देश में कांग्रेस के बचे हुए गढ़ में प्रमुख , कर्नाटक की नई विधान सभा चुनाव के लिए मतदान 12 मई को 4.97 करोड़ मतदाताओं में से अनुमानित 70 प्रतिशत के वोट डालने के साथ संपन्न हो गया। मंगलवार 15 मार्च को मतगणना होगी। उसी दिन परिणामों की घोषणा भी होगी । वोटिंग के आंकड़ों के मद्देनज़र अधिकतर पोल्स्टरों ने कर्नाटक में कांग्रेस की हार तय बताई है और विखंडित जनादेश की भविष्यवाणी कर भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने की संभावना व्यक्त की है। पोल्स्टरों ने विधान सभा चुनाव कार्यक्रम की सांविधिक घोषणा के पहले से ही चुनावी परिणामों को लेकर तीर - तुक्काबाज़ी के अपने करतब दिखाने शुरू कर दिए थे .

किसी पक्ष को कुल 224 सीटो में से कम -से -कम 113 सदस्यों का समर्थन मिल जाता है तो नई सरकार के गठन में अड़चन नहीं आएगी। राज्य में 1985 के बाद से किसी भी दल को सत्ता बरकरार रखने का मौक़ा नहीं मिला है।कर्नाटक ही नहीं किसी भी राज्य के चुनाव में यह सम्भवतः पहला मौक़ा है जब तीनों प्रमुख दलों ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपने दावेदार चुनाव के पहले ही घोषित कर दिए है, पिछले चुनाव में कर्नाटक में औसतन 70.23 फीसदी मतदान हुआ था। मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस को 1 22 सदस्यों का बहुमत समर्थन हैं। भाजपा के 43 और जद (सेकूलर ) के 30 सदस्य हैं.

खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 160 सीटें जीतने का विश्वास व्यक्त किया है। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार विखंडित जनादेश की स्थिति में भी भाजपा खुद अथवा जनता दल सेकुलर के साथ मिलकर सांझा सरकार भी बना सकती है। भाजपा और और जनता दल सेकुलर की बारी -बारी की चक्करदार सरकार भी बना सकती है। फैसला केंद्र की सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा को करना है कि उसको क्या करना और क्या नहीं करना है। भाजपा के पास केंद्रीय राजसत्ता का बल ही नहीं धनबल भी है। उसके पास ढेर उपाय हैं . केंद्रीय राजसत्ता को इस दक्षिणवर्ती राज्य में नए चुनाव कराने की नौबत शायद ही आये।

मतदान विधान सभा की 224 में से 222 सीटों पर हुआ। दो सीट पर चुनांव नए सिरे से कराए जाएंगे . इनमें राजराजेश्वरी नगर शामिल है जहाँ निर्वाचन आयोग ने एक कथित भाजपा समर्थक के आवास से ढेरों फर्जी वोटर कार्ड बरामद किए . जयानगर सीट पर भाजपा प्रत्याशी एवं निवर्तमान विधायक बी एन विजयकुमार के निधन के कारण चुनांव पहले ही रद्द कर दिए गए थे . इन दोनों सीटों पर चुनाव अब 28 मई को होंगे। कर्नाटक , दक्षिण भारत का एकमात्र राज्य है जहां भाजपा सत्ता में रह चुकी है। उसकी पहली सरकार 2008 के विधान सभा चुनाव के बाद बनी थी। तब उसको अपने क्षेत्रीय नेता बी एस येद्दयूरप्पा के नेतृत्व में 224 में से 110 सीटें मिली थी। भाजपा इससे पहले 2004 में भी 79 सीटें जीत विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। 2013 में भाजपा येद्दयूरप्पा के बिना लड़ी। तब उसे और जनतादल(एस) को 40-40 सीटें मिलीं। तब येद्दयूरप्पा की नई पार्टी को छह सीटें मिली थी। अनुसूचित जनजाति के नेता श्रीरामुलू का अलग गुट भी चार सीटें जीत गया था। इस बार येद्दयूरप्पा और श्रीरामुलू , दोनों भाजपा में हैं।

