ग्वालियर में अपने अधिकारों के लिए दलित समाज के लोग जब विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, उसी दरम्यान दीवार की ओट में खड़े होकर पिस्तौल तानकर गोलियां चलाते हुए एक व्यक्ति को वीडियो में कैद किया गया. यह स्पष्ट नहीं है कि वो किसे निशाना बना रहा था. वीडियो में धारीदार कमीज पहने और बंदूक ताने एक दूसरा व्यक्ति भी दिखा. इन दोनों तस्वीरों को घेरकर टेलीविज़न समाचार चैनलों द्वारा इस सवाल के साथ खूब उछाला गया कि आखिर ये कौन लोग हैं ?

दलित संगठनों द्वारा समर्थित भारत बंद के दौरान कुल नौ लोग मारे गये, जिनमें से सात दलित थे. लेकिन किसी को यह नहीं मालूम कि इस हिंसा, जिसमें सरकारी संपत्ति को जलाया गया और लोगों का गुस्सा सड़कों पर नजर आया, को किसने भड़काया. बाबा साहब अम्बेडकर के पोते, प्रकाश अम्बेडकर, ने द सिटिज़न को बताया कि इन "बाहरी" तत्वों की भूमिका की जांच की जरुरत है. उन्होंने जोर देकर कहा कि दलित हथियारबंद नहीं होते.

यो तो प्रमुख दलित संगठनों ने भारत बंद के दौरान हुई हिंसा से खुद को अलग बताया है, प्रकाश अम्बेडकर ने दलित समुदाय में फैली नाराजगी के लिए सरकार की चुप्पी और सुप्रीम कोर्ट को जिम्मेदार माना है, उनका कहना था कि दलित समुदाय के लोग उनपर होने वाले अत्याचारों के प्रति सरकार की उदासीनता के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे. और न्यायपालिका द्वारा अनुसूचित जाति / जनजाति अत्याचार कानून को व्यावहारिक स्तर पर शिथिल बना दिए जाने से उनके सब्र का पैमाना छलक पड़ा.

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और भीम सेना जैसे संगठनों के साथ - साथ प्रकाश अम्बेडकर भी इस बात पर जोर देते हैं कि " दलित हथियारबंद नहीं होते". उन्होंने कहा कि हथियारबंद लोग बाहरी थे और उनकी भूमिका की जांच जरुरी है. उनका कहना था कि उन्होंने पहले भी देखा है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को हिंसा से दागदार बनाने की कोशिश की जाती है. उन्होंने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि दलित समुदाय का नाम ख़राब कर उनके संघर्षों के औचित्य एवं विश्वसनीयता को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है."

श्री अम्बेडकर ने कहा कि जिस तरह से इस भारत बंद का आयोजन हुआ, वह रोचक है. उन्होंने ने बताया कि 9 अप्रैल को भारत बंद बुलाने के लिए वे विभिन्न दलित संगठनों से संपर्क कर ही रहे थे कि 2 अप्रैल को भारत बंद के आह्वान के साथ एक सन्देश फोन पर प्रसारित होने लगा. देखते ही देखते यह सन्देश वायरल हो गया और समूचे उत्तर भारत के कम - से - कम 15 - 20,000 दलित संगठनों ने इसका समर्थन कर दिया. किसी ने इस सन्देश की जिम्मेदारी नहीं ली और बहुत प्रयासों के बावजूद इस सन्देश के मूल स्रोत का पता नहीं लग पाया. बहरहाल, इस आह्वान को जबरदस्त समर्थन मिला और बिना किसी समन्वय समिति या संवाद के, यहां तक कि बिना किसी मांग के प्रस्ताव के इस बंद का आयोजन हो गया.

