यह शायद पहला मौका था जब अभी कुछ दिनों पहले कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों द्वारा घेरेबंदी एवं तलाशी अभियान, जिसे अंग्रेजी में "कार्डन एंड सर्च ऑपरेशन" या "कासो" कहा जाता है, के दौरान की गयी "ज्यादतियों" के खिलाफ कश्मीरी पंडितों एवं मुसलमानों ने संयुक्त रूप से प्रदर्शन किया.

पिछले गुरुवार को कश्मीरी पंडितों एवं मुसलमानों का एक समूह श्रीनगर के प्रताप पार्क पर इकठ्ठा हुआ. प्रदर्शनकारियों के हाथों ने तख्तियां थीं जिनपर लिखा था - "कासो का मतलब उत्पीड़न है", "पंडितों, मुसलमानों एवं सिखों का उत्पीड़न, हम सब एक हैं".

प्रदर्शनकारियों ने तलाशी अभियान के दौरान सेना के अधिकारियों व जवानों को "खुली छूट" देने और आम नागरिकों को निशाना बनाने तथा सार्वजानिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की अनुमति देने के लिए सरकार की जमकर आलोचना की. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वे कश्मीर की जनता के लगातार उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने के लिए एक साथ आये हैं.

अमित वान्चो नाम के एक कश्मीरी पंडित ने कहा, " हम एक हैं और सरकार को यह सन्देश देना चाहते हैं कि वह कश्मीर घाटी में घेरेबंदी एवं तलाशी अभियान के दौरान लोगों को सताना और संपत्ति को नुक्सान पहुंचाना बंद करे."

श्री वान्चो ने द सिटीजन को बताया, "1990 के दशक से बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक, दोनों, समुदाय भयानक दुर्दशा से गुजरे हैं. हमने दशकों से बेपनाह तकलीफ़ें झेली हैं. हम सामूहिक रूप से अपना दर्द बांटने के लिए इकठ्ठा हुए हैं और उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करेंगे."

सुशील पंजू नाम के एक अन्य प्रदर्शनकारी ने कहा, "जब भी कश्मीर में कोई नौजवान मारा जाता है, उस रात मुझे नींद नहीं आती है. मुझे अपने भाइयों का दर्द महसूस होता है."

उन्होंने बताया कि वे अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे. उनका कहना था, "सबसे पहले हम कश्मीरी हैं. हम एकजुट हैं और सरकार से यह कहना चाहते हैं कि वो दोषियों के खिलाफ अविलम्ब कार्रवाई करे."

वर्तमान हालातों पर टिप्पणी करते हुए श्री अमित ने कहा, "मेरा मानना है कि 1990 के दशक में अगर दोनों समुदायों का शीर्ष नेतृत्व एकजुट रहा होता तो आज तस्वीर कुछ अलग ही होती."

दक्षिण कश्मीर के सामाजिक कार्यकर्ता इनाम उन नबी ने कहा, ”आज कासो के नाम पर लोगो को सताना और संपत्तियों को क्षतिग्रस्त कर देना आम बात हो गयी है. हम सभी - मुसलमान, पंडित या सिख - कश्मीर मसले का स्थायी समाधान चाहते हैं. लेकिन जबतक बड़े मुद्दे नहीं सुलझते, हमें शांति से जीने का अधिकार है."

उन्होंने आगे जोड़ा. " हम संबद्ध अधिकारियों से अपील करते हैं कि वो कासो के नाम पर लोगों को सताना और संपत्तियों को बर्बाद करना बंद करें और हमें शांति से जीने दें."

"यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि हमारे पंडित भाई शांति के साथ रह सकें. वे 1990 के दशक की भांति स्वयं को यहां असुरक्षित महसूस न करें. चूंकि सैनिकों द्वारा उनपर भी हमला किया गया है, लिहाजा हम यहां अधिकारियों को यह बताने के लिए इकठ्ठा हुए हैं कि हम उनके साथ हैं और हम ऐसा कुछ भी नहीं होने देंगे जिससे हमारे अल्पसंख्यक भाइयों को चोट पहुंचे.

बता दें कि स्थानीय लोगों द्वारा सुरक्षा बलों पर तलाशी अभियान के दौरान ज्यादती करने का आरोप लगातार लगाया जाता रहा है. उनका आरोप है कि तलाशी अभियान के दौरान सुरक्षा बल उनके घरों को तहस - नहस कर देते हैं, मनमाने तरीके से लोगों की पिटाई करते हैं और उनके वाहनों को नुकसान पहुंचाते हैं.

एक खबर के मुताबिक, पिछले 25 - 26 मार्च की रात में सीआरपीएफ के एक शिविर के निकट गोलियों की आवाज़ के बाद स्थानीय लोगों का आरोप है कि सरक्षा बल के जवानों ने उनके साथ मारपीट की. उनका यह कहना है कि जवानों ने तहाब इलाके में पंडित परिवार के लोगों को भी पीटा और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.

अगले दिन स्थानीय लोगों ने जवानों द्वारा कथित रूप से की गयी मारपीट एवं तोड़फोड़ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.

लोगों के विरोध प्रदर्शन के बाद पुलवामा के उपायुक्त जी एम डार द्वारा प्रभावित इलाके का दौरा करने एवं पुलिस को संबंधित मामले में एफआईआर दर्ज कर 10 दिनों के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिए जाने की खबर है.

पुलवामा पुलिस ने आरपीसी की धारा 451, 427 के तहत एफआईआर संख्या 90 /2018 के तहत मामला दर्ज किया है.

कई प्रयासों के बावजूद सीआरपीएफ के आईजी से संपर्क नहीं हो सका और इस घटना के बारे में उनकी टिप्पणी नहीं ली जा सकी.