सर्वे

आनंद बाजार पत्रिका समूह के एबीपी न्यूज़ ने मतदान से पहले किये - कराये सर्वे के हवाले से " खबर " दी थी कि जनादेश , विखंडित निकलेगा लेकिन कांग्रेस सर्वाधिक 38 प्रतिशत वोट प्राप्त कर और 97 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में आगे रहेगी। उसने भाजपा को 33 प्रतिशत वोट के सहारे 84 सीट मिलने तथा पूर्व प्रधान मंत्री एच डी देवेगौड़ा के जनता दल ( सेकुलर ) को 22 प्रतिशत वोट के साथ 37 सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की थी। इस सर्वे के मुताबिक़ लिंगायत समुदाय के वोट कांग्रेस को उतने नहीं मिलेंगे जितने कि मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने इन चुनाव के ऐन पहले लिंगायत मूल के लोगों को हिन्दू से अलग अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने निर्णय कर इसका चुनावी असर भुनाने की सोची थी। राज्य की कुल आबादी में से करीब 20 प्रतिशत हिस्सा लिंगायत समुदाय का है। इस समुदाय का अनुमानित 100 सीटों पर प्रभाव माना जाता है। सिद्धरमैया ने दावा किया है कि राज्य में जितने भी मठ हैं उन सब का समर्थन कांग्रेस को है। पोल्स्टर फर्म सी -फोर ने तो चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि कांग्रेस को पिछली बार से अधिक सीटें मिल सकती हैं और भाजपा की भी सीटें बढ़ेंगी लेकिन जद (सेकूलर ) को नुकसान होगा। आरएसएस के मुखपत्र , ऑर्गेनाइज़र के पूर्व सम्पादक शेषाद्रि चारी ने दावा किया था कि कांग्रेस के लिंगायत कार्ड खेलने के बावजूद भाजपा ही जीतेगी। बाज़ार -प्रायोजित पोल्स्टरों के चुनावी सर्वेक्षण हमेशा की तरह भ्रमित ही करते हैं।

आप - कम्युनिस्ट - महिलापार्टी

कर्नाटक चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने भी कुछेक सीटों पर अपनी राजनीतिक किस्मत आज़मायी कम्युनिस्ट पार्टियां भी कुछेक सीट पर चुनाव लड़ रही हैं। इसके अलावा नौहेरा शेख नाम की एक महिला ने दुबई के अपने धनबल पर महिला एम्पावरमेंट पार्टी खडी कर दी। इस पार्टी ने महिला सशक्‍तीकरण के मुद्दे पर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। लेकिन पूरे राज्य में सिर्फ़ 219 महिलाएं चुनाव लड़ रही है. जबकि 1155 प्रत्याशी निर्दलीय हैं.

चक्करदार सरकार

गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव ' संपन्न ' कराने की अंतिम तारीख 18 मई है। निर्वाचन आयोग द्वारा अधिसूचित कार्यक्रम में लिखा है , ' तिथि जिसके पूर्व चुनाव प्रक्रिया खत्म हो जानी चाहिये , 18 मई 2018 शुक्रवार। चुनाव ' संपन्न ' कराने में ढेरों कामकाज शामिल है। नई सरकार का गठन , चुनाव पश्चात अलग प्रक्रिया है। नए चुनाव के बाद नई सरकार का गठन संभव भी है , और नहीं भी। लेकिन अगर कोई पक्ष इतने सदस्यों का स्पष्ट साधारण बहुमत समर्थन जुटाने में सफल नहीं होता है तो फिर नई सरकार के गठन की प्रक्रिया लम्बी और टेढ़ी भी हो सकती है। चुनावी परिणामों की खीर बहुत टेढ़ी निकली तो उस मर्ज़ के सांविधिक उपचार के कई उपाय हैं। इनमें नए सिरे से फिर विधान सभा चुनाव कराने से लेकर वहाँ छह माह तक के लिए राष्ट्रपति शासन लागू की जा सकती है। राष्ट्रपति शासन के छह माह गुजर जाने पर भी कोई इलाज़ नहीं हो सका तो एक ही क्षण में राष्ट्रपति शासन हटा कर उसे उसी क्षण फिर से और छह माह तक के लिए लागू किया जा सकता है। अगर इन उपायों से भी इलाज़ कारगर नहीं हो सका तो फिर इज़रायल की तरह छह -छह माह अथवा अन्य किसी भी अवधि की चक्करदार ( रोटेशनल ) सरकार के गठन का गज़ब का उपाय भी है। इसकी नज़ीर भी हिन्दुस्तान के सबसे बड़े सूबा , उत्तर प्रदेश में है ही , जो कर्नाटक के काम आ सकता है।