श्री अम्बेडकर के मुताबिक, दलित समुदाय के लोग "स्वतः स्फूर्त" रूप से सड़कों पर आये. उनका कहना है कि दलित समुदाय का गुस्सा जायज और स्वाभाविक है. समाज के कमजोर तबकों पर बढ़ते अत्याचार पर सरकार की निरंतर चुप्पी से दलित समाज के लोगों के जेहन में यह अहसास भर गया है कि इस सरकार को उनकी कोई परवाह नहीं है. विभिन्न राज्यों में दलित विरोधी हिंसात्मक कार्रवाइयों में हिन्दुत्ववादी संगठनों के सक्रिय भागीदारी से भी दलित समुदाय के लोगों में नाराजगी बढ़ी है. श्री अम्बेडकर के अनुसार, इसकी झलक उन उत्तर भारतीय राज्यों में गाहे - बगाहे दिखाई दे जाती है जहाँ बंद के दौरान हिंसा की घटनाएं हुईं. उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि बंद के असर से दक्षिण भारत अछूता रहा.

न्यायपालिका द्वारा अनुसूचित जाति / जनजाति अत्याचार कानून को व्यावहारिक स्तर पर शिथिल बना दिए जाने से स्थिति और विकट हुई क्योंकि दलितों को आज भी जीवन के हर क्षेत्र में भेदभाव का शिकार होना पड़ता है और अब उनके सिर पर से कानून का संरक्षण भी हटाया जा रहा है.

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने एक प्रेस कांफ्रेंस में दलितों की नाराजगी को रेखांकित करते हुए भारत बंद के दौरान आरएसएस की घुसपैठ की ओर इशारा किया. भीम सेना और भीम आर्मी ने भी विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा की घटनाओं पर चिंता प्रकट करते हुए बाहरी तत्वों द्वारा भड़काने और उकसावे की कार्रवाई को रेखांकित किया.

इसी किस्म की चिंता प्रकट करते हुए श्री अम्बेडकर ने कहा कि वो विभिन्न दलित संगठनों को एक साथ एक समन्वित छतरी के नीचे लाने के अपने प्रयासों में तेजी लायेंगे. उन्होंने कहा कि भारत बंद की घटना ने इस किस्म की एक समन्वित छतरी के तत्काल गठन की जरुरत को रेखांकित किया है ताकि दलित समुदाय की नाराजगी को ज्यादा कारगर तरीके से आकार दिया जा सके. उन्होंने आगे जोड़ा कि दलित समुदाय के लोगों को पता है कि समाज में आज भी छुआछूत की भावना प्रचालन में है और सामाजिक स्तरीकरण के लिहाज से वे आज भी सबसे निचले पायदान पर हैं. हर मौके पर उनके साथ भेदभाव किया जाता है. इसलिए, सरकार की चुप्पी और न्यायपालिका के ताज़ा व हालिया निर्देशों ने एक गुमनाम सन्देश के आह्वान पर उन्हें सडकों पर उतरने पर मजबूर कर दिया.

श्री अम्बेडकर ने कहा कि दलितों के गुस्से की आंच सबसे ज्यादा भाजपा शासित राज्यों - मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में महसूस की गयी. उत्तर प्रदेश में तो भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर को बिना जमानत के महीनों से जेल में बंद रखा हुआ है. झारखण्ड और महाराष्ट्र भी इससे नहीं बच सके. जवाब में पुलिस ने गोलियां दागीं. पुलिस के इस कदम पर उंगली उठाते हुए दलित नेताओं द्वारा अब यह पूछा जा रहा है कि बिना किसी पूर्व चेतावनी के और अन्य प्रतिरोधात्मक उपाय किये बगैर पुलिस द्वारा हथियार का इस्तेमाल क्यों किया गया. कुछ घटनाओं में पुलिसकर्मियों को चोटें जरुर आयीं, लेकिन कई अन्य घटनाओं में उन्हें युवाओं को बेरहमी से घसीटते और पीटते देखा गया.

बहरहाल, दलितों और सरकार के बीच टकराव में आये नाटकीय इजाफे ने दलित संगठनों के एक कारगर समन्वय समिति के गठन की जरुरत को रेखांकित किया है ताकि भविष्य में संघर्ष को सही तरीके आगे बढाया जा सके.