया गया है. योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा लगाये गये तमाम गंभीर आरोपों में इलाहबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल जाने के बावजूद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाकर चन्द्रशेखर को जेल बंद रखा जा रहा है.

उत्तर प्रदेश के कोने – कोने से जुटे भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने सहारनपुर की रैली में तीखे भाषणों और जोशीले नारों के माध्यम से अपने नेता की तत्काल रिहाई की मांग की.

इस बीच, मुंबई के नागरिकों और सिविल सोसाइटी संगठनों के एक समूह ने बयान जारी कर चन्द्रशेखर की तत्काल रिहाई मांग की है. अपने बयान में उक्त समूह ने कहा, “जिस तरह से लगातार कैद और उत्पीड़न के माध्यम से चन्द्रशेखर और उनके संगठन को परेशान किया जा रहा है, वह न्यायिक प्रक्रिया के मखौल का शर्मनाक उदहारण है. भीम आर्मी के वैध कार्यों का हिंसक दमन हमारे लोकतंत्र की सेहत के लिए खतरा है और आर्थिक एवं सामाजिक शोषण के खिलाफ लड़ने वाले तमाम लोगों को इसके विरुद्ध एकजुट होना चाहिए.”

भीम आर्मी की शुरुआत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अमानवीय परिस्थितियों में जीवन बसर करने वाले दलितों के शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले एक संगठन के तौर पर हुई. इस संगठन ने दलित महिलाओं के सशक्तिकरण और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए कार्य किया. इस संगठन की गतिविधियों में एक सकारात्मक आयाम उस समय जुड़ा जब चन्द्रशेखर ने अपने साथियों के साथ मिलकर सहारनपुर को एक बड़े सांप्रदायिक दंगे से बचाते हुए दक्षिणपंथी समूहों और उनके नेताओं की उन्माद भड़काने की साजिश को बेनक़ाब किया. जवाब में राज्य सरकार ने भीम आर्मी पर प्रहार करते हुए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के लिए चुनौती साबित होने वाले चन्द्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया. राज्य सरकार द्वारा रासुका का इस्तेमाल से यह साफ़ है कि वह इस युवा दलित नेता को कैद में रखने के लिए किसी भी हद तक जाने को आमादा है और जैसाकि चन्द्रशेखर ने आशंका जतायी है, उनकी जान को खतरा है.

सहारनपुर की रैली में यह मुद्दा पूरी तरह छाया रहा और वक्ताओं ने चन्द्रशेखर की रिहाई के लिए एक देशव्यापी आंदोलन की छेड़ने की चेतावनी दी.

दलितों की इस बेचैनी की गूंज गुजरात में भी सुनाई दी, जहां एक दलित कार्यकर्ता के आत्मदाह का मुद्दा गरमाया हुआ है. दलित कार्यकर्ता भानुभाई वनकर की शुक्रवार को हुई मौत के विरोध में गुजरात के विभिन्न भागों में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है और जगह – जगह प्रदर्शन हो रहे हैं.

इस मौत के विरोध में एक बड़ी जनसभा को हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर के साथ संबोधित करने के बाद विधायक जिग्नेश मेवाणी को पुलिस द्वारा रोका गया. गुस्साई भीड़ ने भाजपा विधायकों को वनकर के परिवार से मिलने से रोक दिया.

अहमदाबाद – गांधीनगर हाईवे पर एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व हुए मेवाणी ने कहा, “ मुख्यमंत्री (विजय रुपानी) को खुद को नर्मदा नदी में डुबो लेना चाहिए. गुजरात रुपानी के बाप का नहीं है.” शोकाकुल परिवार से मिलने के बाद हार्दिक पटेल और कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर ने वनकर की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की.

एक दलित परिवार को आवंटित भूमि पर कब्ज़ा दिलाने की मांग को लेकर भानुभाई वनकर ने पाटन के जिला कलेक्टर के कार्यालय के बाहर खुद को आग लगा लिया था. चुनाव के दौरान मेवाणी की मुख्य मांग थी - दलितों को जमीन. गुजरात में यह एक अहम मुद्दा है. आवंटित किये जाने के बावजूद वहां दलितों को अबतक भूमि का वास्तविक कब्ज़ा नहीं मिल पाया है. राज्य सरकार द्वारा वनकर परिवार के सभी मांगों को मान लिए जाने की बात कही जा रही है, लेकिन किसी को इस पर यकीन नहीं हो रहा है.

60 वर्षीय वनकर एक पीड़ित दलित परिवार को लेकर पाटन के जिला कलेक्टर के कार्यालय पहुंचे थे. लेकिन अधिकारियों से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने से क्षुब्ध होकर उन्होंने अपने शरीर पर केरोसिन तेल उड़ेल लिया और खुद को आग के हवाले कर दिया. सरकार और अधिकारियों के असंवेदनशील रवैये से नाराज वनकर के परिवार के लोगों ने उनका पार्थिव शरीर लेने से इंकार कर दिया है.

इस मामले में सख्त तेवर अपनाने वाले मेवाणी को पुलिस द्वारा रोका गया, उनकी कार की चाभी को छीनकर तोड़ दिया गया और उन्हें पुलिस की एक गाड़ी में बिठाकर ले जाया गया. राज्य सरकार के इशारे पर काम कर रही पुलिस के लिए उनके जनप्रतिनिधि होने का कोई मतलब नहीं था.

मेवाणी ने साफ़ कहा है कि राज्य सरकार को एक अधिसूचना जारी कर प्रदेश के सभी 33 जिलों में भूमिहीन दलितों को भूमि आवंटित कर तत्काल कब्ज़ा दिलाने की कार्रवाई करनी चाहिए. ऐसा होने तक उनकी लड़ाई जारी रहेगी.