सूक्ष्म प्रबंधन

चुनाव पूर्व और पश्चात के सूक्ष्म प्रबंधन में कांग्रेस से कुछ ज्यादा माहिर हो चुकी भारतीय जनता पार्टी हर हालत में सरकार बना सकती है। भले ही वह सरकार केंद्र में प्रथम अटल बिहारी वाजपेई सरकार की तरह ही तरह अथवा उससे कुछ ज्यादा या कम दिनों में ही गिर ना जाए। कांग्रेस जैसे -तैसे राज्य की सत्ता में बनी रहेगी या नहीं इससे ज्यादा अहम सवाल यह हो गया है कि मोदीराज -प्रथम के आखिरी बरस में भाजपा , गैर-मुद्दों को शह देकर मतदाताओं का साम्प्रदायिक विभाजन करने के अपने आज़माये हुए नुस्ख़े से जीतने में सफल होती है या नहीं ? इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों ( ईवीएम ) से हेराफेरी करने -करवाने के भाजपा पर लगते आरोप दूर होते हैं या और बढ़ते हैं? गोआ की तरह , कांग्रेस जीती हुई बाजी हारने में और भाजपा हारी हुई बाजी को जीतने में कामयाब होती है अथवा नहीं ?

चुनाव प्रचार

कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमन्त्री के रूप में मोदी जी के भाषणों में भाषाई नग्नता निम्नतम स्तर पर पहुँच ही गई। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कह डाला कि राहुल को कुत्तों से देशभक्ति की पाठ सीखनी चाहिए। इसके पहले जब राहुल ने कहा कि वह शैव हैं तो मोदी जी ने उन्हें पांच बार शुद्ध रूप से विश्वेशरैया -विश्वेशरैया का उच्चारण करने की चुनौती दे डाली। विश्वेशरैया भारत के महान अभियंता थे और कर्नाटक के ही थे। मोदी जी ने अपने इतिहास ज्ञान की काल्पनिक उड़ान भरते हुए अपने भाषणों में यहाँ तक कह डाला कि कांग्रेस के नेहरू राज में भारत -चीन युद्ध और कृष्ण मेनन के रक्षा मंत्रित्व काल में कर्नाटक मूल के जेनरल करियप्पा और जेनरल थिमैया के साथ भी बदसलूकी की गई थी। उन्होंने इस कथित बदसलूकी के जो समय सन्दर्भ दिए वे ऐतिहासिक तथ्यों से जांच -परख में सतही निकले। भाजपा खेमा ने अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मोहम्मद अली जिन्ना की लगी तस्वीर हटाने के भगवा पाले की कारगुजारी के पार्श्व में अविभाजित भारत के विभाजन के लिए जिन्ना को दोषी ठहराते हुए भी खूब साम्प्रदायिक जहर उगले। एएमयू के फाउंडर , मुहम्मद अली सैय्यद अहमद खान थे। जब ऐतिहासिक साक्ष्यों से रेखांकित किया गया कि अंग्रेज राज में फूट डालो और राज करो की कुनीति के तहत रचे द्वि -राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन जिन्ना के पहले अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के ' वीर ' सावरकर ने किया था तो भगवा खेमा ने चुप्पी साध ली। भगवा खेमा की तरफ से साम्प्रदायिक विद्वेष की आग उगलने वालों में मोदी -शाह के अलावा केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े , सांसद शोभा करंदलाजे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी शामिल रहे। इस खेमा ने टीपू सुलतान के भी खिलाफ विषवमन किया। मुख्यमंत्री सिद्दरामैया ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों भरे चुनावी विज्ञापन देने के लिए मोदी जी , भाजपा अध्यक्ष अमित शाह आदि के खिलाफ आपराधिक अवमानना की वैधानिक नोटिस भेज मुआवजा के तौर पर 100 करोड़ रुपये और सार्वजनिक माफी मांगते हुए जोर देकर कहा कि उनके विरुद्ध कोई भी आरोप कभी साबित नहीं हुआ है।

सिद्धारमैया :

