'वैचारिक’ रूप से दो धुर विरोधी राजनीतिक दलों – सीपीएम और भाजपा – के आपस में हाथ मिला लेने की ख़बर है ! दोनों दलों ने यह कदम पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में पंचायत चुनावों में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए उठाया है. सीपीएम के नदिया जिला इकाई के सचिव एवं राज्य समिति के सदस्य सुमित डे ने स्वीकार किया है कि कई सीटों पर गांववासियों की इच्छा के अनुरूप आमने - सामने की सीधी लड़ाई सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर इस किस्म का तालमेल किया गया है.

द सिटिज़न से आज सुबह बात करते हुए, सीपीएम के वरिष्ठ नेता प्रकाश करात ने बताया कि इस बारे में स्थिति को साफ़ करने के लिए पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्र एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करेंगे.

सीपीएम के केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रबर्ती ने कहा, “यह सही है कि कुछ इलाकों में हमारे लोग हाथ मिला रहे हैं. हम उनसे बात करके उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन ऐसा सत्तारूढ़ दल द्वारा अभूतपूर्व हिंसा और आतंक फैलाने की वजह से हुआ है. जिन सीटों पर हमारे उम्मीदवार नहीं हैं, वहां हम निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन कर रहे हैं. कुल मिलाकर, बंगाल में एक – दूसरे के लिए स्थान बनाने के लिए भाजपा और तृणमूल एक खेल खेल रही हैं.”

भाजपा के उत्तरी नदिया इकाई के अध्यक्ष महादेब सरकार ने कहा कि अपने किस्म की यह एक अकेली घटना है. उन्होंने कहा, “ कुछ सीटों पर, जहां हम अपने उम्मीदवार नहीं उतार सके, वहां जमीनी स्तर पर हमारे कार्यकर्ताओं ने निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन किया है. ज्यादातर मामलों में, ये निर्दलीय उम्मीदवार वास्तव में सीपीएम के कार्यकर्ता हैं.”

सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीटर पर लिखा, “तृणमूल कांग्रेस, जिसने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और अपने भ्रष्ट नेताओं को बचाने के लिए भाजपा से एक समझौता किया है, द्वारा जान – बूझकर झूठी अफवाहें फैलायी जा रही हैं. बिमान बोस ने भाजपा के साथ ऐसे किसी समझौते से इन्कार किया है और हम तृणमूल और भाजपा, दोनों के खिलाफ अडिग हैं.”

कुछ साल पहले सीपीएम की जनविरोधी नीतियों की आलोचना करते हुए पार्टी से अलग हुए प्रसेन्जित बोस ने कहा, “पिछले कुछ समय से सीपीएम की कीमत पर भाजपा बंगाल में अपनी जड़ें जमा रही है. पंचायत चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की आतंक फैलाने की रणनीति ने इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया है.” श्री बोस कोलकाता में युवाओं के एक मंच, युवा बंगाल, के अध्यक्ष हैं.

कई छात्र नेताओं ने इस परिघटना पर चिंता जताते हुए इसकी घनघोर आलोचना की है. जादवपुर विश्वविद्यालय के एक छात्र नेता देबोर्शी चक्रबर्ती ने कहा, “इस साल पंचायत चुनावों के नामांकन प्रक्रिया के दौरान जिस किस्म की हिंसा हुई, वो अभूतपूर्व था. तृणमूल कांग्रेस धन, ताकत और प्रशासनिक शक्ति के जोर पर इन चुनावों को जीतने की कोशिश कर रही है. विपक्ष के लोगों को ई – मेल और व्हाट्सएप्प के जरिए अपना नामांकन दाखिल करना पड़ा, जोकि अप्रत्याशित था. ऐसी परिस्थिति में, सीपीएम – भाजपा का चुनावी गठबंधन सिद्धांतों के खिलाफ है. अभी पिछले महीने ही समाप्त हुए सीपीएम के पार्टी कांग्रेस में भाजपा - आरएसएस के खिलाफ अंत तक लड़ने का प्रस्ताव पारित किया गया था. लेकिन धरातल पर, ये लोग ठीक इसका उल्टा कर रहे हैं. दरअसल, अपने शासन काल के अंतिम दस सालों में वाम मोर्चा सरकार द्वारा अपनायी गई जनविरोधी नीतियों की वजह से सीपीएम ने लोगों के बीच अपनी विश्वसनीयता खो दी है और अब अपने रवैये में सुधार लाने की कठिन प्रक्रिया से गुजरे बगैर उन्होंने राज्य की सत्ता में लौटने के लिए कांग्रेस जैसी बुर्जुआ पार्टी के साथ गठबंधन किया... भाजपा के साथ गठबंधन इसी किस्म की अवसरवादी राजनीति का परिणाम है और यह दर्शाता है कि अन्य पार्टियों की तरह सीपीएम भी किस कदर एक अनैतिक राजनीतिक संगठन बन गया है. इससे भाजपा को फायदा मिलेगा और राज्य की राजनीति में उसका उदय सुनिश्चित होगा.”

विभिन्न समाचार एजेंसियों ने पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों के लिए नामांकन के दौरान हिंसा की घटनाओं के बारे में ख़बरें दी थीं. सत्तारूढ़ दल द्वारा ताकत के इस्तेमाल और विपक्षी उम्मीदवारों को रोकने की घटनाओं का कलकत्ता हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया. अदालत ने राज्य चुनाव आयोग को नामांकन की तारीख बढ़ाने और ई – मेल और व्हाट्सएप्प के जरिए उम्मीदवारों का नामांकन स्वीकार करने का निर्देश दिया. मूल रूप से 1, 3 और 5 मई को तीन चरणों में होने वाले पंचायत चुनाव अदालत के आदेश पर अब एक ही चरण में 14 मई को होंगे.