चूंकि ‘किसी ने बंदर को इंसान बनते देखा नहीं है’, इसलिए सभ्यता के विकास के डार्विन के सिद्धांत पर सवालिया निशान लगाइये और इंडियन नेशनल साइंस अकादमी और इंडियन अकादमी ऑफ़ साइंसेज द्वारा आयोजित प्रतिष्ठित ‘विज्ञान दिवस (साइंस डे)’ समारोह का मुख्य अथिति बनने का सम्मान पाइए.

केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने यह टिप्पणी देकर कि“डार्विन का सिद्धांत(मानव के विकास) वैज्ञानिक रूप से गलत है. स्कूल और कालेजों के पाठ्यक्रमों को बदलने की जरुरत है. किसी ने एक बंदर को इंसान बनते नहीं देखा है. चूंकि मनुष्य पृथ्वी पर देखा गया, इसलिए वह हमेशा से मनुष्य ही था” वैज्ञानिक जगत को चौंका दिया था. लेकिन ऐसा मालूम होता है किउनकी यह टिप्पणी इस प्रतिष्ठित समारोह के मुख्य अथिति बनने की एक आवश्यक शर्त के तौर पर थी.

जब श्री सिंह के उक्त बयान ने जब तूल पकड़ा, तो केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि श्री सिंह को इस किस्म के बयान न देने की हिदायत दी गयी है. हालांकि, आरएसएस / भाजपा के नेता राम माधव ने खुलकर श्री सिंह का समर्थन किया और यह आईने की तरह साफ़ है कि उनका पक्ष हावी है.

अपनी टिप्पणी पर अड़े रहते हुए श्री सिंह ने कहा, “डार्विन के सिद्धांत को सारी दुनिया में चुनौती दी जा रही है. डार्विनवाद एक मिथक है. मैं बिना किसी आधार के कोई बयान नहीं दे सकता...मैं विज्ञान का आदमी हूं, मैं कला पृष्ठभूमि से नहीं हूं...मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से रसायनशास्त्र में पीएचडी की है.”

इस बीच, कम – से – कम 1800 वैज्ञानिकों ने श्री सिंह के दावों को चुनौती देते हुए लिखा कि “यह कहना तथ्यात्मक रूप से गलत है कि डार्विन के विकास के सिद्धांत को वैज्ञानिक समुदाय द्वारा ख़ारिज किया जा रहा है. बल्कि इसके उलट, हर नई खोज डार्विन की अवधारणा को पुष्ट करती है.”

श्री सिंह को सत्ता प्रतिष्ठान का खुला समर्थन हासिल होने की बात इस तथ्य से स्पष्ट है कि उनकी टिप्पणी के फ़ौरन बाद पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च ने अपने प्रश्न- पत्र में इस बारे में दो अंक का एक सवाल शामिल किया. सवाल में इस अजीबोगरीब विचार को विश्वसनीयता प्रदान करते हुए पूछा गया कि “ भारत के मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री ने हाल में दावा किया कि मानव विकास का डार्विन का सिद्धांत इसलिए गलत है कि ‘हमारे पूर्वजों समेत किसी ने भी लिखित या मौखिक रूप से यह नहीं कहा है कि उन्होंने एक बंदर को इंसान बनते देखा है’.इस तर्क में क्या गड़बड़ी है? नोट : सवाल में यह नहीं पूछा जा रहा है कि जीव वैज्ञानिक विकास के सिद्धांत को सही क्यों मानते हैं. बल्कि यह पूछा जा रहा है कि विकास के डार्विन के सिद्धांत को ख़ारिज करने के संदर्भ में उपरोक्त तर्क क्यों सही नहीं हो सकता.

सोशल मीडिया में श्री सिंह की टिप्पणी का उपहास किया गया और उसकी जमकर आलोचना की गयी. प्रसिद्ध वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र में कहा गया कि “जब देश का मानव संसाधन विकास मंत्री जब ऐसा बयान दे, तो इससे तार्किक शिक्षा और आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के जरिए वैज्ञानिक व तार्किक दृष्टिकोण के प्रसार में वैज्ञानिक समुदाय के प्रयासों को धक्का पहुंचता है. इससे वैश्विक स्तर पर देश की छवि को भी ठेंस पहुंचती है और भारतीय अनुसंधानकर्ताओं के प्रामाणिक अनुसंधानों पर से अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास कम होता है.”

हालांकि, सरकार और सत्ता प्रतिष्ठान की नजर में इन सबका कोई औचित्य नहीं है. ‘विज्ञान दिवस (साइंस डे)’ के अवसर पर प्रसिद्ध वैज्ञानिकों को एक मंच प्रदान करने और डॉ रजा रमन्ना की स्मृति में मौलिक व्याख्यान आयोजित करने वाला समारोह उस सत्यपाल सिंह का आदर – सत्कार कर रहा है जो डार्विन के सिद्धांत पर प्रश्नचिन्ह लगाता है. अजब है कि ऐसा व्यक्ति मुंबई पुलिस आयुक्त की जिम्मेदारी निभा चुका है.