कर्नाटक की शास्त्रीय राजनीति में विभिन्न दलों की संगत में बैठ खासे सिद्ध हो चुके सिद्धरमैया कुरबा ( चरवाहा ) समुदाय के हैं। सिद्धारमैया दक्षिण कर्नाटक की चामुंडेश्वरी और उत्‍तर कर्नाटक में बदामी की दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं . जनता दल (सेक्युलर) का गढ़ माने जाने वाले चामुंडेश्वरी सीट से वह विभिन्न दलों के प्रत्याशी के रूप में पांच बार जीते और दो बार हारे भी हैं। उन्होंने घोषणा कर दी है कि यह उनका अंतिम चुनाव होगा। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पुरानी सीट वरुणा से उनके पुत्र डॉक्टर यतींद्र चुनाव मैदान में हैं। राज्य में क़ुरबा समुदाय के मतदाता आठ प्रतिशत माने जाते हैं. सिद्धारमैया चामुंडेश्वरी सीट से पहली बार 1983 में चुने गए थे. बागलकोट के बदामी सीट से भी उन्हें चुनावी मैदान में उतारने से कांग्रेस को आसपास की सीटों पर फ़ायदे बताये गए। उन्हें बदामी में भाजपा के वाल्मिकी -आदिवासी चेहरे श्रीरामुलु से विरोध का सामना करना पड़ा। श्रीरामुलु अवैध खनन घोटाले के आरोपी जनार्दन रेड्डी के करीबी सहयोगी हैं.

येदुरप्पा :

लिंगायत समुदाय के पूर्व मुख्यमंत्री और अगले मुख्यमंत्री के लिए भाजपा के घोषित दावेदार 75 -वर्षीय बी. एस येदुरप्पा को भाजपा ने कांग्रेस के लिंगायत चुनावी कार्ड की तोड़ के रूप में पेश कर रखी है। उन्हें राज्य में 2009 के विधानसभा चुनाव में पहली बार जीती भाजपा की सरकार के मुख्यमंत्री पद से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण हटना पड़ा था। उन्होंने सत्ता से अपदस्थ होने के बाद अपनी नई पार्टी भी बना ली थी। बाद में उनकी नई पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया गया। येद्दयुरप्पा को इन आरोपों के कारण न सिर्फ ही मुक्यमंत्री पद से हटना पड़ा था बल्कि अरबों रूपये के भूमि-घोटाले में जेल भी जाना पड़ा था. कर्नाटक के 50 हजार करोड़ रूपये के लौह अयस्क खनन -निर्यात घोटाला में लिप्त कुख्यात तीन बेलारी बंधुओं में से सबसे बड़े जी जनार्दन रेड्डी खुद चुनाव मैदान में नहीं हैं। लेकिन उनके दोनों अनुज , जी करुणाकरा रेड्डी ( हडपणहल्ली ) और जी सोमशेखर रेड्डी (बलारी ) भाजपा प्रत्याशी हैं। कुछ खबरें ऐसी भी आयीं है कि येदुरप्पा को भाजपा से भीतरघात का ख़तरा भी है। येदियुरप्‍पा , शिकारीपुर सीट से ही लड़ रहे हैं जहां से वे पिछले सात बार से चुनकर आते रहे हैं।

कुमारस्वामी :

मुख्यमंत्री के लिए एक और दावेदार , पूर्व प्रधान मंत्री एच डी देवेगौड़ा के पुत्र , एच डी कुमारस्वामी हैं जो मुख्यमंत्री रह चुके हैं और जनता दल ( सेकुलर ) की और से इस पद के लिए घोषित नेता हैं। उनकी पार्टी को कर्नाटक में राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त है। जनता दल (सेक्युलर) का गठन पूर्व प्रधानमन्त्री एच. डी. देवेगौड़ा ने जुलाई 1999 में जनता दल के विभाजन के बाद किया था। यह दल कर्नाटक और केरल में प्रान्तीय दल के रूप में पंजीकृत है। जनता दल(एस) ने इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों के साथ चुनावी गठबंधन किया है। देवेगौड़ा स्वयं वोकालिगा समुदाय के हैं। वोकालिगा समुदाय के 150 मठ हैं. इनमें अधिकतर दक्षिण कर्नाटक में हैं। कुमारस्वामी के बड़े भाई एच डी रेवन्ना भी प्रत्याशी हैं.

(लेखक स्वतंत्र वरिष्ठ पत्रकार और द सिटिज़न -हिंदी के स्तम्भकार हैं)