महाराष्ट्र में भाजपा विरोधी गठबंधन बनाना आसान नहीं दिख रहा है. बावजूद इसके इस गठबंधन के लिए समान विचार वाली पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश हो रही है. इस बीच महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने मोदी मुक्त भारत का नारा देकर एक तरह से भाजपा विरोधी मोर्चा में शामिल होने का संकेत दिया है. लेकिन कांग्रेस की ओर से मनसे को ग्रहण लगाने वाला नक्षत्र के रूप में देखा जा रहा है. यह दलील दी जा रही है कि राज ठाकरे की जो विचारधारा है और उनकी पार्टी की अब तक जो छवि बनी हुई है उससे भाजपा विरोधी गठबंधन को नुकसान ही होगा.

इसलिए महाराष्ट्र में अगर भाजपा से सत्ता छीननी है तो ऐसी पार्टी को गठबंधन से जोड़ना होगा जो भूमिपुत्रों के साथ समाज के हर वर्ग की भलाई के लिए काम करे. मनसे तो उत्तरभारतीय और गुजराती समाज के लोगों के खिलाफ अब भी सक्रिय है. दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि मोदी के राजनीतिक गुरू शरद पवार से घंटों गुफ्तगू करने के बाद राज ठाकरे ने भाजपा विरोधी खेमे में सेंध लगाने के लिए अपना कदम आगे बढ़ाया है. लेकिन उत्तरभारतीय और गुजराती समाज की नाराजगी भाजपा विरोधी मोर्चा को सफलता नहीं दिला पाएगी.

हालिया उपचुनावों के नतीजों ने कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों में नई ऊर्जा का संचार किया है जिसके सहारे राष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी विरोधी मोर्चा तैयार करने के लिए मेल-मिलाप की बात हो रही है. इसके लिए सबसे पहले सोनिया गांधी ने पहल की और पवार सहित अन्य विपक्षी नेता गठबंधन के लिए सहभागिता दिखा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा का मिलन राजनीति की नई कहानी कह रहा है जिससे भाजपा बौखला गई है. इसके साथ ही महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी एक बार फिर से साथ आने को बेचैन हैं और इसके लिए इनके नेताओं ने सकारात्मक बातचीत भी की है. यह माना जा रहा है कि 2019 के चुनाव में दोनों पार्टियां संयुक्त ताकत के साथ भाजपा को जवाब देने के लिए मैदान में रहेगी.

लेकिन इधर राज ठाकरे ने पवार का इंटरव्यू लेकर और उनसे बंद कमरे में बात करके अपनी बदली हुई राजनीतिक रणनीति के साथ मोदी मुक्त भारत का नारा देकर राज्य की राजनीति में नई सरगर्मी ला दी है. राज ठाकरे मराठी और प्रांतवाद के कट्टर समर्थन हैं और मोदी मुक्त भारत के नारे के साथ ही मनसे के कार्यकर्ताओं ने गुजरातियों के गुजराती साइनबोर्ड तोड़ कर अपना विरोध जताया है. यह कांग्रेस को भी नागवार गुजरा है और उसे डर सता रहा है कि अगर मनसे को भाजपा विरोधी खेमे में शामिल कर लिया गया तो महाराष्ट्र जीतने का सपना कभी पूरा नहीं होगा. इसलिए मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष संजय निरूपम ने सबसे पहले मनसे के विरोध में आवाज बुलंद की है. यह माना जा रहा है कि संजय के इस तरह के विरोध का कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी समर्थन करेंगे. क्योंकि, वे भी राज ठाकरे के विचारों और कार्यों का पहले से ही विरोध करते आ रहे हैं. महाराष्ट्र के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे ने भी कहा है कि राज ठाकरे अपनी विचारधारा स्पष्ट करें तभी उनके बारे में सोचा जाएगा.

इधर यह भी चर्चा है कि राज ठाकरे का मोदी विरोधी नारा सोची समझी एक रणनीति है. मोदी से उनके रिश्ते अच्छे हैं और उन्होंने गुजरात जाकर न सिर्फ मोदी का गुणगान किया था बल्कि उनके कामों की भी तारीफ की थी. दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि मोदी विरोधी मोर्चे को शिवसेना का समर्थन न मिले, इस वजह से भी राज ठाकरे ने अपना रूझान दिखाया है. वैसे, शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ऐलान कर चुके हैं कि 2019 के चुनाव उनकी पार्टी अपने दम पर लड़ेगी. 2014 के चुनाव में भी उद्धव ने शिवसैनिकों के साथ मिलकर अपनी ताकत दिखाई थी जिसके सहारे भाजपा महाराष्ट्र में सत्ता सुख भोग रही है. भाजपा को अपनी ताकत का एहसास है इसलिए शिवसेना को साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए कहा जा रहा है. इसके लिए फिलहाल शिवसेना तैयार नहीं है. उसे लगता है कि उसका जनाधार और मजबूत हुआ है और राज्य की जनता उसके साथ है जिस वजह से वह पूरी सत्ता पाने का सपना तोड़ना नहीं चाहती है. शिवसेना यह भी मानती है कि भूमिपुत्रों और मराठियों ने मनसे को नकार दिया है जिससे महाराष्ट्र में मनसे की राजनीतिक ताकत कमजोर है और मनसे की वजह से मराठी वोट बंटने का भी डर नहीं है. यही वजह है कि भाजपा को शिवसेना से अलग रहकर चुनाव लड़ना घाटे का सौदा साबित हो सकता है. हिन्दूवादी विचारधारा की वजह से महाराष्ट्र में आरएसएस का एक तबका भी शिवसेना को सहयोग करता है. बावजूद इसके मनसे की जितनी भी ताकत है उससे भाजपा खेल सकती है और चुनावी राजनीति में उलटफेर हो सकता है.