“जमानत मिल गयी, अल्लाह का शुक्रिया ...” डॉ. कफ़ील खान के भाई आदिल खान का यही संक्षिप्त संदेश आया. राहत का यही भाव इस संदेश के बाद टेलीफोन पर हुई बातचीत में भी जाहिर हुआ. आदिल खान बमुश्किल बात कर पाये और टेलीफोन अपने वकील नजरुल इस्लाम जाफरी, जो आठ महीने से जेल में बंद डॉ. कफ़ील खान का केस लड़ रहे हैं, को पकड़ा दिया. डॉ. खान को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा लादे गये एक “जुर्म” के लिए जेल जाना पड़ा था.

श्री जाफरी, जिन्होंने पिछले आठ महीने में इस मामले में न्यायालय में वास्तविक रूप से हुई पहली सुनवाई के दौरान आखिरकार अपना पक्ष रखा, ने बताया कि डॉ. खान के खिलाफ कोई सबूत नहीं था. इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि खुद राज्य सरकार ने माना है कि बीआरडी अस्पताल में कोई भी “अस्वाभाविक” मौत नहीं हुई है, उन्होंने कहा कि डॉ. खान के खिलाफ लगाया गया कोई भी आरोप साबित नहीं हो सकता. द सिटिज़न को उन्होंने बताया कि इस युवा डॉक्टर के खिलाफ कोई सबूत न होने की वजह से उसपर धारा 409, 308, 120 B लागू नहीं हो सकती.

डॉ. खान के परिजनों की तरह राहत की सांस लेते हुए श्री जाफरी ने बताया कि वे अब इस पूरी कार्रवाई पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए एक मामला बनायेंगे. द सिटिज़न ने ऑक्सीजन की आपूर्ति की कमी की वजह से दम तोड़ते बच्चों की जान बचाने में डॉ. खान के जद्दोजहद की सबसे पहले ख़बर दी थी. वैसी गंभीर परिस्थिति में, ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश करने वाले एकमात्र वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. खान थे. लेकिम उन्हें सीधे आदित्यनाथ द्वारा धमकाया गया और बाद में गिरफ्तार कर लिया गया.

इस समूची कार्यवाही से न्याय का मजाक बन गया क्योंकि जमानत की सुनवाई बार- बार कभी इस बहाने तो कभी उस बहाने टलती रही. कभी वकील गैरहाजिर हो गये, तो कभी लिपिक आवश्यक नोटिंग न बना पाये. यही नहीं, एकबार तो कोर्ट नोटिस में सुनवाई के लिए एक ही वक़्त में दो अलग – अलग तारीखें बतायी गयीं.

बच्चों की मौत के बाद अस्पताल का दौरा करने के दौरान योगी आदित्यनाथ ने डॉ. खान को सीधे धमकाया था. इस घटना ने डॉ. खान को अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित कर दिया और वे मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र, गोरखपुर, से दूर दिल्ली में शरण लेने की सोचने लगे. द सिटिज़न ने हाल में यह ख़बर दी थी कि डॉ. खान के परिजनों को किस किस्म के उत्पीड़न से गुजरना पड़ा, कैसे यूपी पुलिस आधी रात को उनके घर की घंटों तलाशी लेती रही और उनकी पत्नी और मां को धमकाती रही और कैसे इन सबके दौरान उनके बच्चे आतंकित होते रहे. उसके बाद पुलिस कैसे उनकी पत्नी को हिरासत में लेने के लिए बढ़ी लेकिन उनके भाई आदिल खान द्वारा हस्तक्षेप करने पर उनकी पत्नी की जगह उन्हें ले जाने को तैयार हुई. मतलब, उत्पीड़न के लिए सभी कानून को ताक पर रख दिया गया.

डॉ. खान को जमानत तब मिली जब इसे और ज्यादा देर तक लटकाना संभव नहीं रह गया. खासकर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप कर इस मामले के एक अन्य आरोपी मनीष तिवारी, जो ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली कंपनी, पुष्पा सेल्स, से जुड़े थे, को जमानत दिये जाने के बाद और कोई विकल्प बचा नहीं था.

द सिटिज़न की ख़बर के वायरल होने के बाद से डॉ. खान को रिहा कराने के लिए देश भर में एक अभियान भी छिड़ा. वकीलों, आम नागरिकों और समाज के हर तबके के लोगों ने उनके परिजनों से संपर्क कर सहायता की पेशकश की. यहां तक कि भाजपा के असंतुष्ट सांसद और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने भी इस बारे में ट्वीट किया.